बुजुर्गों के जीवन की गुणवत्ता सूचकांक की रिपोर्ट में राजस्थान, हिमाचल व मिजोरम अव्वल
देश के कई राज्य में बुजुर्गों का जीवन अच्छा है तो वहीं देश के कई राज्य ऐसे हैं जहां बुजुर्गों की स्थिती ठीक नहीं है। इंस्टीट्यूट फॉर कम्पिटिटिवनेस द्वारा तैयार बुजुर्गों के लिए जीवन का गुणवत्ता सूचकांक की रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है।
नई दिल्ली, प्रेट्र। राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, चंडीगढ़ और मिजोरम अपनी बुजुर्ग आबादी के गुणवत्तापूर्ण जीवन के मामले में शीर्ष राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में शामिल हैं। इंस्टीट्यूट फॉर कम्पिटिटिवनेस द्वारा तैयार 'बुजुर्गों के लिए जीवन का गुणवत्ता सूचकांक' की रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है। यह लिस्ट देश की बुजुर्ग आबादी के कल्याण का आकलन करता है। रिपोर्ट में 50 लाख बुजुर्गों की आबादी वाले 'वृद्ध' और 50 लाख से कम बुजुर्गों की आबादी वाले 'अपेक्षाकृत वृद्ध' राज्यों को श्रेणी में रखा गया है।
राजस्थान वृद्ध राज्यों की श्रेणी में सबसे ऊपर है, उसके बाद महाराष्ट्र और बिहार हैं। हिमाचल प्रदेश अपेक्षाकृत वृद्ध सूची में सबसे आगे है, जबकि उत्तराखंड और हरियाणा क्रमश: दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं। चंडीगढ़ और मिजोरम केंद्र शासित प्रदेश और पूर्वोत्तर राज्यों की श्रेणियों में शीर्ष स्कोर थे। दूसरी ओर, तेलंगाना और गुजरात ने वृद्ध और अपेक्षाकृत वृद्ध राज्यों की श्रेणियों में सबसे कम स्कोर किया। जम्मू-कश्मीर और अरुणाचल प्रदेश को केंद्र शासित प्रदेश और उत्तर-पूर्वी राज्यों के क्षेत्रों में सबसे नीचे रखा गया है।
प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी-पीएम) के चेयरमैन बिबेक देबरॉय ने रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि भारत को अक्सर एक युवा समाज के रूप में चित्रित किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप जनसांख्यिकीय लाभांश होता है। लेकिन, जैसा कि हर देश के साथ होता है भारत में भी जनसांख्यिकीय परिवर्तन के कारण उम्र बढ़ने की समस्या है। रिपोर्ट को चार मानकों पर के आधार पर यह सूचकांक तैयार किया जाता है। इसमें वित्तीय कल्याण, सामाजिक कल्याण, स्वास्थ्य प्रणाली और आय सुरक्षा शामिल हैं। इनमें आर्थिक सशक्तिकरण, शैक्षिक प्राप्ति और रोजगार, सामाजिक स्थिति, शारीरिक सुरक्षा, बुनियादी स्वास्थ्य, मनोवैज्ञानिक कल्याण, सामाजिक सुरक्षा और सक्षम वातावरण जैसे आठ उप मानक भी शामिल हैं।
इंस्टीट्यूट फार कम्पिटिटिवनेस के अध्यक्ष अमित कपूर ने कहा देश में बूढ़ी होती आबादी के निहितार्थ को समझने के लिए एक उचित निदान उपकरण के बिना, बुजुर्गों के लिए योजना बनाना नीति निर्माताओं के लिए एक चुनौती बन सकता है।