जापानी बटेर से ज्यादा कमाई कर सकेंगे छत्तीसगढ़ के किसान
कृषि विज्ञानियों के अनुसार कड़कनाथ मुर्गे की तरह बटेर का पालन किया जा सकता है। इससे किसानों की आमदनी बढ़ेगी।
रायपुर, जेएनएन। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के कृषि विज्ञान केंद्र महासमुंद में जापानी बटेर के अधिक से अधिक उत्पादन में सफलता मिली है। जापानी बटेर के अंडों से निकलने वाले चूजों में से 10 फीसद भी नहीं बचते थे। इसे देखते हुए कृषि विज्ञानियों ने कृत्रिम हेचिंग मशीन के जरिए 80 फीसद तक चूजे बचा लिए। 100 स्क्वेयर फीट के पिंजरे में 45 दिनों में 500 चूजे तैयार किए जा रहे हैं। कृषि विज्ञानियों के अनुसार कड़कनाथ मुर्गे की तरह बटेर का पालन किया जा सकता है। इससे किसानों की आमदनी बढ़ेगी। अब बटेर के चूजे सभी गोठानों में भेजे जा रहे हैं और इसके पालन के लिए स्व- सहायता समूहों की महिलाओं को प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
कृषि विज्ञान केंद्र महासमुंद के वरिष्ठ विज्ञानी डॉ. सतीश वर्मा के मुताबिक बटेर के अधिक उत्पादन के लिए बिछावन और पिंजरा पद्धति से बटेरों को ठंड और और बारिश से बचाया जाता है। उन्हें कैल्शियम युक्त दाना खिलाया जाता है। कई पौष्टिक तत्व बटेर एक ग्रे-ब्राउन रंग की चिडि़या होती है, जिनके अंडों पर भूरे रंग के धब्बे होते हैं। जापान और ब्रिटेन में बड़े पैमाने पर मांस और अंडा के लिए पाले जाने वाले जापानी बटेर को जापानीज क्वायल कहते हैं।
विशेषज्ञों के मुताबिक बटेर के अंडे, मांस में संतुलित मात्रा में अमीनो अम्ल, विटामिन, वसा के साथ खनिज पदार्थ अच्छी मात्रा में होते हैं। बटेर के अंडे जापान, कोलंबिया, इक्वाडोर, वेनेजुएला सहित कई देशों में खाए जाते हैं। छत्तीसगढ़ और पड़ोसी राज्यों ओडिशा, महाराष्ट्र में बटेर के चूजों की भारी मांग है। 15 से 20 डिग्री सेल्सियस तापमान अनुकूल बटेर पालन के लिए 15 से 20 डिग्री सेल्सियस तापमान अनुकूल होता है। आर्द्रता 40 से 70 प्रतिशत होनी चाहिए। चूजे का वजन पांच सप्ताह में 200 ग्राम के आसपास हो जाता है। छह सप्ताह में मादा बटेर अंडे देने लगती हैं। एक वर्ष में औसतन 250-280 अंडे देती हैं। अंडे का वजन 10 से 12 ग्राम होता है। एक बटेर के पालन में शुरू के 45 दिनों में 35 से 40 रपये खर्च आता है। बाजार में एक बटेर की कीमत 80 से 85 रपये है। वर्जन किसान जापानी बटेर का पालन करेंगे तो उनकी आमदनी बढ़ेगी। सभी जिलों में इसका प्रशिक्षण भी दिया जाएगा। -डॉ. एसके पाटिल, कुलपति, कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर