रफ्तार पर लगे लगाम तो बचे बेशकीमती जान, 65 फीसद से अधिक सड़क दुर्घटनाओं के लिए ओवर स्पीडिंग है जिम्मेदार
नई चुनौती से निपटने के लिए सरकार गाड़ियों को सुरक्षा उपकरणों से लैस करने उनकी डिजाइन में बदलाव और स्पीड पर लगाम लगाने के साथ ही घायलों को गोल्डन ऑवर में तत्काल चिकित्सा उपलब्ध कराने पर जोर दे रही है।
नीलू रंजन, नई दिल्ली। देश में राष्ट्रीय राजमार्ग की लंबाई कुल सड़क की लंबाई का दो फीसद है, लेकिन 30.55 फीसद दुर्घटनाएं इन्हीं पर होती हैं। यानी देश में सड़कों की दशा सुधरने से गाड़ियों की बढ़ी रफ्तार जानलेवा साबित हो रही है। पिछले कुछ सालों में सड़कों की बढ़ती लंबाई के साथ गाड़ियों की भीड़ कम होने के कारण सड़क दुर्घटनाओं में कमी आई है, लेकिन इनमें मरने वालों की संख्या बढ़ गई है। नई चुनौती से निपटने के लिए सरकार गाड़ियों को सुरक्षा उपकरणों से लैस करने, उनकी डिजाइन में बदलाव और स्पीड पर लगाम लगाने के साथ ही घायलों को 'गोल्डन ऑवर' में तत्काल चिकित्सा उपलब्ध कराने पर जोर दे रही है।
सड़क दुर्घटनाओं के लिए सामान्य रूप से सर्दी के मौसम में कोहरे, विपरीत दिशा में वाहन चलाने, मोबाइल के उपयोग और लापरवाही से गाड़ी चलाने को जिम्मेदार माना जाता है। लेकिन देश में सड़क दुर्घटना के आंकड़ों को देखें तो 2019 में 65 फीसद से अधिक दुर्घटनाएं तेज रफ्तार (ओवर स्पीडिंग) और सीधी सड़क पर हुई हैं। सड़कों पर सांसों को थामने में खराब मौसम बड़ी भूमिका निभाता दिख रहा है। सर्दियों के दौरान पूरा उत्तर भारत घने कोहरे की चादर से लिपट जाता है। ऐसे में सड़कों पर वाहन लेकर चलना किसी जोखिम से कम नहीं होता।
आंकड़े बताते हैं कि कोहरे के चलते होने वाले हादसों में हुई मौतें पिछले चार साल में सौ फीसद से ज्यादा बढ़ गई है। 2014 में कोहरे के चलते हुए हादसों में कुल 5886 लोग मारे गए जबकि 2017 और 2018 में ये आंकड़ा क्रमश: 11090 व 12678 रहा।
चार 'E' होंगे मददगार :
सड़क परिवहन मंत्रालय चार E (इंजीनियरिंग, इंफोर्समेंट, एजुकेशन और इमरजेंसी रिस्पांस) पर काम कर रही है। इंजीनियरिंग के तहत देश में अधिक दुर्घटना वाले जगहों की ब्लैक स्पॉट के रूप में पहचान कर उन्हें दुरूस्त किया जा रहा है और अब तक लगभग 900 ब्लैक स्पॉट को ठीक किया जा चुका है। साथ ही सभी नई गाड़ियों के लिए ड्राइवर के साथ वाली सीट पर एयरबैग और स्पीड गवर्नर को अनिवार्य बनाया गया है। ट्रक के नीचे घुसने से कार सवारों की होने वाली मौतों को रोकने के लिए ट्रक के नीचे एक रॉड लगाना अनिवार्य किया गया है।
दुर्घटना के पहले घंटे (गोल्डन ऑवर) में घायलों को अस्पताल पहुंचाने का पायलट प्रोजेक्ट दिल्ली-जयपुर हाईवे पर चलाया गया। घायलों की जान बचाने में इससे मिली सफलता को देखते हुए इसे अब पूरे देश में लागू करने पर विचार किया जा रहा है। मोटर वाहन कानून में संशोधन कर उल्लंघन की स्थिति में जुर्माने में भारी बढ़ोतरी और रफ्तार पर नजर रखने वाले कैमरे कारगर साबित होंगे।
सख्त कानून हो रहा कारगर : 2018 के सितंबर, अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर के आंकड़ों की 2019 के इन्हीं महीनों के आंकड़ों से तुलना करने से साफ है कि नए मोटर वाहन कानून के लागू होने के बाद दुर्घटनाओं और उससे होने वाली मौतों में कमी आई है। 2019 के सितंबर में 2018 के मुकाबले 9.4 फीसद कम दुर्घटनाएं हुई। इसी तरह अक्टूबर में 7.43 फीसद, नवंबर में 3.86 फीसद और दिसंबर में 4.36 फीसद कम दुर्घटनाएं दर्ज की गई।
खामोश हो रहा युवा जोश :
2019 में सड़क दुर्घटनाओं में मरने वालों की स्थिति :
18 से 25 साल के 22 फीसद
25 से 35 साल के 26 फीसद
35 से 45 साल के 22 फीसद
गडकरी का भी कटा ओवर स्पीडिंग का चालान
सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्रालय के अधिकारियों का मानना है कि सड़कों पर लगने वाले कैमरे ओवर स्पीडिंग पर लगाम लगाने में कारगर साबित होंगे। इन कैमरों से उन लोगों का भी ओवर स्पीडिंग का चालान कट रहा है, जिसके बारे में कभी सोचा तक नहीं जाता था। यहां तक कुछ महीने पहले दिल्ली में सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी की गाड़ी का भी ओवर स्पीडिंग का चालान कट गया और यह चालान ऑनलाइन भरा भी गया। कैमरे की निष्पक्षता, पारदर्शिता और 24 घंटे की निगरानी क्षमता को देखते हुए मंत्रालय सभी राज्यों से सड़कों पर अधिक से अधिक कैमरे लगाने के लिए दबाव बना रहा है।