Raj Kapoor Death Anniversary: 'शोमैन' राज कपूर ने नीली आंखों से बेचे सच्चे सपने
Raj Kapoor Death Anniversary नए आजाद भारत में राजकपूर नेहरू के समाजवाद से प्रेरित थे। अपने सिनेमा में उन्होंने इस विचार को नया क्षितिज दिया।
शारदा शुक्ला। Raj Kapoor Death Anniversary: राजकपूर किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। उनकी फिल्में आज भी हर उम्र वर्ग के दिलों को छूती हैं। उनके विषय आज भी उतने ही उपयोगी हैं जितने उस काल में थे जब उन्हें सोचा और बुना गया। वह आजादी के बाद नए भारत के नेहरूवादी समाजवाद से प्रेरित थे। चूंकि उनका अस्त्र सिनेमा था इसलिए उस समाजवाद को उन्होंने सिनेमा के जरिये दिखाया। उनकी फिल्में एक वर्ग के पूरे मनोविज्ञान को लेकर आगे बढ़ती हैं। उनका युवा नायक प्रेम में सारी सीमाएं लांघ जाता है।
वह डिग्री हाथ में लिए नौकरी के लिए धक्के खाता फिरता है। लांड्री में कपड़े प्रेस करता है। जुआरी-पॉकेटमार बनता है। वह रोटी के लिए संघर्ष करते-करते जेल की सलाखों के पीछे पहुंच जाता है। वह गलत होते हुए भी सहानुभूति का पात्र है। विषय की यही व्यापकता राजकपूर को देश-काल के परे ले जाती है और वह सोवियत रूस से लेकर चीन तक लोकप्रिय हो जाते हैं। ‘आवारा’ माओ त्से तुंग की पसंदीदा फिल्म थी। राजकपूर का सिनेमा विराट था। उसका कैनवस इतना बड़ा होता था कि उसमें संगीत, कहानी, विषय, कॉस्ट्यूम, लोकेशन, कैमरा, एडिटिंग, लाइटिंग सब कुछ विशाल और कलात्मक होते थे। यहां तक कि कैमरा कितना जूम इन करेगा, दृश्य कैसे फेड आउट हो रहा है, उसमें भी एक कहानी छिपी होती थी।
उनका फिल्माया गीत-प्यार हुआ इकरार हुआ है, प्यार से फिर क्यों डरता है दिल-हिंदी सिनेमा के अब तक के सबसे रोमांटिक गीतों में से एक है। राजकपूर की एक फिल्म है ‘जागते रहो’ जिसने उन्हें वैश्विक पटल पर पहचान दिलाई। उसे कालरेरीवेरी अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में सर्वश्रेष्ठ फिल्म का ग्रैंड प्रीं पुरस्कार मिला। श्री 420, चोरी चोरी, अनाड़ी, नीलकमल, बरसात, दास्तान, बावरे नैन, सरगम, बेवफा, छलिया, जिस देश में गंगा बहती है, दिल ही तो है, संगम, तीसरी कसम, मेरा नाम जोकर, प्रेम रोग, सत्यम् शिवम् सुंदरम् राजकपूर की कुछ सफल और चर्चित फिल्में हैं। ऐसा नहीं है कि राजकपूर ने कभी असफलता का स्वाद नहीं चखा।
शुरुआती दौर में दिल की रानी, चितौड़ विजय, अमर प्रेम, उनकी असफल फिल्में थीं। ‘आग’ के लिए तो यहां तक कहा गया कि इस फिल्म में उनका सब कुछ जलकर खाक हो गया था। हां यह बात और है कि वषों बाद इसी फिल्म को उन्होंने दोबारा थोड़े बहुत फेरबदल के साथ बनाया। नाम दिया ‘सत्यम् शिवम् सुंदरम्’ जो बॉक्स ऑफिस पर बेहद सफल रही। वर्ष 1987 में वह दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड से नवाजे गए। उन्हें 1971 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। राजकपूर हिंदी सिनेमा के पहले शोमैन थे। 2 जून, 1988 को सिर्फ 63 साल की उम्र में वह हमें अलविदा कह गए, लेकिन खेल में न होते हुए भी वह महफिल में मौजूद हैं और मौजूदगी भी ऐसी कि दर्शकों की नजर उनसे हटती ही नहीं।
वरिष्ठ पत्रकार