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लद्दाख दौरे में पीएम मोदी ने की थी सिंधु नदी की पूजा, एकता और अखंडता बनाए रखने का लिया संकल्प

इस दौरान पीएम मोदी ने कहा कि सिंधु नदी जिस तरह से अन्य कई नदियों को नेतृत्व करते हुई आगे बढ़ती है उसी तरह राष्ट्र भी बढ़े।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Sat, 04 Jul 2020 08:55 PM (IST)Updated: Sat, 04 Jul 2020 09:11 PM (IST)
लद्दाख दौरे में पीएम मोदी ने की थी सिंधु नदी की पूजा, एकता और अखंडता बनाए रखने का लिया संकल्प
लद्दाख दौरे में पीएम मोदी ने की थी सिंधु नदी की पूजा, एकता और अखंडता बनाए रखने का लिया संकल्प

राज्य ब्यूरो, श्रीनगर। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को लेह पहुंचने के दौरान मानसरोवर से निकलने वाली सिंधु नदी की विधिवत पूजा भी की थी। मोदी ने देश की एकता, अखंडता और सार्वभौमिकता को बनाए रखने के संकल्प को दोहराया। उन्होंने कहा कि सिंधु नदी जिस तरह से अन्य कई नदियों को नेतृत्व करते हुई आगे बढ़ती है उसी तरह राष्ट्र भी बढ़े।

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सिंधु नदी भारत की सनातन संस्कृति का प्रतीक है। सिंधु नदी का उल्लेख ऋग्वेद में भी है। नदी के तट पर वर्ष 1997 से सिंधु नदी पूजा व समारोह का आयोजन किया जा रहा है। इस समारोह में देश-विदेश से सैकड़ों सैलानी आते हैं। सिंधी समुदाय के लोग सिंधु की पूजा के लिए लेह आते हैं।

सीडीएस रावत और सेना प्रमुख नरवाणे के साथ लद्दाख पहुंचे थे पीएम मोदी

बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) जनरल बिपिन रावत के साथ शुक्रवार को लेह पहुंचे थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन के साथ झड़प में घायल हुए जवानों से मिले थे। पिछले महीने लद्दाख के गलवान घाटी में चीन और भारतीय सैनिकों में जबरदस्त झड़प हुई थी। चीनी सैनिकों ने धोखे से भारतीय जवानों पर हमला कर दिया था। इस घटना में भारत के 20 जवान शहीद हो गए थे जबकि चीन के भी 40 जवान मारे गए थे। कई जवान घायल हो गए थे।

सैनिको के बीच पीएम मोदी ने कहा था कि आपका ये हौसला, शौर्य और मां भारती के मान-सम्मान की रक्षा के लिए आपका समर्पण अतुलनीय है। आपकी जीवटता भी जीवन में किसी से कम नहीं है। जिन कठिन परिस्थितियों में जिस ऊंचाई पर आप मां भारती की ढाल बनकर उसकी रक्षा, उसकी सेवा करते हैं, उसका मुकाबला पूरे विश्व में कोई नहीं कर सकता है। इस दौरान पीएम मोदी ने चीन को सख्त संदेश देते हुए कहा था कि अब विस्तारवाद का युग समाप्त हो गया है, यह विकास का युग है। इतिहास गवाह है कि विस्तारवादी ताकतें या तो हार गई हैं या फिर पीछे हटने को मजबूर हुई हैं।


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