पाकिस्तान में सरकार के खिलाफ सुलग रही चिंगारी, बाबा को रिहा करवाने सड़क पर हो रहा संग्राम
बाबा जान उस शख्स का नाम है जो ये कहता है कि गिलगिट-बाल्टिस्तान पर पाकिस्तान का अवैध कब्जा है। लोगों के हक की बात उठाने का खामियाजा सरकार ने उन्हें उम्र कैद की सजा दिलवाकर दिया है। बाबा जान की रिहाई को लेकर पाकिस्तान भर में प्रदर्शन हो रहे हैं।
नई दिल्ली (ऑनलाइन डेस्क)। पाकिस्तान में बाबा जान को लेकर बीते तीन दिनों से सड़कों पर बवाल हो रहा है। हजारों की तादाद में सड़कों पर उतरे प्रदर्शनकारी सरकार से उनकी रिहाई की मांग कर रहे हैं। आपको बता दें कि बाबा जान उस शख्स का नाम है, जिसने पाकिस्तान की सरकार को खुली चुनौती दी थी। उन्होंने कहा था कि गिलगिट-बाल्टिस्तान पाकिस्तान का हिस्सा नहीं है। इस पर पाकिस्तान ने अवैध रूप से कब्जा किया हुआ है। इसलिए पाकिस्तान का बनाया कानून यहां पर लागू नहीं किया जा सकता है। उनकी यही चुनौती सरकार को रास नहीं आई और उन्हें जेल में डाल दिया गया। वर्ष 2011 से पाकिस्तान की जेल में बंद बाबा जान को कोर्ट से उम्रकैद की सजा हुई है। उन्होंने कहा था कि पाकिस्तान की सरकार गिलगिट और बाल्टिस्तान के लोगों के खिलाफ काम कर रही है। यहां पर सच की आवाज उठाने वालों की आवाजों को दबाया जा रहा है। उन्हें जेल में ठूंस कर यातनाएं दी जा रही हैं। बाबा जान को गिरफ्तार करने के बाद उनके ऊपर बेहद संगीन धाराओं में मुकदमा चलाया गया था, जिसके बाद उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई गई। इसी तरह की संगीन धाराओं के अंतर्गत कई अन्य लोगों को जेल में बंद किया जा चुका है।
वामपंथी विचारधारा के नेता
आपको बता दें कि बाबा जान गिलगिट-बाल्टिस्तान एडमिनिस्ट्रेटिव टेरिटरी के एक वामपंथी विचारधारा के राजनेता हैं। वो आवामी वर्कर्स पार्टी की फेडरल कमेटी के सदस्य और पूर्व उपाध्यक्ष भी हैं। गिलगिट-बाल्टिस्तान की हुंजा वैली में पैदा हुए बाबा जान को आतंकवाद विरोधी न्यायालय ने उम्रकैद की सजा सुनाई थी। इसकी कहानी एक वर्ष पहले शुरू हुई थी। दरअसल, जनवरी 2010 में गिलगिट-बाल्टिस्तान की हुंजा वैली में जबरदस्त भूस्ख्लन हुआ था। इसकी वजह से हुंजा नदी का पानी रुक गया और इसके चलते आसपास के करीब 23 गांव उसकी जद में आकर डूब गए थे। बाबा जान ने ऐसे करीब 1000 लोगों को इसका मुआवजा दिलाने के लिए आवाज बुलंद की थी, लेकिन जब उनकी आवाज को अनसुना किया जाने लगा तो उन्होंने यहां के मुख्यमंत्री और पाकिस्तान की सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू किया। इससे घबराकर सरकार ने आनन-फानन में कुछ लोगों को मुआवजा देने का एलान कर दिया।
हक की बात पर जेल
इसके बाद भी ये मुआवजा हर किसी को नहीं मिल सका और करीब 25 परिवार ऐसे छूट गए जो इसकी राह ही तकते रहे। 2011 में बाबा जान ने इन परिवारों को लेकर सड़क पर चक्का जाम किया और मुख्यमंत्री के काफिले को सड़क पर ही रोक लिया। इसे देखते हुए पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर आंसू गैस के गोले छोड़े और बाद में भीड़ पर गोली चला दी। इसमें एक बुर्जुग और उसके बेटे की जान चली गई थी। इसके विरोध में सैकड़ों लोग सड़कों पर उतर आए और उन्होंने कुछ इमारतों में तोड़फोड की और पुलिस स्टेशन में आग भी लगा दी थी। इस घटना के बाद बाबा जान को गिरफ्तार कर लिया गया और उनपर आतंकवाद विरोधी नियम के तहत मुकदमा चलाया गया। सितंबर 2014 को कोर्ट ने उन्हें दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई। तब से लेकर आज तक मानवाधिकार कार्यकर्ता लगातार बाबा जान की रिहाई की मांग करते आ रहे हैं। उनकी रिहाई को लेकर न सिर्फ देश के अंदर, बल्कि विदेशों से भी आवाजें उठती रही हैं। सजा के दौरान ही सरकार ने उनके ऊपर देश में शिया और सुन्नी के बीच विवाद पैदा करने और अशांति फैलाने का भी आरोप लगाया।
2015 का चुनाव
वर्ष 2015 में उन्होंने गिलगिट-बाल्टिस्तान की विधानसभा के लिए हुए चुनाव में GBLA-6 सीट से आवामी वकर्स पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर हिस्सा लिया। हालांकि, वो इस चुनाव में यहां पर वर्षों से शासन कर रहे परिवार के नुमांइदे मीर गजनफर अली खान के हाथों हार गए। मीर को पाकिस्तान मुस्लिम लीग का समर्थन हासिल था। इस चुनाव में हार के बाद भी वो इमरान खान की पीटीआई और बिलावल भुट्टो की पीपीपी के प्रत्याशियों से कहीं आगे थे। 2015 में गिलगिट-बाल्टिस्तान की चीफ कोर्ट, जिसे हाईकोर्ट का दर्जा हासिल है, ने बाबा जान समेत 11 लोगों को सभी आरोपों से से बरी कर दिया था। इसके बावजूद उन्हें रिहा करने की बजाए रातोंरात उन्हें गिलगिट जेल से गिजर वैली की गाकुछ जेल में शिफ्ट कर दिया गया।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
नवंबर 2015 में मीर को गिलगिट-बाल्टिस्तान का गवर्नर बनाए जाने के बाद यहां की एक सीट फिर रिक्त हो गई थी। इस फलस्वरूप 2016 में यहां पर उपचुनाव कराए गए। बाबा जान को एक बार फिर से आवामी वर्कर्स पार्टी ने अपना प्रत्याशी बनाया। अप्रैल 2016 में उनका नामांकन इस बिनाह पर रद कर दिया गया कि उन्हें कोर्ट से सजा मिली हुई है। इसके खिलाफ बाबा जान ने कोर्ट में अपील दायर की। इसका नतीजा ये हुआ कि सुप्रीम कोर्ट ने यहां के उपचुनाव कुछ समय के लिए टाल दिए और बाबा जान पर लगे आरोपों की सुनवाई तीन सप्ताह में पूरी कर लेने का निर्णय दिया। इस दौरान चली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व में दिए कोर्ट के फैसले को सही माना। गौरतलब है कि उनकी रिहाई की मांग को लेकर पहले भी प्रदर्शन होते आए हैं। फिलहाल बाबा की रिहाई को लेकर सड़कों पर उतरे प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि मीडिया सरकार की पिट्ठू बनी हुई है। इसलिए वो केवल उसके ही हक में रिपोर्टिंग करती है। इन प्रदर्शनकारियों का यहां तक कहना है कि मीडिया उनके प्रदर्शन को अपने पेपर में जगह नहीं दे रही है, लेकिन इससे उनका हौसला कम नहीं होने वाला है। इस बार का ये प्रदर्शन तब तक जारी रहेगा, जब तक बाबा की रिहाई नहीं हो जाती है।
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