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Indian Railway: सरकार के फैसले से नाराज रेलवे यूनियन, राष्ट्रीय स्तर पर आंदोलन की तैयारी

निजीकरण के प्रयासों पर हल्का-फुल्का विरोध जताती आई ये यूनियने अब सरकार के विरुद्ध बड़े आंदोलन तथा चक्का जाम की रूपरेखा बनाने में जुट गई हैं।

By Manish PandeyEdited By: Published: Sun, 05 Jan 2020 08:17 PM (IST)Updated: Sun, 05 Jan 2020 08:17 PM (IST)
Indian Railway: सरकार के फैसले से नाराज रेलवे यूनियन, राष्ट्रीय स्तर पर आंदोलन की तैयारी
Indian Railway: सरकार के फैसले से नाराज रेलवे यूनियन, राष्ट्रीय स्तर पर आंदोलन की तैयारी

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। काडर मर्जर के सरकार के निर्णय ने रेलवे यूनियनों को एकजुट होने के लिए मजबूर कर दिया है। अभी तक निजीकरण और निगमीकरण के प्रयासों पर हल्का-फुल्का विरोध जताती आई ये यूनियने अब सरकार के विरुद्ध बड़े आंदोलन तथा चक्का जाम की रूपरेखा बनाने में जुट गई हैं। इसमें उन्होंने आम जनता का भी सहयोग लेने का निर्णय लिया है।

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रेलवे की सबसे बड़ी यूनियन आल इंडिया रेलवेमेंस फेडरेशन (एआइआरएफ) ने इस संबंध में एक बयान जारी किया है। इसमें सुधारों के नाम पर रेलवे के निजीकरण और निगमीकरण के प्रयासों के विरुद्ध सरकार को आगाह किया गया है। एआइआरएफ के महासचिव शिवगोपाल मिश्रा ने कहा है कि भारतीय रेल पिछले 165 सालों ने देश की जनता की सेवा करती आ रही है। इस दौरान इसने अनेक चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना किया है। लेकिन मौजूदा सरकार नित नए प्रयोगों के जरिए इस सुस्थापित ढांचे को तोड़ने में जुटी है। इससे रेलवे का कोई भला तो होगा नहीं, उलटे वो गहरे संकट में फंस जाएगी, जिससे जल्दी निकलना मुश्किल होगा।

विश्व के जिन देशों ने भी रेलवे का निजीकरण किया गया, उन्हें पुन: राष्ट्रीयकरण को विवश होना पड़ा। ब्रिटेन ने 1989 में रेलवे का निजीकरण किया था। लेकिन अब रेलवे को चलाए रखने के लिए वहां की सरकार को पांच-छह गुना ज्यादा राशि खर्च करनी पड़ रही है। अर्जेटीना को भी दुर्घटनाओं में बढ़ोतरी के बाद 2015 में रेलवे का फिर से राष्ट्रीयकरण करना पड़ा। न्यूजीलैंड ने 1980 में रेलवे का निजीकरण किया था। परंतु भारी घाटे के बाद 2008 में पुन: राष्ट्रीयकरण को मजबूर हुआ। यही स्थिति आस्ट्रेलिया में भी देखी गई जहां 'गिव अवर ट्रैक बैक' आंदोलन के बाद सरकार ने रेलवे को फिर अपने हाथों में लिया है।

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद रूस, कनाडा, जर्मनी, आयरलैंड, इटली, स्पेन आदि ज्यादातर देशों ने अपनी प्राइवेट रेलों का राष्ट्रीयकरण किया था और इन सभी देशों में रेलें सरकार के स्वामित्व में संचालित हो रही हैं। फ्रांस में भी 51 फीसद रेल सेवाएं सरकार के अधीन संचालित हो रही हैं। ब्रिटेन, अर्जेटीना, न्यूजीलैंड और आस्ट्रेलिया की जनता को सरकार के गलत फैसलों के दुष्परिणाम अब तक भुगतने पड़ रहे हैं।

दूसरी प्रमुख यूनियन नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन रेलवेमेन (एनएफआइआर) ने भी सरकार को चेतावनी दी है। इसके महासचिव एम. राघवैया ने कहा है कि रेलवे को यात्री यातायात में जो 35 हजार करोड़ रुपये का सालाना घाटा कम लागत पर सेवाएं देने और किराया बढ़ोतरी को लंबे अरसे तक टालने के कारण हो रहा है। दोनों यूनियनो ने पिछले दिनो सरकार की ओर से बुलाई गई विभागीय संयुक्त परामर्श परिषद की बैठक का बहिष्कार किया। उनका कहना है कि स्टेशन विकास और ट्रेन संचालन में निजी कंपनियों को मौका देने का कोई बड़ा लाभ अब तक सामने नहीं आया है। इसके बावजूद सरकार रेल कारखानों के निगमीकरण की मुहिम में जुटी है। पिछले दिनो 'परिवर्तन संगोष्ठी' में जिस तरह कर्मचारियों की संख्या को पहले 30 फीसद और फिर 50 फीसद तक घटाने, यूनियन नेताओं को अहम पदों से हटाने या रिटायर करने तथा यात्री टिकटों पर सामाजिक रियायतों को खत्म करने के प्रस्ताव पारित किए गए उनसे भी यूनियनों के कान खड़े हो गए हैं। प्रमुख यूनियनों से जुड़ी क्षेत्रीय यूनियनों तथा अन्य विभागीय यूनियनों में भी रेलवे में रोजाना हो रही उलटफेर को लेकर आक्रोश बढ़ रहा है।


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