Move to Jagran APP

प्रिंट मीडिया मुश्किल में, राज्यसभा में उठी न्यूज प्रिंट पर थोपे गए 10 फीसद आयात शुल्क हटाने की मांग

चीन में पर्यावरण के खतरे के कारण कई न्यूज प्रिंट फैक्ट्रियां बंद हो चुकी हैं। देश में न्यूज प्रिंट का उत्पादन बढ़ाने के लिए पेड़ों की कटाई पर्यावरण के लिए बडी समस्या बन सकता है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Thu, 11 Jul 2019 11:00 PM (IST)Updated: Fri, 12 Jul 2019 12:05 AM (IST)
प्रिंट मीडिया मुश्किल में, राज्यसभा में उठी न्यूज प्रिंट पर थोपे गए 10 फीसद आयात शुल्क हटाने की मांग
प्रिंट मीडिया मुश्किल में, राज्यसभा में उठी न्यूज प्रिंट पर थोपे गए 10 फीसद आयात शुल्क हटाने की मांग

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। पहले से ही कारोबारी दबाव में चल रही प्रिंट मीडिया के लिए न्यूज प्रिंट पर बजट में थोपे गए 10 फीसद के आयात शुल्क के प्रावधान से करारा धक्का लगा है। राज्यसभा में बृहस्पतिवार को सांसद वीरेंद्र कुमार ने प्रिंट मीडिया पर पड़ने वाले इसके विपरीत प्रभावों का जिक्र करते हुए सरकार से आयात शुल्क को वापस लेने की मांग की।

loksabha election banner

बजट पर बहस में हिस्सा लेते हुए केरल से निर्दलीय सांसद कुमार ने कहा कि न्यूजप्रिंट पर अब का सबसे अधिक आयात शुल्क लगाया गया है। उन्होंने कहा 'देश की प्रिंट मीडिया की खराब आर्थिक सेहत को देखते हुए उसकी दिक्कतों को सरकार के समक्ष रख रहा हूं।' केंद्रीय बजट में न्यूज पेपर वाले न्यूज प्रिंट और पत्रिकाओं के लिए कोटेड पेपर पर 10 फीसद का आयात शुल्क लगाने का प्रावधान किया गया है।

न्यूज प्रिंट पर आयात शुल्क की यह दर अब तक की उच्चतम है, जो अखबारों की हालत को खराब कर सकता है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2009 से न्यूज प्रिंट पर कोई आयात शुल्क नहीं था।

सांसद कुमार ने कहा 'न्यूज प्रिंट पर यह शुल्क ऐसे समय पर लगाया गया है, जब अखबार गंभीर आर्थिक चुनौतियों से जूझ रहे हैं। प्रिंट मीडिया के जहां विज्ञापनों की आय घटी है, वहीं उसके प्रकाशन की लागत में वृद्धि हुई है।' लघु व मझोले अखबार घाटे की गर्त में पहले से ही डूब रहे हैं, जिनमें से कई तो बंद होने के कगार पर पहुंच गये हैं।

प्रिंट मीडिया के हाल बयां करते हुए कुमार ने वित्तमंत्री से थोपे गये शुल्क को वापस लेने का आग्रह किया। कुमार ने कहा कि यद्यपि सरकार का यह कदम घरेलू न्यूज प्रिंट उद्योग के लिए समान अवसर उपलब्ध कराने के लिए उठाया गया है, लेकिन इससे घरेलू उद्योग को कोई लाभ नहीं होने वाला है।

उन्होंने कहा कि घरेलू न्यूज प्रिंट उद्योग की सालाना कुल उत्पादन क्षमता 10 लाख टन है, जो देश की कुल मांग का मात्र 40 फीसद है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि देश में न्यूज प्रिंट की नई इकाइयां स्थापित करने अथवा उत्पादन क्षमता बढ़ाने में कोई लाभ नहीं है। क्योंकि उत्पादन बढ़ाने के लिए पेड़ों की कटाई पर्यावरण के लिए बडी समस्या बन सकता है।

हाल ही में चीन में पर्यावरण के खतरे के मद्देनजर कई न्यूज प्रिंट फैक्ट्रियां बंद हो चुकी हैं। उन्होंने बताया कि भारतीय न्यूज प्रिंट के कागज की गुणवत्ता ऐसी नहीं होती है, जिस पर हाईस्पीड की मशीनों से आधुनिक छपाई हो सके। भारत में अनकोटेड ग्लेज्ड और लाइट वेट कोटेड पेपर उत्पादन करने वाले कागज वाले कारखाने नहीं हैं। इस क्षेत्र में भारतीय न्यूज प्रिंट की कोई भूमिका नहीं है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.