रघुराम राजन को मिल सकता है अर्थशास्त्र नोबेल, इसलिए चुना गया उनका नाम
थॉमसन रायटर्स की इकाई रह चुकी क्लैरिवेट एनालिटिक्स ने शोध पत्रों के आधार पर संभावित नोबेल पुरस्कार विजेताओं की सूची तैयार की है।
नई दिल्ली, एजेंसी। भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन को इस साल का अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार मिल सकता है। क्लैरिवेट एनालिटिक्स ने छह संभावितों की जो सूची तैयार की है, उसमें राजन का भी नाम है। सोमवार को इस पुरस्कार का एलान स्टॉकहोम में किया जाएगा।
थॉमसन रायटर्स की इकाई रह चुकी क्लैरिवेट एनालिटिक्स ने शोध पत्रों के आधार पर संभावित नोबेल पुरस्कार विजेताओं की सूची तैयार की है। क्लैरिवेट एनालिटिक्स अकादमिक और साइंटिफिक रिसर्च कंपनी है। वह अपने शोध के आधार पर नोबेल पुरस्कार के संभावित विजेताओं की सूची तैयार करती है। उसकी वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक, पिछले 15 सालों में उसके चुने गए अर्थशास्ति्रयों में से 45 नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित हुए।
राजन का नाम इसलिए चुना गया
कॉर्पोरेट फाइनेंस के क्षेत्र में किए गए काम के लिए राजन का नाम सूची में आया है। माना जाता है कि राजन ने वर्ष 2008 में आई अमेरिका में मंदी की भविष्यवाणी बहुत पहले ही कर दी थी। इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ा था। राजन ने वर्ष 2005 में अमेरिका में अर्थशास्त्री और बैंकरों की प्रतिष्ठित वाषिर्षक सभा में शोध पत्र पढ़ा था। इसमें उन्होंने आर्थिक मंदी का अनुमान जताया था, जिसका उस समय मजाक उड़ाया गया। मगर तीन साल बाद यह भविष्यवाणी सच साबित हो गई। रघुराम राजन ने अपने शोध पत्र में कहा था कि वित्तीय बाजार विकसित होकर अधिक जटिल और कम सुरक्षित हो गए हैं।
नोटबंदी की आलोचना कर चुके हैं राजन
रघुराम राजन 4 सितंबर 2016 तक रिजर्व बैंक के गवर्नर रहे। इस पद से हटने के बाद उन्होंने अपनी किताब 'आई डू व्हाट आई डू' में खुलासा किया कि उन्होंने फरवरी 2016 में नोटबंदी के प्रस्ताव का विरोध किया था। उनका मानना था कि लंबे समय में इसके फायदे हो सकते हैं, लेकिन अल्प अवधि में अर्थव्यवस्था को नुकसान होगा। सरकार ने राजन के सुझाव को नहीं माना और 8 नवंबर 2016 को 500 और 1000 के नोट बंद करने का एलान कर दिया।
कौन हैं रघुराम राजन
3 फरवरी 1963 को भोपाल में जन्मे रघुराम राजन अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की दुनिया में बड़ा नाम है। आईआईटी दिल्ली से ग्रेजुएट राजन 40 की सबसे कम उम्र में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष में मुख्य अर्थशास्त्री व अनुसंधान निदेशक बन गए थे। सितंबर 2013 से सितंबर 2016 के बीच वह भारतीय रिजर्व बैंक के 23वें गवर्नर रहे। वर्तमान में वह बतौर फैकल्टी शिकागो यूनिवर्सिटी के बूथ स्कूल ऑफ बिजनेस में पढ़ा रहे हैं। वर्ष 2013 में रुपए को संकट से उबारने में किए गए योगदान के लिए ब्रिटिश पत्रिका सेंट्रल बैंकिंग का सेंट्रल बैंकर ऑफ द ईयर अवॉर्ड मिल चुका है।
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