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आरपीएफ को रेलवे अतिक्रमण हटाने का अधिकार ही नहीं है, लिहाजा इसे दोष देना सही नहीं

रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण की समस्‍या की दो बड़ी वजह हैं पहली बाढ़ और दूसरी अग्निकांड। तीसरी बड़ी समस्‍या मुकदमेबाजी है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Mon, 14 Sep 2020 10:16 AM (IST)Updated: Mon, 14 Sep 2020 10:16 AM (IST)
आरपीएफ को रेलवे अतिक्रमण हटाने का अधिकार ही नहीं है, लिहाजा इसे दोष देना सही नहीं
आरपीएफ को रेलवे अतिक्रमण हटाने का अधिकार ही नहीं है, लिहाजा इसे दोष देना सही नहीं

सुबोध जैन। सरकारी हो या निजी जमीन, बिना चारदीवारी या फेंसिंग के अगर खाली पड़ी है तो जबरन दखल होते देर नहीं होती। रेलवे दो तरह के अतिक्रमण से ग्रस्त है। एक तो बाहरी अतिक्रमण है जो रेल लाइन के किनारे दिखता है और दूसरा है आंतरिक जो विभिन्न रेलवे कोलनियों और रेलवे की अन्य जमीनों पर है जो कि रेलवे के कर्मचारियों द्वारा ही किया गया है। रेल लाइन के किनारे अतिक्रमण होने की दो मुख्य वजह है। एक बाढ़ और दूसरा है अग्निकांड। मैं रेलवे के कई अहम पदों पर वर्षों तक रहा हूं। अतिक्रमण हटवाने की जिम्मेदारी भी संभाली है। इस दौरान मैंने पाया कि कहीं बाढ़ आ जाए तो लोग रेल लाइन के किनारे रहने के लिए पहुंच जाते हैं। कभी किसी बस्ती में आग लग गई तो लोग रेललाइन के किनारे रहने आ जाते हैं। परंतु, बाढ़ और अग्निकांड के बाद भी कई लोग ऐसे होते हैं जो अपनी पुरानी जगह पर नहीं लौटते और धीरे-धीरे रेल लाइन के किनारे झुग्गी बस्तियां बसती चली जाती हैं।

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अतिक्रमण के मामले में सबसे बड़ी दिक्कतों में एक है मुकदमेबाजी। जैसा कि कोर्ट में करीब 70 फीसद ऐसे मुकदमे हैं जो या तो सरकार के द्वारा है या फिर सरकार पर है। यही वजह है कि अतिक्रमण को खत्म करना संभव नहीं हो रहा है। 1986-87 में बांबे हाईकोर्ट ने कहा था कि रेल लाइन के दस मीटर के दायरे में जो भी झुग्गी या निर्माण है उसे जबरन हटाया जा सकता है। क्योंकि, उसमें साफ कहा गया था कि चाहे किसी को कोई भी मूलभूत अधिकार क्यों न हो वह नागरिक सुरक्षा से बड़ी नहीं हो सकती। परंतु, देखा जाता है कि जमीन भी राज्य का मामला है और पुलिस भी राज्य का मामला है। रेलवे जब भी कोर्ट से अतिक्रमण हटाने के लिए आर्डर ले आती है तो भी उस पर अमल के लिए राज्य सरकार की मदद नहीं मिलती।

रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) की बात करें तो जमीन अतिक्रमण रोकना आरपीएफ के क्षेत्राधिकार में है ही नहीं। क्योंकि आरपीएफ के पास सिर्फ एक ही एक्ट रेलवे प्रोपर्टी ऑनलॉफूल पॉजेशन(आरपीयूपी) है जिसमें जमीन पर अतिक्रमण रोकने का अधिकार आरपीएफ को नहीं है। इसीलिए आरपीएफ को दोष देना सही नहीं है। हालांकि, ऐसा नहीं है कि जमीनों पर अतिक्रमण में रेलवे के अधिकारी व कर्मचारी की मिलीभगत नहीं होती। जरूरी है कि इस अतिक्रमण को रोकने के लिए प्रभावित इलाकों की फेंसिंग की जाए। नहीं तो हटा भी दिए गए तो कुछ दिनों में फिर से अतिक्रमण हो जाता है। जमीनों की देखरेख के लिए जो रेल लैंड डेवलपमेंट अथॉरिटी (आरएलडीए) बनाई गई है उसे और भी मजबूत करना होगा और इसके दायरे बढ़ाने होंगे। क्योंकि अभी आरएलडीए के पास सिर्फ रेल की जमीन को लीज पर देने का जिम्मा है। रेलवे के कर्मी स्टेशनों पर होते हैं। दो स्टेशनों के मध्य में नहीं होते। ऐसे में वहां निगरानी गैंगमैन रखते हैं, लेकिन देखा जाता है कि गैंगमैन खुद ही अतिक्रमण करता है और कराता भी है।

(पूर्व सदस्य,भारतीय रेलवे बोर्ड (इंजीनियरिंग)


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