राजनैतिक दलों को सूचना के अधिकार कानून में लाने की मांग, सुप्रीम कोर्ट में याचिका, दी गई ये दलीलें
सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका के जरिए पंजीकृत और मान्यता प्राप्त सभी राजनैतिक दलों को आरटीआई के दायरे में लाने की मांग की गई है।
By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Sun, 31 Mar 2019 08:46 PM (IST)Updated: Sun, 31 Mar 2019 08:46 PM (IST)
नई दिल्ली (जागरण ब्यूरो)। सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल हुई है जिसमें पंजीकृत और मान्यता प्राप्त सभी राजनैतिक दलों को सूचना के अधिकार कानून के तहत लाने की मांग की गई है। भाजपा नेता व वकील अश्वनी कुमार उपाध्याय ने याचिका दाखिल कर सभी राजनैतिक दलों को सूचना के अधिकार कानून की धारा 2(एच)(डी)(1) के तहत पब्लिक अथारिटी घोषित करने की मांग की है।
उपाध्याय ने शनिवार को सुप्रीम कोर्ट मे यह याचिका दाखिल की। याचिका मे यह भी मांग की गई है कि सभी पंजीकृत और मान्यता प्राप्त राजनैतिक दलों को निर्देश दिया जाए कि वे चार सप्ताह के भीतर सूचना अधिकारी और अपीलीय अथारिटी नियुक्त करें। इसके अलावा राजनैतिक दल सूचना कानून के तहत पूरी ईमानदारी से सूचनाओं का खुलासा करें। मांग है कि कोर्ट चुनाव आयोग को निर्देश दे कि वह सुनिश्चित करे कि जो राजनैतिक दल जनप्रतिनिधित्व कानून, सूचना के कानून, आयकर कानून और आदर्श आचार संहिता तथा अन्य नियम कानूनों का पालन नहीं करते उन राजनैतिक दलों की मान्यता रद की जाए और उन पर पेनाल्टी भी लगाई जाए।
याचिकाकर्ता का कहना है कि उसने इस बारे में 27 अक्टूबर 2017 को चुनाव आयोग को ज्ञापन दिया था। जब चुनाव आयोग ने इस दिशा में कुछ भी प्रभावी काम नहीं किया तब उन्होंने यह याचिका दाखिल की है। याचिका में कहा गया है कि लोगों को मिला स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव का अधिकार कालाधन, बेनामी संपत्ति का लेनदेन और भ्रष्टाचार से प्रभावित होता है। राजनैतिक दलों को पब्लिक अथारिटी घोषित करने की मांग करते हुए कहा गया है कि संविधान की दसवीं अनुसूची में राजनैतिक दलों को काफी अधिकार दिये गये हैं। यहां तक कि राजनैतिक दल पार्टी लाइन का पालन न करने वाले संसद और विधानसभा सदस्य तक को बाहर निकाल सकते हैं।
याचिका में कहा गया है कि जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 29सी के मुताबिक राजनैतिक दलों को प्राप्त चंदे की रिपोर्ट चुनाव आयोग को देनी पड़ती है। यह नियम राजनैतिक दलों को पब्लिक अथारिटी होने का चरित्र प्रदान करता है। इसलिए, कोर्ट को जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 29ए, 29बी और 29सी तथा संविधान की 10वीं अनुसूची को एक साथ देखते हुए राजनैतिक दलों को आरटीआई कानून की धारा 2(एच) के तहत पब्लिक अथारिटी घोषित करना चाहिए।
याचिका में यह भी कहा गया है कि केन्द्र और राज्य सरकारें राजनैतिक दलों को महत्वपूर्ण जगह मुफ्त मे या बहुत रियायती दर पर जमीन और इमारत आवंटित करती हैं। इतना ही नहीं दूरदर्शन चुनाव के समय राजनैतिक दलों को फ्री एयरटाइम आवंटित करता है। ये राजनैतिक दलों को परोक्ष रूप से वित्तीय पोषण देने का उदाहरण है। पूरी संवैधानिक योजना की लोकतांत्रिक राजनीति में राजनैतिक दल जीवन रक्त की तरह हैं और उन्हें कई तरह से सीधे या परोक्ष रूप से केन्द्र तथा राज्य सरकारें वित्तीय मदद देती हैं, इसलिए राजनैतिक दलों को सूचना कानून के तहत पब्लिक अथारिटी घोषित किया जाए। इस बारे में आयकर कानून का भी हवाला दिया गया है।
उपाध्याय ने शनिवार को सुप्रीम कोर्ट मे यह याचिका दाखिल की। याचिका मे यह भी मांग की गई है कि सभी पंजीकृत और मान्यता प्राप्त राजनैतिक दलों को निर्देश दिया जाए कि वे चार सप्ताह के भीतर सूचना अधिकारी और अपीलीय अथारिटी नियुक्त करें। इसके अलावा राजनैतिक दल सूचना कानून के तहत पूरी ईमानदारी से सूचनाओं का खुलासा करें। मांग है कि कोर्ट चुनाव आयोग को निर्देश दे कि वह सुनिश्चित करे कि जो राजनैतिक दल जनप्रतिनिधित्व कानून, सूचना के कानून, आयकर कानून और आदर्श आचार संहिता तथा अन्य नियम कानूनों का पालन नहीं करते उन राजनैतिक दलों की मान्यता रद की जाए और उन पर पेनाल्टी भी लगाई जाए।
याचिकाकर्ता का कहना है कि उसने इस बारे में 27 अक्टूबर 2017 को चुनाव आयोग को ज्ञापन दिया था। जब चुनाव आयोग ने इस दिशा में कुछ भी प्रभावी काम नहीं किया तब उन्होंने यह याचिका दाखिल की है। याचिका में कहा गया है कि लोगों को मिला स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव का अधिकार कालाधन, बेनामी संपत्ति का लेनदेन और भ्रष्टाचार से प्रभावित होता है। राजनैतिक दलों को पब्लिक अथारिटी घोषित करने की मांग करते हुए कहा गया है कि संविधान की दसवीं अनुसूची में राजनैतिक दलों को काफी अधिकार दिये गये हैं। यहां तक कि राजनैतिक दल पार्टी लाइन का पालन न करने वाले संसद और विधानसभा सदस्य तक को बाहर निकाल सकते हैं।
याचिका में कहा गया है कि जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 29सी के मुताबिक राजनैतिक दलों को प्राप्त चंदे की रिपोर्ट चुनाव आयोग को देनी पड़ती है। यह नियम राजनैतिक दलों को पब्लिक अथारिटी होने का चरित्र प्रदान करता है। इसलिए, कोर्ट को जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 29ए, 29बी और 29सी तथा संविधान की 10वीं अनुसूची को एक साथ देखते हुए राजनैतिक दलों को आरटीआई कानून की धारा 2(एच) के तहत पब्लिक अथारिटी घोषित करना चाहिए।
याचिका में यह भी कहा गया है कि केन्द्र और राज्य सरकारें राजनैतिक दलों को महत्वपूर्ण जगह मुफ्त मे या बहुत रियायती दर पर जमीन और इमारत आवंटित करती हैं। इतना ही नहीं दूरदर्शन चुनाव के समय राजनैतिक दलों को फ्री एयरटाइम आवंटित करता है। ये राजनैतिक दलों को परोक्ष रूप से वित्तीय पोषण देने का उदाहरण है। पूरी संवैधानिक योजना की लोकतांत्रिक राजनीति में राजनैतिक दल जीवन रक्त की तरह हैं और उन्हें कई तरह से सीधे या परोक्ष रूप से केन्द्र तथा राज्य सरकारें वित्तीय मदद देती हैं, इसलिए राजनैतिक दलों को सूचना कानून के तहत पब्लिक अथारिटी घोषित किया जाए। इस बारे में आयकर कानून का भी हवाला दिया गया है।
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