सादगी से भरा डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जीवन, देश के अकेले राष्ट्रपति जिनका दो बार रहा कार्यकाल
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बृहस्पतिवार को देश के पहले राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि सादा जीवन और उच्च विचार के सिद्धांत पर आधारित उनका जीवन देशवासियों को सदैव प्रेरित करता रहेगा।
नई दिल्ली, जेएनएन। देश के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद की आज 136वीं जयंती है। बिहार के सीवान में तीन दिसंबर 1884 को डा. राजेंद्र प्रसाद का जन्म हुआ था। उनके पिता का नाम महादेव सहाय और माता का नाम कमलेश्वरी देवी था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा बिहार के छपरा के जिला स्कूल में हुई थी। उन्होंने पटना से कानून में मास्टर की डिग्री ली। डॉ प्रसाद की हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू, बंगाली एवं फारसी पर अच्छी पकड़ थी।
राष्ट्रपति के रूप में 1962 तक रहा कार्यकाल
राजेंद्र प्रसाद देश के एकमात्र एकमात्र राष्ट्रपति हैं जिनका कार्यकाल एक बार से ज्यादा का रहा। वह राष्ट्रपति के पद पर 1950-62 के बीच आसीन रहे। साल 1962 में राजेंद्र प्रसाद को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। राजेंद्र प्रसाद महात्मा गांधी के बेहद करीबी सहयोगी थे। आजादी के बाद वह भारत के पहले राष्ट्रपति बने। उन्होंने संविधान सभा का भी नेतृत्व किया था। राजेंद्र प्रसाद को 'नमक सत्याग्रह' और 'भारत छोड़ो आंदोलन' के दौरान जेल में भी जाना पड़ा।
गुरु के विचारों का गहरा प्रभाव
डॉ. प्रसाद के जीवन पर उनके गुरु गोपाल कष्ण गोखले के विचारों का गहरा प्रभाव था। उन्होंने अपनी आत्मकथा में इस बात का जिक्र भी किया था कि उन्होंने गोपाल कष्ण से मिलने के बाद आजादी की लड़ाई में शामिल होने का फैसला किया था। बताया जाता है कि महात्मा गांधी खुद राजेंद्र प्रसाद के निर्मल स्वभाव व उनकी योग्यता को लेकर काफी प्रसन्न हुए थे।
सादगी से गुजारा जीवन
देश के सर्वोच्च पद पर रहने के दौरान भी वह काफी सादगी से रहा करते थे। उन्होंने राष्ट्रपति भवन में अपने उपयोग के लिए केवल दो-तीन कमरे ही रखे थे। उनमें से एक कमरे में चटाई बिछी रहती थी जहां बैठकर वे चरखा काता करते थे। बाद में उन्होंने राजनीति से संन्यास ले लिया। पटना के एक आश्रम में 28 फरवरी, 1963 को बीमारी के कारण उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली।