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हवन की लकड़ियां बेचकर 20 हजार महिलाओं ने बदली किस्मत, दमका घर-संसार

महिला चमेली ध्रुव ने जिंदगी को ऐसी राह दिखाई कि मिट्टी के मोल बिकने वाली लकड़ियां आज सोना बन गई हैं। इससे होने वाली आमदनी से हजारों महिलाओं का घर-संसार दमक रहा है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 12 Sep 2018 09:40 AM (IST)Updated: Wed, 12 Sep 2018 09:41 AM (IST)
हवन की लकड़ियां बेचकर 20 हजार महिलाओं ने बदली किस्मत, दमका घर-संसार
हवन की लकड़ियां बेचकर 20 हजार महिलाओं ने बदली किस्मत, दमका घर-संसार

रायपुर [मधुकर दुबे]। शुरुआत की गई थी आम की एक अदद लकड़ी से, मगर आज नवग्रह की लकड़ियों के सहारे करीब 20 हजार मनरेगा महिला मजदूरों ने अपनी तकदीर बदल डाली है। जो महिलाएं कभी दो वक्त की रोटी को मोहताज थीं, आज करीब पांच करोड़ रुपये का सालाना कारोबार कर रही हैं। एक सामान्य सी महिला चमेली ध्रुव ने जिंदगी को ऐसी राह दिखाई कि मिट्टी के मोल बिकने वाली लकड़ियां आज सोना बन गई हैं। इससे होने वाली आमदनी से हजारों महिलाओं का घर-संसार दमक रहा है।

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सफलता की यह कहानी कम रोचक नहीं है। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से सटे गांव बरतोरी की मजदूर महिलाओं के हाथों को जब काम नहीं होता था, गृहस्थी चलाने के लिए वे आम के पेड़ की टहनियां तोड़कर रायपुर के गोल बाजार की हवन सामग्रियों की दुकानों पर एक रुपये किलो की दर से बेच आती थीं। इस बीच चमेली ध्रुव ने सभी को जंगल ले जाकर नवग्रह की लकड़ियों की पहचान कराई और बताया कि इन्हें बेचकर काफी रुपया कमाया जा सकता है। सलाह दी कि बड़ी सफलता के लिए समूह बनाकर काम करना होगा। फिर क्या था। बारह महिलाओं के नवज्योति स्वसहायता समूह की नींव पड़ी। उन्होंने नवग्रह की लकड़ियों की कीमत तय की।

आम की जो लकड़ियां पहले एक रुपए किलो में बेचती थीं, उसे पांच रुपये किलो कर दिया। वहीं नवग्रह की 250 ग्राम लकड़ियों का रेट 20 रुपये। इनकी कर्मठता देख अंतत: राष्ट्रीय आजीविका मिशन मदद को आगे आया और आज वे समूह की महिलाओं को बाजार उपलब्ध करा रहे हैं। इनकी ही तर्ज पर जिले के आठ हजार 954 स्वसहायता समूह से जुड़ीं एक लाख 79 हजार 80 महिलाओं में करीब 20 हजार मजदूर महिलाएं नवग्रह की लकड़ी के व्यवसाय में जुड़ गईं हैं।

चमेली की एक छोटी सी शुरुआत और दिखाई गई राह की बदौलत आज समूह की महिलाओं द्वारा संग्रहित नवग्रह की लकड़ियों का सालाना कारोबार करीब पांच करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। छत्तीसगढ़ ही नहीं, ओडिशा और आंध्र प्रदेश तक इसकी काफी मांग है। समूह की राजेश्वरी ध्रुव, लीला, भारती सेन, सतरूपा, कृतिका, निर्मला, सोसिल साहू, दुलारी वर्मा, चमेली साहू, फूलकंवर सोन व सोनवती साहू के मार्गदर्शन में आज जिले की हजारों महिलाओं ने नवग्रह की लकड़ियों की बदौलत जिंदगी को आसान बना लिया है।

समूह की सतरूपा व कृतिका ने बताया कि जब से नवग्रह की लकड़ियों का रोजगार अपनाया है, हालात बदल गए हैं। बच्चों को अच्छे से पढ़ा-लिखा पा रही हैं। कोई जरूरी काम आ जाए तो कर्ज के लिए साहूकारों के सामने हाथ नहीं फैलाना पड़ता।

नवग्रह की लकड़ियों में ये शामिल

आम, फुडहर, बरगद, पीपल, बेर, बेल, चिरचिटा, डूमर और खैर। नवग्रह शांति व पूजापाठ के निमित्त किए जाने वाले हवन में इनका ही उपयोग किया जाता है।  


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