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Ayodhya Ram Temple News: सत्य, अहिंसा, प्रेम और करुणा का रामराज

Ayodhya Ram Temple News रामराज यानी सत्य प्रेम और करुणा का राज। करुणा की पुत्री अहिंसा है। सत्य का पुत्र अभय है और प्रेम का पुत्र त्याग है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 03 Aug 2020 07:20 AM (IST)Updated: Mon, 03 Aug 2020 07:20 AM (IST)
Ayodhya Ram Temple News: सत्य, अहिंसा, प्रेम और करुणा का रामराज
Ayodhya Ram Temple News: सत्य, अहिंसा, प्रेम और करुणा का रामराज

राज कौशिक। Ayodhya Ram Temple News अयोध्या में राम मंदिर निर्माण में सहयोग के लिए तुलसी दल के रूप में पांच करोड़ रुपए की वित्त सेवा के लिए मेरी व्यासपीठ ने इच्छा जाहिर की और चार दिन में करीब 17 करोड़ रुपए बैंक में जमा हो गए। एक चिट्ठी मिली कि बापू, मुझे राम मंदिर के लिए कुछ देना है लेकिन मैं जानता हूं मेरी कमाई नीति की नहीं है। इसलिए हाथ नहीं चलते कि राम के मंदिर में पैसे डालूं।

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अब मैं अपने जीवन में सुधार करूंगा। इसमें कुछ समय लगेगा मगर तब जो नीति का पैसा आएगा, उसे मैं राम मंदिर के लिए दूंगा। इस तरह की जो भावना है, ये राम मंदिर से रामराज की तरफ उठने वाला पहला कदम है।

गांधी समाधि राजघाट की कथा में भी कहा गया है कि रामराज तभी आएगा जब सत्ता नहीं, सत्य प्रिय होगा। राम की पादुका सत्य का प्रतीक हैं। भरत ने सत्ता से पहले पादुका यानि सत्य को महत्व दिया। राज दर्शन से पहले राम दर्शन और पद से पहले पादुका को भरत ने महत्वपूर्ण माना। सत्य व अहिंसा के मार्ग पर चाहे कितनी ही कम गति से चला जाए, चलते-चलते एक दिन गांधी के रामराज तक हम पहुंच ही सकते हैं। रामराज्य से अभिप्राय है सत्य, प्रेम और करुणा का राज। करुणा की पुत्री का नाम अहिंसा है। सत्य के बेटे का नाम अभय है और प्रेम के पुत्र का नाम त्याग है। जहां सत्य होगा, अभय आएगा ही और जो आदमी अभय होगा, वो शांत भी होगा। जहां प्रेम होगा, वहां त्याग अपने आप आ जाएगा। गीता में भी स्पष्ट कहा है कि त्याग से शांति प्राप्त होती है।

करुणा से अहिंसा जन्म लेती है और जिस व्यक्ति में अहिंसा होगी, वो शांत भी होगा। जिस दिन हृदय में राम का प्राकट्य हो, उसी दिन रामनवमी है और उसी पल से हम रामराज की तरफ गति कर सकते हैं। जीवन में रामजन्म करना हो, रामराज की तरफ गति करनी हो तो राम कथा निमंत्रण देती है। तुलसीदास ने सात सोपानों की सीढ़ी दी है। इससे ऊपर जाना है मगर जहां से ऊपर चढ़े थे, मंजिल प्राप्ति के बाद वहीं से छोटे से छोटे आदमी के लिए नीचे भी उतरना है। इसे ही राम अवतरण कहते हैं। यही रामराज का मूल है।

रामचरितमानस के साथ सोपान हैं। बालकांड में हरि प्रकट हुए हैं- भए प्रकट कृपाला, दीन दयाला। अयोध्या कांड में भगवान स्वयं कहते हैं कि मैं जन्मा हूंजन्मे एक संग सब भाई। अरण्यकांड में भगवान गति करते हैं। चित्रकूट में निरंतर गति है। राम तत्व गतिशील है। किष्किंधा में परमात्मा की उध्र्वगति है। हनुमानजी के कंधे पर बैठ कर भगवान ऋषिमुख पर्वत गए। ये केवल ईश्वर का ही ऊध्र्वगमन नहीं है, उसके अंश के नाते हम भी ये संदेश उचित रीति से लें तो ये अपना भी ऊध्र्वगमन है। कलियुग में भी हमारे जीवन में रामराज आ सकता है। राम ने अपने चरित्र से संदेश दिया है कि हनुमानजी जैसा सदगुरु मिल जाए तो हमें ऊपर की तरफ ले जा सकता है।

सुंदरकांड में जो ऊध्र्वगमन था, उसने शांति, भक्ति, प्रेम, सत्य और करुणा के लिए खोज शुरू की। रामराज के लिए मानव को भी ये खोज करनी चाहिए। लंका कांड में जो प्रभु की यात्रा है, वो निर्वाण की यात्रा है। सभी को मुक्ति देती है। सभी को बुद्ध करने के लिए युद्ध था। वो एक नवसर्जन था। उत्तरकांड विश्राम की यात्रा है। इसमें मानव परम विश्राम की ओर गति करता है। मानस में शंकर बोले हैं- राम जन्म के हेतु अनेका। राम जन्म के अनेक कारण हैं और सभी परम विचित्र हैं। पहला हेतु है- द्वारपाल हरि के प्रिय दोऊ। द्वारपाल यानि घर के रक्षक जिन्हें आप नौकर मानते हैं, वो हमें प्रिय होने चाहिए। अगर हम उन्हें प्रिय नहीं मानेंगे तो घर के बड़े से बड़े मंदिर में जो राम विराजमान हैं, वो भी हम से प्रेम नहीं करेंगे।

रामराज यानी सत्य, प्रेम और करुणा का राज। करुणा की पुत्री अहिंसा है। सत्य का पुत्र अभय है और प्रेम का पुत्र त्याग है। जहां सत्य होगा, अभय आएगा ही और जो आदमी अभय होगा, वो शांत भी होगा। जहां प्रेम होगा, वहां त्याग खुद आ जाएगा।

[मोरारी बापू, आध्यात्मिक संत]


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