Raksha Bandhan 2022: रक्षा बंधन 'मोक्ष' का भी पर्व, भाई बहन ही नहीं गुरु शिष्य परंपरा से भी है गहरा नाता
Importance of Raksha Bandhan रक्षा बंधन का त्योहार केवल भाई और बहन के बीच प्रेम का प्रतीक ही नहीं है। इसका नाता गुरु शिष्य परंपरा से भी है। कितना प्राचीन है यह पर्व और क्या है इसकी वैदिक महत्ता... जानने के लिए पढ़ें यह खास रिपोर्ट...
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। आमतौर पर रक्षा बंधन को हम भाई बहन के पर्व के रूप में मनाते हैं। रक्षा बंधन वह पर्व है जब बहनें भाइयों की कलाई पर एक पवित्र धागा बांधती हैं और उनकी लंबी उम्र की कामना करती हैं। वहीं भाई भी बहनों की रक्षा और उनके कल्याण का संकल्प लेते हैं। इस मौके पर भाई बहनों को उपहार भी देते हैं। हालांकि शास्त्रों के जानकार इस पर्व को प्राचीन और वैदिक काल से प्रचलित बताते हैं। विद्वानों के मुताबिक यह पर्व मोक्ष से जुड़ा है। साथ ही इसका गुरु शिष्य परंपरा से भी गहरा नाता है।
वैदिक साहित्य में चार पर्वों का उल्लेख
भारतवर्ष में वैदिक काल से चार पुरुषार्थों (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) का जिक्र है। इन्हीं पुरुषार्थों को संसार में स्थापित करने के लिए चार पर्व भी बनाए गए हैं जो वैदिक काल से चले आ रहे हैं। ये चार पर्व बेहद महत्वपूर्ण माने जाते हैं क्योंकि इनका प्रतिपादन वैदिक साहित्य से है।
मोक्ष का भी पर्व है रक्षा बंधन
चार पुरुषार्थों (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) के लिहाज से देखें तो धर्म की साधना के लिए विजयदशमी, अर्थ की प्राप्ति के लिए दीपावली, काम को लक्षित उपासना के लिए होली के पर्व का उल्लेख पुराणों और वैदिक साहित्य में मिलता है। यदि जीवन के लक्ष्य के संदर्भ में देखें तो रक्षा बंधन सभी पर्वों में उच्चतम स्थान रखता है क्योंकि यह मोक्ष का पर्व है।
श्रावणी नाम से रक्षा बंधन का उल्लेख
जीव, जीवन और जगत के संदर्भ में बात करें तो मोक्ष ही साधक का लक्ष्य है। वैदिक साहित्य में रक्षा बंधन का उल्लेख श्रावणी नाम से है। श्रावणी के दिन ही भारत वर्ष के गुरुकुलों में ब्रह्मचारियों को वेदों का अध्ययन शुरू कराया जाता था। गुरुकुलों में शिष्यों को वेदों का अध्ययन सबसे अंत में कराने की परंपरा रही है। ऐसा इसलिए क्योंकि मोक्ष की कामना विरले शिष्यों में देखी जाती थी।
यज्ञोपविति धारण करने का भी पर्व
प्राचीन भारत वर्ष में भी श्रावणी को अलग अलग रूप में मनाने की रवायत रही है। प्रख्यात शिक्षाविद डॉ. हिम्मत सिंह सिन्हा के अनुसार रक्षा बंधन के दिन उत्तर भारत में जहां वेदों का अध्ययन शुरू कराने के लिए श्रावणी उत्सव की परंपरा रही है तो दूसरी ओर दक्षिण भारत में इसे यज्ञोपविति धारण करने के पर्व के रूप में मनाने का रिवाज रहा है। इस दिन लोग यज्ञोपविति भी बदलते हैं। देश के संस्कृत विश्वविद्यालयों में हर साल इसी दिन से संस्कृत सप्ताह मनाने की शुरुआत भी होती है।