बाइडन की निगाह में भारत का रुतबा नहीं हुआ है कम, मून और सुगा के दौरों पर ध्यान देना जरूरी
मून और सुगा की अमेरिकी यात्रा को देखते हुए ऐसा माना जा रहा है कि बाइडन की निगाह में भारत की अहमियत कम हुई है। हालांकि जानकार ऐसा नहीं मानते हैं। उनका कहना है कि इन दोनों ही देशों में कोरोना का प्रकोप काफी कम है।
नई दिल्ली (ऑनलाइन डेस्क)। दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे कोविड महामारी के बीच अमेरिका की यात्रा पर वाशिंगटन पहुंचे हैं। हाल के दिनों में वो ऐसे दूसरे एशियाई राष्ट्राध्यक्ष हैं जिनका स्वागत अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन द्वारा किया गया है। इससे पहले जापान के प्रधानमंत्री योशिदे सुगा ने अमेरिका की यात्रा की थी। मून की इस यात्रा को चीन पर लगाम लगाने में अहम माना जा रहा है। इस दौरे में दोनों देशों के बीच उत्तर कोरिया समेत जलवायु परिवर्तन को लेकर भी चर्चा हुई है। रॉयटर्स के मुताबिक मून अपने देश में महामारी की रोकथाम को लेकर उठाए गए कदमों की वजह से कई बार आलोचना के शिकार हुए हैं। उनकी इस यात्रा का मकसद कोरोना वैक्सीन की सप्लाई भी है। इस यात्रा को देखते हुए ऐसा भी माना जा रहा है कि अमेरिका की निगाह में भारत का रुतबा कुछ कम हुआ है।
जानकार की राय
हालांकि जानकार ऐसा नहीं मानते हैं। जवाहरलाल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एचएस भास्कर का कहना है कि अमेरिका की निगाह में भारत की अहमियत कम नहीं हुई है। जहां तक अमेरिका द्वारा एशियाई देश के राष्ट्राध्यक्ष को आमंत्रित करने और उनका स्वागत करने की बात है तो यहां पर इस बात का ध्यान रखना होगा कि दक्षिण कोरिया में कोविड महामारी का प्रकोप भारत के मुकाबले काफी कम है। वहीं भारत में पिछले दिनों कोरोना संक्रमण के 4 लाख मामले तक आए हैं जो विश्व में सर्वाधिक थे। भारत में मिले वैरिएंट पर पहले से ही विश्व के कई देश और विश्व स्वास्थ्य संगठन तक चिंता जता चुका है।
वहीं इस बारे में एक सच्चाई ये भी है कि अमेरिका में कोरोना संक्रमण की दर बेहद कम हो चुकी है। हाल ही में वहां के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल ने वैक्सीन की दो खुराक लेने वाले लोगों को मास्क लगाने से छूट देने की बात कही है। दक्षिण कोरिया के राष्ट्राध्यक्ष का अमेरिका दौरा भी इस घोषणा के बाद ही हुआ है। यूं भी दक्षिण कोरिया और जापान दोनों ही क्वाड सदस्य हैं। इस लिहाज से भारत के रुतबे में आई गिरावट की बात स्वीकार नहीं की जा सकती है।
कम नहीं हुई अहमियत
आपको यहां पर ये भी ध्यान रखना होगा कि भारत में जब से कोरोना महामारी ने दस्तक दी है तब से भारतीय प्रधानमंत्री या अधिकारियों का दौरा न के ही बराबर हुआ है। एक साल से अधिक समय के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में पहली यात्रा बांग्लादेश की की थी। ऐसे में ये कहना गलत होगा कि अमेरिका की निगाह में भारत की अहमियत कम हुई है।
अमेरिका इस बात को बखूबी जानता है कि ऐसे संकट के समय में भारत के लिए अपने लोगों का जीवन बचाना सबसे बड़ी प्राथमिकता है। प्रोफेसर भास्कर के मुताबिक यदि ऐसा एक बार को मान भी लिया जाए तो पाकिस्तान या चीन या बांग्लादेश या दूसरे देश के किसी भी नेता का अमेरिकी दौरा नहीं हुआ है। अमेरिका में जिन दो एशियाई देशों के राष्ट्राध्यक्ष अमेरिका गए हैं उन दोनों ही देशों में कोरोना की रफ्तार काफी कम है। इसको किसी
भी सूरत से नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
महामारी को देखते हुए जयशंकर का दौरा होगा खास
प्रोफेसर भास्कर के मुताबिक जहां तक भारतीय विदेश मंत्री की आगामी अमेरिकी यात्रा की बात है तो इसके पीछे सबसे बड़ा मकसद वैक्सीन में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल की आपूर्ति सुनिश्चित करना है। विदेश मंत्रालय पहले ही साफ कर चुका है कि 24 से 28 मई की अमेरिकी यात्रा के दौरान विदेश मंत्री एस जयशंकर अमेरिकी कंपनियों से वैक्सीन को लेकर चर्चा करेंगे। इसके अलावा वो संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरस से भी इस विषय पर चर्चा करेंगे। उनकी ये यात्रा कोरोना महामारी की रोकथाम के मकसद से हो रही है जो बेहद खास है। इस यात्रा के दौरान वो अमेरिका में कोविड की रोकथाम में सहयोग के लिये वहां के बिजनेस फोरम में भी चर्चा करेंगे।