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अब अंतिम संस्कार के लिए जगह की कमी का संकट होगा दूर और लगेंगी सिर्फ आधी लकड़ियां, विकसित हुई ऐसी मोबाइल प्रणाली

अंतिम संस्कार की इको-फ्रेंडली तकनीक में लगेगी आधी लकड़ी। आइआइटी रोपड़ ने विकसित की शवों के अंतिम संस्कार की मोबाइल प्रणाली जगह की कमी का संकट भी होगा खत्म। सामान्य रूप से लगने वाली लकड़ी के मुकाबले सिर्फ आधी लगेगी प्रदूषण में भी आएगी भारी कमी.

By Nitin AroraEdited By: Published: Thu, 13 May 2021 09:02 PM (IST)Updated: Thu, 13 May 2021 10:26 PM (IST)
अब अंतिम संस्कार के लिए जगह की कमी का संकट होगा दूर और लगेंगी सिर्फ आधी लकड़ियां, विकसित हुई ऐसी मोबाइल प्रणाली
अब अंतिम संस्कार के लिए जगह की कमी का संकट होगा दूर और लगेंगी सिर्फ आधी लकड़ियां

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। कोरोना संकट में एक तरफ जहां लोगों की जान बचाने की जद्दोजहद हो रही है, वहीं बड़ी संख्या में हो रही मौतों से शवों का अंतिम संस्कार भी बड़ी चुनौती है। भारतीय परंपरा में अंतिम संस्कार लकड़ी की चिता पर दहन करके किया जाता है, लेकिन इस संकट में जिस तरह से हर दिन बड़े पैमाने पर मौतें हो रही हैं, उनमें शवों के अंतिम संस्कार के लिए लकड़ी और जगह दोनों की ही कमी होने लगी है। फिलहाल इस समस्या को सुलझाने के लिए भारतीय उच्च शिक्षण संस्थान आगे आए हैं। आइआइटी रोपड़ ने अंतिम संस्कार की एक नई प्रणाली विकसित की है जिसमें सामान्य रूप से लगने वाली लकड़ी के मुकाबले सिर्फ आधी लकड़ी ही लगेगी। इसके अलावा इसमें एलपीजी (लिक्विफाइड पेट्रोलियम गैस) का भी इस्तेमाल हो सकेगा।

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अंतिम संस्कार की इस पूरी प्रणाली को एक जगह से दूसरी जगह पर आसानी ले जाया जा सकता है। साथ ही इसमें जलने वाली लकड़ी से किसी तरह का कोई प्रदूषण नहीं होता है। इसकी पूरी तकनीक बत्ती वाले स्टोव पर आधारित है। यह 1044 डिग्री सेल्सियस तापमान तक गर्म होता है। आइआइटी के इंडस्ट्रीयल कंसल्टेंसी एंड स्पांसर रिसर्च एंड इंडस्ट्री इंटरेक्शन विभाग के डीन प्रोफेसर हरप्रीत सिंह का दावा है कि यह अपनी तरह की अंतिम संस्कार की पहली प्रणाली है, जिसे एक जगह से दूसरे जगह पर ले जाया जा सकता है। साथ ही इनमें भारतीय संस्कारों के तहत लकड़ी का इस्तेमाल होता है, हालांकि यह काफी कम होता है। साथ ही इससे प्रदूषण भी नहीं होता है। प्रो.सिंह के मुताबिक ट्रालीनुमा इस शव दहन प्रणाली का प्रोटोटाइप तैयार कर लिया गया है। साथ ही अब उसके औद्योगिक उत्पादन की दिशा में आगे काम किया जाएगा।

आइआइटी रोपड़ की प्रवक्ता प्रीतिन्दर कौर के मुताबिक वैसे तो इको-फ्रेंडली शव दहन प्रणाली विकसित करने के इस प्रोजेक्ट पर काम वर्ष 2016 से ही चल रहा था, लेकिन हाल ही में कोरोना संकट में जब अंतिम संस्कार एक बड़ी चुनौती बना हुआ है, ऐसे में समय में इसे अंतिम रूप दिया गया है। हालांकि उन्होंने कहा कि यह एक दुखद पहलू है, बावजूद इसके उनकी कोशिश है कि लोगों का अंतिम संस्कार ठीक तरीके से हो। प्रोजेक्ट शुरू करने के पहले आइआइटी रोपड़ ने एक स्टडी भी कराई थी, जिसमें नब्बे फीसद लोगों ने लड़की के जरिये शवों के अंतिम संस्कार को प्राथमिकता दी थी। गौरतलब है कि हाल ही में देश के अलग-अलग स्थानों से अंतिम संस्कार को लेकर दर्दनाक खबरें आ रही हैं। कई जगहों पर शवों को नदियों में फेंके जाने की खबर भी सामने आई है।


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