पहली बार उत्तर-पूर्व को नई दिशा देने में लगे हैं पीएम, ताजा घोषणाएं इसकी हैं कड़ी
जलमार्ग के जरिेय माल ढुलाई और यात्री परिवहन सुविधा विकसित करने से इसकी लागत में कमी आएगी और प्रदूषण से जूझते समूचे उत्तर भारत में यह परिवर्तनकारी साबित होगी
रमेश कुमार दुबे। जिस दौर में उत्तर प्रदेश-बिहार में जाति और आरक्षण की राजनीति उफान पर थी उस दौर में दक्षिण भारतीय राज्य सूचना प्रौद्योगिकी और जैव प्रौद्योगिकी की नींव रख रहे थे। इसी का नतीजा है कि आज चेन्नई, हैदराबाद, बंगलुरु जैसे शहर फल-फूल रहे हैं। उत्तर प्रदेश-बिहार के नेताओं ने इससे सबक सीखने के बजाए महानगरों को जोड़ने वाली रेलगाड़ियां चलाई ताकि कुशल-अकुशल कामगारों के पलायन में सुविधा हो। नतीजन यूपी बिहार के गांव-कस्बे-शहर वीरान होते गए। आजादी के बाद पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूर्वी भारत में विकास की नई राह बनाने में जुटे हैं। इसका ज्वलंत उदाहरण है राष्ट्रीय जलमार्ग-1 में कंटेनरों के जरिये ढुलाई। भारतीय परिवहन के इतिहास में 12 नवंबर का दिन मील का पत्थर बन गया, क्योंकि इस दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी में देश का पहला आइडब्ल्यूटी मल्टी मॉडल टर्मिनल राष्ट्र को समर्पित किया।
राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या-1
पूर्वी भारत में जल परिवहन को बढ़ावा देने के लिए वाराणसी और हल्दिया के बीच राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या-1 को मालवाहक जहाजों के परिचालन योग्य बनाया गया है। इसके लिए वाराणसी में एक मल्टी मॉडल टर्मिनल विकसित किया गया है। आगे चलकर वाराणसी से हल्दिया के बीच 20 मल्टी मॉडल टर्मिनल बनाए जाएंगे। विश्व बैंक की सहायता से बने इस जलमार्ग के जरिये 2,000 डीडब्लूटी क्षमता वाले जहाजों का परिचालन संभव होगा। ये जहाज दो से तीन मीटर गहरे पानी में भी सफलतापूर्वक चलेगें और एक बार में 140 ट्रकों में ढोए जाने वाले सामान के बराबर माल ढोएंगे। इन जहाजों का निर्माण भी मेक इन इंडिया मुहिम के तहत देश में ही हो रहा है।
उत्तर, पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत
जब राष्ट्रीय जलमार्ग-1 को ईस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कोरिडॉर से जोड़ दिया जाएगा तब रेल, सड़क और जलमार्ग का व्यवस्थित नेटवर्क बन जाएगा। इससे उत्तर, पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत माल ढुलाई के मामले में आपस में जुड़ जाएंगे। इस प्रकार वाराणसी से चले कंटेनरों के कोलकाता बंदरगाह और भारत-बांग्लादेश प्रोटोकॉल रूट के तहत बांग्लादेश, म्यांमार, थाईलैंड, इंडोनेशिया, वियतनाम जैसे दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों तक पहुंचने का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा। माल ढुलाई के साथ सरकार इन जलमागोर्ं को यात्री परिवहन और क्रूज पर्यटन स्थल के रूप में भी विकसित कर रही है। हाल ही में वाराणसी में पहली क्रूज सेवा अलकनंदा की शुरुआत की गई। इसके जरिये पर्यटकों को गंगा दर्शन कराया जा रहा है। जल्द ही गंगा नदी के रास्ते पटना से वाराणसी के बीच क्रूज सेवा शुरू हो जाएगी। इतना ही नहीं गंगा नदी से ‘सी प्लेन’ उड़ान की तैयारी की जा रही है। ये आपातकालीन चिकित्सा सेवाओं के लिए भी उपयोगी साबित होंगे।
लॉजिस्टिक्स लागत घटाने पर जोर
सरकार का सबसे ज्यादा जोर लॉजिस्टिक्स लागत घटाने पर है, क्योंकि इसके चलते भारतीय सामान बाजार में पहुंचते-पहुंचते महंगे हो जाते हैं और प्रतिस्पर्धा में पिछड़ जाते हैं। उदाहरण के लिए किसी सामान की दिल्ली से मुंबई तक की परिवहन लागत मुंबई से लंदन तक के माल भाड़े से ज्यादा होती है। इसे आलू के उदाहरण से समझा जा सकता है। ऊंची क्वालिटी के बावजूद महंगी ढुलाई के कारण भारतीय आलू अंतरराष्ट्रीय बाजारों में पिछड़ जाता है। चिली से नीदरलैंड की दूरी 13,000 किमी है जबकि भारत से नीदरलैंड के बीच की दूर सात हजार किमी है। फिर भी नीदरलैंड के बाजारों में चिली का आलू सस्ता पड़ता है।
अंतरदेशीय जल परिवहन
अंतरदेशीय जल परिवहन भारत के लिए कोई नई बात नहीं है। सदियों से व्यापार व यात्रियों के लिए नदियों का इस्तेमाल होता रहा है। रेल व सड़कों के विकास के साथ इन जलमार्गो पर ध्यान नहीं दिया गया जिससे इनकी भागीदारी तेजी से घटी। दूसरी ओर कम लागत व पर्यावरण अनुकूल साधन होने के चलते दुनिया भर में अंतरदेशीय जल परिवहन का महत्व बढ़ा। भारत के कुल माल का छह फीसद अंतरदेशीय जल परिवहन से ढोया जाता है जबकि चीन में यह अनुपात 47 फीसद, यूरोपीय देशों में 44 फीसद और बांग्लादेश में 35 फीसद है।
ढुलाई लागत में कमी आएगी
जलमार्गो से न केवल ढुलाई लागत में कमी आएगी बल्कि भारी दबाव से जूझ रहे सड़क व रेल परिवहन तंत्र को भी राहत मिलेगी। एक हार्स पॉवर द्वारा सड़क से 150 किलोग्राम, रेल से 500 किलो जबकि जलमार्ग से 4,000 किलो सामान ढोया जा सकता है। जलमार्गो के विकास पर मोदी सरकार की प्रतिबद्धता का पता इस बात से चलता है कि जहां पिछले 30 वर्षो में पांच जलमार्गो का विकास किया गया वहीं मोदी सरकार ने महज चार साल में 106 जलमार्गो को जोड़ा। देश की 111 नदियों को जलमार्ग में तब्दील करने की योजना पर काम चल रहा है। साथ ही मल्टी मॉडल टर्मिनल बनाकर जलमार्गो को सड़क व रेल से जोड़ा जाएगा। वस्तुओं और वाहनों के परिवहन के लिए सरकार पांच ठिकानों पर जल बंदरगाह बनाएगी और माल की लोडिंग-अनलोडिंग में काम आने वाली ‘रोल ऑन-रोल ऑफ वैसेल्स’ की स्थापना की जाएगी।
जलमार्ग ढुलाई का अहम योगदान
चीन, जापान व दक्षिण कोरिया की तरक्की में जलमार्ग ढुलाई का अहम योगदान रहा है। इसीलिए मोदी सरकार पूरे देश में जलमार्ग का सुदृढ़ नेटवर्क बना रही है। जलमार्ग से ढुलाई में प्रदूषण भी नहीं फैलता है। जहां प्रति किलोमीटर माल ढुलाई की लागत सड़क से ढाई रुपये व रेल से डेढ़ रुपये आती है वहीं जल मार्ग से यह लागत महज 25 पैसा आती है। स्थापना व रखरखाव में भी जलमार्ग का कोई तोड़ नही है। एक किलोमीटर रेल मार्ग बनाने में जहां एक से तीन से पांच करोड़ रुपये लगते हैं वहीं सड़क बनाने में 60 से 75 लाख रुपये खर्च होते हैं, लेकिन इतनी ही दूरी के जलमार्ग के विकास पर मात्र 10 लाख रुपयों की जरूरत पड़ती है। सबसे बढ़कर जलमार्गो के रखरखाव का खर्च न के बराबर होता है। अनाज, सब्जियां, खाद, आलू, लीची, खाद्य तेल, कोयला, हथकरघा उत्पादों आदि की कम लागत पर ढुलाई होने से इसका असर महंगाई में कमी और बढ़ते निर्यात के रूप में सामने आएगा। जलमार्ग से ढुलाई क्रांति के परवान चढ़ने पर न केवल आर्थिक धुरी में बदलाव आएगा, बल्कि किसानों की बदहाली, बेरोजगारी, गरीबी में भी कमी आएगी।
(लेखक केंद्रीय सचिवालय सेवा में अधिकारी हैं)