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जानिए पीएम नरेंद्र मोदी की नजर में कैसे हैं भगवान राम

अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर की आधारशिला रखने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अलग-अलग देशों में पढ़ी जाने वाली रामायण के बारे में भी बताया।

By Vinay TiwariEdited By: Published: Wed, 05 Aug 2020 04:09 PM (IST)Updated: Wed, 05 Aug 2020 06:50 PM (IST)
जानिए पीएम नरेंद्र मोदी की नजर में कैसे हैं भगवान राम
जानिए पीएम नरेंद्र मोदी की नजर में कैसे हैं भगवान राम

नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। अयोध्या में श्रीरामजन्म भूमि मंदिर की आधारशिला रखने के बाद पीएम नरेंद्र मोदी ने बताया कि उनके भगवान श्रीराम कैसे हैं। 35 मिनट 58 सेकंड के अपने भाषण में उन्होंने कहा कि भारत की आस्था में राम हैं।

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भारत के आदर्शों में राम हैं। भारत की दिव्यता में राम हैं। भारत के दर्शन में राम हैं। राम हमारे मन में गढ़े हुए हैं, हमारे भीतर घुल-मिल गए हैं। कोई काम करना हो, तो प्रेरणा के लिए हम भगवान राम की ओर ही देखते हैं। आप भगवान राम की अद्भुत शक्ति देखिए। इमारतें नष्ट कर दी गईं, अस्तित्व मिटाने का प्रयास भी बहुत हुआ, लेकिन राम आज भी हमारे मन में बसे हैं, हमारी संस्कृति का आधार हैं।

उन्होंने कहा कि श्री रामचंद्र को तेज में सूर्य के समान, क्षमा में पृथ्वी के तुल्य, बुद्धि में बृहस्पति के सदृश्य और यश में इंद्र के समान माना गया है। श्रीराम का चरित्र सबसे अधिक जिस केंद्र बिंदु पर घूमता है वो है सत्य पर अडिग रहना। इसीलिए ही श्रीराम संपूर्ण हैं। 

उन्होंने बताया कि तमिल में कंब रामायण, उड़िया में दुईपाद कादेरपति, तेलुगु में रघुनाथ तुंगनाथ, कन्नड़ में कुदेदू रामायण, कश्मीर में रामावतार चरित्र, मलयालम में रामचरितम, बांग्ला में कृतिवास रामायण का प्रचलन है। गुरूगोविंद सिंह ने तो गुरूगोविंद रामायण लिखी है। उन्होंने बताया कि इंडोनेशिया, चीन, इराक, ईरान, लाओस, थाइलैंड और मलेशिया में कई रामायण प्रचलित है। श्रीलंका में जानकी हरण के नाम से रामायण प्रचलित है।

श्रीराम ने सामाजिक समरसता को अपने शासन की आधारशिला बनाया था। उन्होंने गुरु वशिष्ठ से ज्ञान, केवट से प्रेम, शबरी से मातृत्व, हनुमानजी एवं वनवासी बंधुओं से सहयोग और प्रजा से विश्वास प्राप्त किया। यहां तक कि एक गिलहरी की महत्ता को भी उन्होंने सहर्ष स्वीकार किया। उनका अद्भुत व्यक्तित्व, उनकी वीरता, उनकी उदारता उनकी सत्यनिष्ठा, उनकी निर्भीकता, उनका धैर्य, उनकी दृढ़ता, उनकी दार्शनिक दृष्टि युगों-युगों तक प्रेरित करते रहेंगे। राम प्रजा से एक समान प्रेम करते हैं लेकिन गरीबों और दीन-दुखियों पर उनकी विशेष कृपा रहती है। 

भगवान राम के साथ ही उन्होंने कुछ देर के लिए रामभक्त हनुमान को भी याद किया। उन्होंने कहा कि भगवान राम के सब काम हनुमान ही तो करते हैं। राम के आदर्शों की कलियुग में रक्षा करने की जिम्मेदारी भी हनुमान जी की ही है। राममंदिर के निर्माण की ये प्रक्रिया, राष्ट्र को जोडऩे का उपक्रम है। ये महोत्सव है- विश्वास को विद्यमान से जोड़ने का, नर को नारायण से, जोड़ने का। लोक को आस्था से जोड़ने का। वर्तमान को अतीत से जोड़ने का। और स्वं को संस्कार से जोड़ने का। 

उन्होंने कहा कि जैसे पत्थरों पर श्रीराम लिखकर रामसेतु बनाया गया, वैसे ही घर-घर से, गांव-गांव से श्रद्धापूर्वक पूजी शिलाएं, यहां ऊर्जा का स्रोत बन गई हैं। इस मंदिर के साथ सिर्फ नया इतिहास ही नहीं रचा जा रहा, बल्कि इतिहास खुद को दोहरा भी रहा है। जिस तरह गिलहरी से लेकर वानर और केवट से लेकर वनवासी बंधुओं को भगवान राम की विजय का माध्यम बनने का सौभाग्य मिला।

उन्होंने कहा कि जीवन का ऐसा कोई पहलू नहीं है, जहां हमारे राम प्रेरणा न देते हों। भारत की ऐसी कोई भावना नहीं है जिसमें प्रभु राम झलकते न हों। भारत की दिव्यता में राम हैं, भारत के दर्शन में राम हैं। हजारों साल पहले वाल्मीकि की रामायण में जो राम प्राचीन भारत का पथप्रदर्शन कर रहे थे, जो राम मध्ययुग में तुलसी, कबीर और नानक के जरिए भारत को बल दे रहे थे, वही राम आजादी की लड़ाई के समय बापू के भजनों में अहिंसा और सत्याग्रह की शक्ति बनकर मौजूद थे।

आज भी भारत के बाहर दर्जनों ऐसे देश हैं जहां वहां की भाषा में रामकथा आज भी प्रचलित है। राम समय, स्थान और परिस्थितियों के हिसाब से बोलते हैं, सोचते हैं, करते हैं। राम हमें समय के साथ बढ़ना सिखाते हैं, चलना सिखाते हैं।

राम परिवर्तन के पक्षधर हैं, राम आधुनिकता के पक्षधर हैं। उनकी इन्हीं प्रेरणाओं के साथ, श्रीराम के आदर्शों के साथ भारत आज आगे बढ़ रहा है। प्रभु श्रीराम ने हमें कर्तव्यपालन की सीख दी है, अपने कर्तव्यों को कैसे निभाएं इसकी सीख दी है। उन्होंने हमें विरोध से निकलकर, बोध और शोध का मार्ग दिखाया है।  

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि तुलसी के राम सगुण राम हैं, तो नानक और कबीर के राम निर्गुण राम हैं। भगवान बुद्ध भी राम से जुड़े हैं तो सदियों से ये अयोध्या नगरी जैन धर्म की आस्था का केंद्र भी रही है। राम की यही सर्वव्यापकता भारत की विविधता में एकता का जीवन चरित्र है। आज भी भारत के बाहर दर्जनों ऐसे देश हैं जहां, वहां की भाषा में रामकथा प्रचलित है।


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