राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द बोले, मानव गरिमा को पूर्ण सम्मान के लिए भेदभाव रहित होना पहली शर्त
राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द ने कोरोना महामारी से प्रभावित लोगों के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के कामों की भी सराहना की। उन्होंने कहा कि आयोग द्वारा जारी कई परामर्शो ने स्थिति सुधारने में मदद की।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। मानव गरिमा को पूर्ण सम्मान के लिए जहां भेदभाव रहित होना पहली शर्त है, वहीं दुनिया अनगिनत पूर्वाग्रहों से घिरी है। मानव अधिकार दिवस सामूहिक रूप से विचार करने और ऐसे पूर्वाग्रहों को दूर करने के तरीके खोजने का आदर्श अवसर है, जो व्यक्तियों की क्षमता के पूर्ण अहसास में बाधा डालते हैं और समाज के हित में नहीं हैं। यह बात राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द ने मानवाधिकार दिवस समारोह को संबोधित करते हुए शुक्रवार को कही।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की ओर से विज्ञान भवन में आयोजित समारोह को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि मानव अधिकारों का विमर्श न्यायोचित रूप से अधिकारों पर केंद्रित है। लेकिन भारत ने हमेशा यह समझा है, जैसा कि गांधीजी अक्सर कहते थे कि अधिकार और कर्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। अधिकारों को पूर्ण नहीं माना जाता, बल्कि उन्हें सामाजिक संदर्भ के साथ जोड़ा जाना चाहिए।
राष्ट्रपति ने कहा कि इतिहास की सबसे खतरनाक महामारी से मानवता लड़ रही है। अभी यह खत्म नहीं हुई है। विश्व ने विज्ञान और वैश्विक साझेदारी पर भरोसा रखते हुए इसका जवाब दिया है। वैसे तो महामारी सार्वभौमिक रूप से मानवता को प्रभावित करती है, लेकिन यह भी देखा गया है कि कमजोर वगरें पर इसका ज्यादा प्रभाव हुआ। भारत चुनौतियों के बावजूद सभी को मुफ्त टीकाकरण की नीति अपनाकर लाखों लोगों की जान बचाने में सक्षम रहा। इतिहास के सबसे बड़े टीकाकरण अभियान से सरकार करीब एक अरब लोगों को वायरस से सुरक्षा देने में सक्षम रही। राष्ट्रपति ने कहा कि वह इसके लिए सभी डाक्टरों, विज्ञानियों और अन्य कोरोना योद्धाओं को बधाई देते हैं। राष्ट्रपति ने कोरोना महामारी से प्रभावित लोगों के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के कामों की भी सराहना की। उन्होंने कहा कि आयोग द्वारा जारी कई परामर्शो ने स्थिति सुधारने में मदद की।
मानवाधिकार उल्लंघन के पीड़ितों को उपचार मुहैया कराना जरूरी: अरुण मिश्रा
इस मौके पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा कि राज्य स्वास्थ्य शिक्षा और आर्थिक अवसरों के न्यूनतम मानकों तक पहुंचने के लिए सुविधा प्रदान करने को बाध्य हैं। उन्होंने कहा कि अनुचित आर्थिक ढांचे और व्यापार संबंधी मानवाधिकार उल्लंघन के पीड़ितों को उपचार मुहैया कराना जरूरी है। इसके अलावा सभी व्यक्तियों को एक सुरक्षित, स्वच्छ, स्वस्थ वातावरण का न्यूनतम अधिकार है। उन्होंने कहा कि अभिव्यक्ति की आजादी सबसे मूल्यवान मौलिक अधिकार है। इसे संरक्षित होना चाहिए। हालांकि आनलाइन और आफलाइन दोनों तरह से साइबर स्पेस की स्वतंत्रता की सीमा बहस का विषय है, क्योंकि इसके दुरुपयोग से देश की संप्रभुता, अखंडता, सार्वजनिक व्यवस्था और नैतिकता के उल्लंघन की गंभीर आशंका रहती है। उन्होंने कोरोना महामारी में भारत के योगदान को स्वीकार करते हुए कहा कि सस्ती कीमत पर सभी को स्वास्थ्य कवरेज जीवन के अधिकार का एक पहलू है। विश्व समुदाय को यह सुनिश्चित करने के लिए त्वरित कार्रवाई करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि पेटेंट धारक के अधिकारों पर जीवन का अधिकार प्रबल होना चाहिए।