त्वरित न्याय के लिए छटपटाहट: जब सब चिंतित, सब मुस्तैद, तो फिर न्याय में देरी क्यों
न्याय में देरी के लिए न्यायपालिका पर उंगलियां उठ रही हैं। सरकारी और गैर-सरकारी रिपोर्ट बताती है कमी कहां हैं और उससे निपटने के लिए क्या करने की जरूरत है।
माला दीक्षित, नई दिल्ली। हैदराबाद में महिला डाक्टर से दुष्कर्म कर जलाने वाले आरोपियों के पुलिस मुठभेड़ में मारे जाने पर आम जनता के खुशी जताने को न्याय का इंतजार करती जनता की हताशा और त्वरित न्याय के लिए छटपटाहट करार दिया जा रहा है। न्याय में देरी के लिए न्यायपालिका पर उंगलियां उठ रही हैं। घटना के बाद न्यायपालिका के मुखिया, कानून मंत्री और जिस पुलिस ने मुठभेड़ में आरोपियों को मार गिराया है उसके आला अधिकारियों तक के बयान आ चुके हैं सब अपनी जिम्मेदारी का अहसास करते हुए चिंता जता चुके हैं।
फिर न्याय में देरी क्यों
सवाल उठता है कि जब अपराध काबू करने वाले, अपराध के लिए दंड विधान करने और अपराधी को सजा देकर अंजाम तक पहुंचाने वाले, सब चिंतित, सजग और मुस्तैद है तो फिर न्याय में देरी क्यों हो रही है। इसका कारण आम जनता को मालूम हो या न हो, लेकिन न्याय प्रदान प्रणाली में शामिल संस्थाओं को मालूम है। सरकारी और गैर-सरकारी हर रिपोर्ट बताती है कि कमी कहां हैं और उससे निपटने के लिए क्या करने की जरूरत है।
न्यायपालिका की कार्यक्षमता बढानी होगी, देश में तीन करोड़ मुकदमे लंबित हैं
गत चार जुलाई को आए आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि जीरो पेन्डेंसी का लक्ष्य पाने के लिए न्यायपालिका की मौजूदा कार्यक्षमता बढाने और न्यायाधीशों के खाली पड़े पदों को भरने के अलावा अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त करने होंगे। यानी समस्या और समाधान दोनों मालूम हैं। पिछले साल के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अभी देश में 10 लाख की आबादी पर औसतन 19 जज हैं। देश भर की अदालतों में करीब तीन करोड़ मुकदमे लंबित हैं इन्हें जल्दी निबटाने के लिए जजों की संख्या बढ़ाना तो भविष्य की बात है अभी तो मंजूर पदों मे ही 5000 से ज्यादा खाली हैं। इसके अलावा 25 हाईकोर्ट में न्यायाधीशों के कुल मंजूर पद 1079 हैं जिनमें 410 रिक्त हैं। सबसे ज्यादा रिक्तियां इलाहाबाद हाईकोर्ट में हैं जहां 160 में से 60 खाली पड़े हैं। सुप्रीम कोर्ट में कुल पद 34 हैं जिसमें एक खाली है।
आर्थिक सर्वेक्षण ने दिया न्यायिक सुधार पर जोर
लंबित न्याय की समस्या का विश्लेषण करके आर्थिक सर्वेक्षण में हल पेश किया गया है। उसमें न्यायिक सुधार पर जोर देते हुए पांच साल में मुकदमों की 100 फीसद निस्तारण दर हासिल करने और पुराने मुकदमों का ढेर खत्म करने के लिए कार्यक्षमता बढ़ाने और अतिरिक्त जजों की जरूरत बताई गई है। जिला एवं सत्र न्यायालयों में दिसंबर 2018 तक कुल 3.04 करोड़ मुकदमें लंबित थे। यहां जजों के कुल 22750 पद मंजूर हैं जिनमें से मात्र 17819 (79 फीसद) काम कर रहे हैं बाकी खाली हैं। एक जज वर्ष भर में औसतन 746 मुकदमे निपटाता है।
100 फीसद निस्तारण दर प्राप्त करने के लिए 2279 जजों की और जरूरत
ऐसे में 100 फीसद निस्तारण दर प्राप्त करने के लिए 2279 जजों की और जरूरत है। इसके अलावा पांच साल में सभी लंबित मुकदमें खत्म करने के लिए 8152 अतिरिक्त जज चाहिए होंगे। इसी तरह उच्च न्यायालयों में पेंडेंसी खत्म करने के लिए 361 अतिरिक्त जजों की जरूरत है। पूर्वी राज्यों बिहार, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में मुकदमों की निस्तारण दर बहुत खराब है ऐसे में अतिरिक्त जजों की नियुक्ति में इन राज्यो को प्राथमिकता देने की जरूरत बताई गई है।
बच्चों के यौन उत्पीड़न के मुकदमों को जल्द निपटाने के लिए 1023 फास्ट ट्रैक कोर्ट गठित होंगे
हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के पद भरने में सरकार की भूमिका सीमित होती है फिर भी कई बार कोलीजियम की सिफारिशें लंबे समय तक स्पष्टीकरण के आदान प्रदान में लटकी रहती हैं। केंद्र सरकार ने दुष्कर्म और पोस्को कानून में बच्चों के यौन उत्पीड़न के मुकदमों को जल्द निपटाने के लिए 1023 फास्ट ट्रैक कोर्ट स्थापित करने की केंद्र प्रायोजित योजना लागू कर रही है। इसमें कुल 767.25 करोड़ का खर्च आएगा जिसमे से केन्द्र 474 करोड़ देगी। निश्चित तौर पर इससे स्थिति में कुछ सुधार होगा। इसमें 218 फास्ट ट्रैक कोर्ट उत्तर प्रदेश में बनाने का प्रस्ताव है। इस पर प्रदेश सरकार के निर्णय का इंतजार हो रहा है।
इंडिया जस्टिस रिपोर्ट ने भी पुलिस, जेल और न्यायपालिका में खाली पड़े पदों को उजागर किया
अभी हाल में टाटा ट्रस्ट की इंडिया जस्टिस रिपोर्ट आयी है इसमें भी जस्टिस सिस्टम में खाली पड़े पदों की बात है। यह रिपोर्ट पुलिस, जेल और न्यायपालिका तीनों का अध्ययन कर स्थिति पेश करती है। रिपोर्ट के मुताबिक पुलिस महकमें में 22 फीसद, जेलों में 33 से 38 फीसद और न्यायपालिका में 20 से 40 फीसद तक पद खाली हैं। हालांकि न्यायपालिका का आंकड़ा 2016-17 तक का है।
भारत में न्यायपालिका पर जीडीपी का 0.08 फीसद खर्च होता है
रिपोर्ट मे यह भी कहा गया है कि देश में जजों के मंजूर पदों के हिसाब से मार्च 2018 तक 4071 कोर्ट कक्षों की कमी थी। रिपोर्ट व्यवस्था में सुधार की जरूरत पर बल देती है। यह रिपोर्ट न्यायपालिका पर होने वाले खर्च की भी तस्वीर पेश करती है। जिसके मुताबिक भारत में न्यायपालिका पर जीडीपी का 0.08 फीसद खर्च होता है। सिर्फ दिल्ली को छोड़ कर जहां 1.9 फीसद बजट है, बाकी सभी राज्य और केन्द्र शासित प्रदेश न्यायपालिका पर 1 फीसद से कम खर्च करते हैं।