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प्लास्टिक, थर्मोकोल व पीओपी से मूर्तियां बनाने पर लगी रोक, मूर्ति विसर्जन के दिशानिर्देशों में भी संशोधन

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने मूर्ति विसर्जन के संबंध में 2010 के दिशानिर्देशों को हितधारकों की राय जानने के बाद संशोधित किया है।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Wed, 13 May 2020 09:16 PM (IST)Updated: Wed, 13 May 2020 09:23 PM (IST)
प्लास्टिक, थर्मोकोल व पीओपी से मूर्तियां बनाने पर लगी रोक, मूर्ति विसर्जन के दिशानिर्देशों में भी संशोधन
प्लास्टिक, थर्मोकोल व पीओपी से मूर्तियां बनाने पर लगी रोक, मूर्ति विसर्जन के दिशानिर्देशों में भी संशोधन

नई दिल्ली, प्रेट्र। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने देश में पर्यावरण के अनुकूल तरीके से मूर्ति विसर्जन के लिए देवी-देवताओं की मूर्तियां प्लास्टिक, थर्मोकोल और प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) से बनाने पर रोक लगा दी है।

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सीपीसीबी ने मूर्ति विसर्जन के संबंध में 2010 के दिशानिर्देशों को हितधारकों की राय जानने के बाद संशोधित किया है। उसने विशेष तौर पर प्राकृतिक रूप से मौजूद मिट्टी से मूर्ति बनाने और उन पर सिंथेटिक पेंट एवं रसायनों के बजाय रंग का उपयोग करने पर जोर दिया है।

केवल पर्यावरण के अनुकूल सामग्री का होगा इस्तेमाल

सीपीसीबी ने कहा कि एक बार इस्तेमाल करने योग्य प्लास्टिक और थर्मोकोल से मूर्तियां बनाने की अनुमति बिल्कुल नहीं दी जाएगी और केवल पर्यावरण के अनुकूल सामग्री का इस्तेमाल मूर्तियां, पंडाल, ताजिया बनाने और सजाने में किया जा सकेगा, जिससे कि जलाशयों में प्रदूषण नहीं हो।

संशोधित दिशानिर्देश मंगलवार को जारी किए गए, जिनमें कहा गया, 'मूर्तियों के आभूषण बनाने के लिए सूखे फूलों का उपयोग किया जा सकता है, वहीं मूर्तियों को आकर्षक बनाने के उद्देश्य से चमक लाने के लिए पेड़ों से निकलने वाला गोंदनुमा प्राकृतिक राल उपयोग में लाया जा सकता है।'

जलाशयों के पानी की गुणवत्ता के आकलन का निर्देश

देश में हर साल गणेश चतुर्थी और दुर्गा पूजा जैसे उत्सवों के दौरान मूर्ति विसर्जन के बाद जलाशय और नदियां प्रदूषित हो जाती हैं। ये मूर्तियां आमतौर पर पारंपरिक मिट्टी के बजाय रसायनिक पदार्थो की बनाई जाती हैं। सीपीसीबी ने संबंधित राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डो/प्रदूषण नियंत्रण समितियों को प्रमुख रूप से टीयर-1 शहरों में (जिनमें एक लाख से ज्यादा आबादी है) तीन स्तरों पर (विसर्जन से पहले, विसर्जन के समय और विसर्जन के बाद) जलाशयों के पानी की गुणवत्ता का आकलन करने का निर्देश भी दिया।


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