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प्रतिद्वंद्वियों की चाल से सीबीआइ के जाल में फंसे महेश कुमार

मुबंई [ओमप्रकाश तिवारी]। शुक्रवार को देर रात सीबीआई द्वारा गिरफ्तार किए गए रेलवे बोर्ड के सदस्य महेश कुमार की निगाहें कुछ माह बाद खाली हो रहे रेलवे बोर्ड अध्यक्ष की कुर्सी पर थीं। कहा जा रहा है कि इस कुर्सी के दूसरे दावेदारों की साजिश ने उन्हें सलाखों के पीछे पहुंचा दिया।

By Edited By: Published: Sat, 04 May 2013 06:46 PM (IST)Updated: Sat, 04 May 2013 07:48 PM (IST)
प्रतिद्वंद्वियों की चाल से सीबीआइ के जाल में फंसे महेश कुमार

मुबंई [ओमप्रकाश तिवारी]। शुक्रवार को देर रात सीबीआई द्वारा गिरफ्तार किए गए रेलवे बोर्ड के सदस्य महेश कुमार की निगाहें कुछ माह बाद खाली हो रहे रेलवे बोर्ड अध्यक्ष की कुर्सी पर थीं। कहा जा रहा है कि इस कुर्सी के दूसरे दावेदारों की साजिश ने उन्हें सलाखों के पीछे पहुंचा दिया।

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बताया जाता है कि 30 जून को खाली हो रहे इस पद के लिए रेलवे बोर्ड के एक वर्तमान सदस्य सहित कुछ और दावेदार भी थे। इनमें से दो व्यक्ति महेश कुमार से वरिष्ठ थे। महेश कुमार अपने अब तक के शानदार रिकॉर्ड और रेल मंत्री के निकट संबंधियों से अपनी करीबी के कारण अध्यक्ष पद के मजबूत दावेदार बनकर उभर रहे थे। लेकिन इस पद तक पहुंचने का रास्ता रेल बोर्ड की सदस्यता से होकर जाता है। इसलिए उन्हें फिलहाल कुछ समय के लिए सदस्य [स्टाफ] बनाकर बोर्ड में लाया गया। सूत्रों के अनुसार ऐसे पदों पर होने वाली नियुक्तियां बिना लेनदेन के नहीं होतीं, यह जानते हुए अध्यक्ष पद के अन्य दावेदारों में से किसी ने सीबीआई को यह सुराग दे दिया । जिसके आधार पर सीबीआई ने टेलीफोन टैपिंग का जाल बिछाकर महेश कुमार, विजय सिंगला, संदीप गोयल और मंजुनाथ इत्यादि को धर दबोचा।

पश्चिम रेलवे के महाप्रबंधक जैसे महलवपूर्ण पद पर रहते हुए महेश कुमार ने रेल बोर्ड की सदस्यता के लिए मंजुनाथ नामक व्यक्ति को लेनदेन की जिम्मेदारी सौंपी। मंजुनाथ उस समय से महेश कुमार के संपर्क में है, जब वह बेंगलूर में मंडल रेल प्रबंधक की जिम्मेदारी संभाल रहे थे। बताया जाता है कि मंजुनाथ रेल पटरियों के किनारे लगाए जाने वाले एक्सेल काउंटर बनाने का काम करता है और महेश कुमार की निकटता के कारण उसे अपना व्यवसाय चमकाने में मदद मिली है। रेल विभाग की बहुकरोड़ीय योजनाओं पर नजर रखते हुए ही उसने महेश कुमार को आगे बढ़ाने के लिए उस लेनदेन का जिम्मा संभाला, जिसमें उसके साथ-साथ महेश कुमार और रेलमंत्री के भांजे विजय सिंगला भी सीबीआई के फंदे में आ गए हैं।

पहले फोटो छपवाया, फिर चेहरा छिपाया

नई दिल्ली। महेश कुमार चंद दिन पहले जब पश्चिम रेलवे के महाप्रबंधक से रेलवे बोर्ड के सदस्य [स्टाफ-एचआर] बने थे, तो उनके मातहत अफसरों ने इसे उनकी उपलब्धि बताते हुए मीडिया के लिए उनकी फोटो भी जारी की थी। बाद में जब वह रेल मंत्री पवन बंसल के भांजे को 90 लाख रुपये की रिश्वत पहुंचाने के आरोप में पकड़े गए तो उन्हें अपना चेहरा छिपाने में खासी मशक्कत करनी पड़ी। टीवी कैमरों के हुजूम के बीच उन्होंने एक रुमाल के सहारे खुद का चेहरा छिपाने की तमाम कोशिश की, लेकिन नाकाम रहे।

महेश कुमार ने 1975 में रुड़की से इलेक्ट्रानिक्स एंड कम्यूनिकेशंस इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल की थी। उसी साल उन्होंने रेलवे में सिग्नल इंजीनियर्स सेवा (आइआरएसएसई) ज्वाइन की। माना जाता है कि उन्हें तकनीकी, परियोजना और प्रशासन संबंधी गहरा अनुभव है। उनका नाम गिनीज बुक आफ व‌र्ल्ड रिकार्ड में भी दर्ज है, क्योंकि उन्होंने महज 36 घंटे के भीतर पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन में दुनिया की सबसे बड़ी रूट रिले इंटरलाकिंग प्रणाली स्थापित की थी। उन्हें दोहरीकरण परियोजना को रिकार्ड समय में पूरा करने, कोहरे के समय काम आने वाली आटोमैटिक सिग्नलिंग स्थापित करने और रेलवे की लोकप्रिय 139 पूछताछ सेवा प्रारंभ करने का श्रेय भी जाता है।

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