सोशल मीडिया पर भ्रामक खबरों के बढ़ते जाल से परेशान दुनिया को मिलेगी राहत, कवायद शुरू
झूठी खबरों का दायरा बहुत बड़ा है, किसी कंप्यूटर एल्गोरिदम से इसे समझना आसान नहीं। झूठी खबरें कई बार विशेष मंशा से फैलाई जाती हैं।
जेएनएन, नई दिल्ली। सोशल मीडिया के प्रसार के साथ ही एक नया खतरा भी पैदा हो रहा है। वह खतरा है फेक न्यूज यानी झूठी खबरों का। दुनिया के नंबर एक सोशल नेटवर्किंग प्लेटफॉर्म फेसबुक पर आए दिन इस तरह के मामले सामने आते रहते हैं। कई बार बहुत से अवांछित तत्व नफरत फैलाने के लिए ऐसी भ्रामक खबरों का सहारा लेते हैं। चुनाव के दौरान मतदाताओं को भरमाने के लिए झूठी खबरों का सहारा लेने की बात भी सामने आई है।
फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग ने हाल में अमेरिकी कांग्रेस को बताया था कि झूठी और भ्रामक खबरों पर रोक लगाने की दिशा में उनकी कंपनी गंभीरता से काम कर रही है। उन्होंने यह दावा भी किया कि आने वाले दिनों में झूठी खबरों पर लगाम लगाने की व्यवस्था तैयार कर ली जाएगी। जुकरबर्ग के दावे के साथ ही यह सवाल भी खड़ा हो गया है कि ऐसी कोई व्यवस्था कितनी कारगर हो पाएगी?
क्या है तैयारी?
जुकरबर्ग जिस टेक्नोलॉजी के भरोसे यह दावा कर रहे हैं, उसका नाम है आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआइ) यानी कृत्रिम बुद्धिमत्ता। एआइ से युक्त मशीनें कुछ मानकों के आधार पर खुद फैसला लेने में सक्षम होती हैं। एआइ का इस्तेमाल चिकित्सा से लेकर हथियार बनाने तक हर क्षेत्र में किया जा रहा है। इसी एआइ के इस्तेमाल से फेसबुक पर झूठी खबरों पर लगाम की तैयारी है। फेसबुक की टीम ऐसा सॉफ्टवेयर तैयार कर रही है, जो खबरों की विश्वसनीयता को जांचने में सक्षम होगा। अश्लीलता या घृणा फैलाने वाली पोस्ट को इसी आधार पर हटाया जाता है। इसी को उन्नत बनाते हुए भविष्य में ऐसी व्यवस्था तैयार करने की बात हो रही है, जो खबर की सच्चाई को जांच सके।
कैसे काम करेगा सॉफ्टवेयर?
अभी फेसबुक, गूगल और ट्विटर जैसे प्लेटफॉर्म पर कुछ शब्दों के जरिये फिल्टर लगाया जाता है। सॉफ्टवेयर जैसे ही किसी पोस्ट में कोई प्रतिबंधित शब्द देखता है, वह उस पोस्ट को स्पैम मान लेता है। पोस्ट करने वाले को उन शब्दों को हटाने के लिए कहा जाता है या पोस्ट को डिलीट कर दिया जाता है। अब इसे और उन्नत बनाने की तैयारी है। सॉफ्टवेयर को इस तरह से तैयार किया जाएगा कि वह किसी खबर में केवल कुछ शब्दों को ही नहीं बल्कि पूरे वाक्य की जांच करे। साथ ही सॉफ्टवेयर उस खबर के स्रोत की पड़ताल भी करेगा और अन्य स्रोतों से उसकी पुष्टि करेगा। मसलन किसी नई और कम प्रचलित वेबसाइट से यदि कोई ऐसी खबर पोस्ट होती है, जिसमें संदिग्ध शब्द या वाक्य हैं, तो सॉफ्टवेयर अन्य प्रतिष्ठित वेबसाइट, स्रोत व डाटाबेस से उसकी पुष्टि करेगा। पुष्टि नहीं होने पर खबर को झूठा मानकर हटा दिया जाएगा।
कितनी कारगर हो सकती है व्यवस्था?
फेसबुक के सीईओ जुकरबर्ग ने अमेरिकी कांग्रेस के समक्ष दावा भले ही कर दिया हो, लेकिन निकट भविष्य में इस तरह के सॉफ्टवेयर के बहुत ज्यादा सफल होने की उम्मीद नहीं की जा सकती है। झूठी खबरों का दायरा बहुत बड़ा है। किसी कंप्यूटर एल्गोरिदम से इसे समझना आसान नहीं। झूठी खबरें कई बार विशेष मंशा से फैलाई जाती हैं। किसी नियम के आधार पर इनके शब्दों या वाक्यों की संरचना से इन्हें पहचानना संभव नहीं होता। इसके अलावा तथ्यों के आधार पर झूठी खबरों को पहचानने में भी परेशानी है।
उदाहरण के तौर पर हॉलीवुड अभिनेत्री एंजेलिना जॉली और अभिनेता ब्रैड पिट के तलाक की खबरें कई बार सुर्खियों में आई थीं। जब तक दोनों ने तलाक नहीं लिया था, तब तक ऐसी खबरें झूठी थीं। लेकिन दोनों के बीच तलाक होने के बाद उन्हीं शब्दों और वाक्यों से बनी खबरें सच हो चुकी थीं। ऐसी स्थिति में किसी सॉफ्टवेयर के लिए यह तय करना मुश्किल है कि कब कौन सी खबर झूठी है और कौन सी सच्ची। तकनीक को इस स्तर तक पहुंचने में कई वर्ष लग सकते हैं।