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देसी पौधे ही बदलेंगे देश, लेकिन इसके लिए जरूरी है सही पेड़ और पौधों की जानकारी

पेड़ पौधे न सिर्फ हमारे पर्यावरण को साफ करते हैं बल्कि हमें कई तरह की दुर्लभ जड़ीबूटियां भी देते हैं।

By Kamal VermaEdited By: Published: Mon, 06 Jul 2020 10:05 AM (IST)Updated: Mon, 06 Jul 2020 10:05 AM (IST)
देसी पौधे ही बदलेंगे देश, लेकिन इसके लिए जरूरी है सही पेड़ और पौधों की जानकारी
देसी पौधे ही बदलेंगे देश, लेकिन इसके लिए जरूरी है सही पेड़ और पौधों की जानकारी

डॉ एचवी वशिष्ठ। देश के लगभग तीस करोड़ आदिवासी एवं अन्य स्थानीय निवासी वनों पर अपनी आजीविका के लिए संपूर्णतया निर्भर रहते हैं। शहरी क्षेत्रों में भी पेड़-पौधे वातावरण को स्वच्छ रखने में अहम भूमिका अदा करते हैं। पेड़-पौधों की महत्ता को जानते हुए समाज में पवित्र ग्रोव्स की परिकल्पना विकसित हुई। जिसमें स्थानीय निवासी अपने क्षेत्र में विकसित ग्रोव्स (पवित्र वन क्षेत्र) का संवद्र्धन एवं संरक्षण गांव वालों की सहभागिता के द्वारा किया जाता है। ऐसे क्षेत्रों में किसी भी प्रकार का आवागमन एवं प्राकृतिक संसाधनों का दोहन वर्जित रहता है। यह इसलिए संभव है कि स्थानीय लोगों को पेड़ों एवं वनों से होने वाले पर्यावरण संरक्षण का समुचित ज्ञान रहता है। यह परिकल्पना चिरकाल से चली आ रही है।

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देश के विभिन्न राज्यों में ये पवित्र ग्रोव्स अलग-अलग नामों से जाने जाते हैं, परंतु सबकी परिकल्पना समान है।इतना ही नहीं हिंदू धर्म में विभिन्न पेड़ पौधों जैसे पीपल, बरगद, आम, पलास, मंदार आदि की पूजा की जाती है। जिस वजह से इस प्रकार के पौधों को कम से कम नुकसान पहुंचाया जाता है तथा इनके संवद्र्धन में समाज विशेष योगदान देता रहा है। अगर हम पौधों के बारे में विश्लेषण करें तो मुख्यतया दो श्रेणी के पौधे देखे जा सकते हैं।

एक तो स्थानीय (देशी) व दूसरी बाहरी (विदेशी), इन विदेशी पौधों की हम व्यापारिक आवश्यकता हेतु समय-समय पर देश को परिचित करते रहते हैं। जैसे यूकेलिप्टस, ल्यूसीना प्रासोपिस, एकेलिया ल्योकेसिफेला, एकेसिया मिरांजी, पाइनस पेटूला, केसिया साइमिया (कसोड़) आदि। दूसरे प्रकार के वे विदेशी पौधे हैं, जो किसी अन्य माध्यम से देश में आए हैं। इनमें मुख्यतया लैंटाना, गाजरघास, वन तुलसी आदि। विभिन्न अध्ययनों से यह देखा गया कि इन विदेशी पौधों के रोपण की वजह से जैव विविधता को हानि पहुंच रही है तथा दूसरी ओर से इन पौधों का स्थानीय लोगों की आजीविका में सहयोग न के बराबर रहता है।

इसके विपरीत स्थानीय (देशी) बहुद्देश्यीय पौधों के रोपण करने से, जंगलों पर निर्भर रहने वाले निवासियों की आजीविका के साथ-साथ पर्यावरण पर भी अनुकूल प्रभाव देखने को मिलता है। इस प्रकार के स्थानीय पौधे उस जलवायु के हिसाब से स्वत: ही विकसित होते हैं और ये अपने साथ उगने वाली अन्य पादप प्रजातियों की वृद्धि में कोई रुकावट नहीं डालती हैं। जिस वजह से स्थानीय जैव विविधता का संवद्र्धन निरंतर बना रहता है। इन पौधों के रोपण से स्थानीय लोगों की दिन प्रतिदिन की जरूरतें जैसे, चारापत्ती, जलाऊ लकड़ी, दवाइयां, तेल आदि बहुत सी आवश्यकताओं की पूर्ति होती रहती है।

प्रख्यात पर्यावरणविद् एवं चिपको आंदोलन के प्रेरणास्नोत पद्मभूषण चंडी प्रसाद भट्ट एवं पद्मभूषण सुंदरलाल बहुगुणा निरंतर स्थानीय पौधों के रोपण की वकालत करते रहते हैं। ये प्रमुखतया छायादार, चारापत्ती, फलदार पौधों के बारे में विभिन्न संचार माध्यमों से और स्थानीय निवासियों को अवगत करवाते रहते हैं। पहाड़ी क्षेत्र के परिप्रेक्ष्य में ये मुख्यतया बांज, अखरोट, चेस्टनट, खुबानी, नाशपाती, पांगर, अंजीर के पौधों के रोपण होने चाहिए।

हमारे देश में पौधों का रोपण मुख्यत: दक्षिण-पश्चिम मानसून (जून-सितंबर) के दौरान किया जाता है। कई बार पौधों की उपयोगिता, स्थानीय जलवायु एवं स्थानीय लोगों की आवश्यकता का सही मूल्यांकन न होने पर गलत पौधों का रोपण कर लिया जाता है, जो कि पर्यावरण की दृष्टि से भी हानिकारक तथा स्थानीय निवासियों को भी कोई लाभ नहीं मिल पाता है।

हमें आवश्यकता है कि हम स्थानीय जलवायु के एवं स्थानीय निवासियों की आवश्यकता के अनुरूप पौधों का चयन करें। ताकि, स्थानीय निवासियों की आजीविका के साथ पर्यावरण संरक्षण में भी प्रमुख भूमिका अदा कर सकें। उदाहरण के तौर पर मध्य भारत की बात करें तो स्थानीय लोगों की उपयोगिता के हिसाब से, मंडुवा, चिरौंजी, तेंदूपत्ता, साल, सागौन, शीशम, नीम, इमली, आंवला, लसोरा, बेर, बेल, बांस आदि का रोपण किया जा सकता है, क्योंकि ये स्थानीय होने की वजह से लोगों की आजीविका बनाए रखने में निरंतर उपयोगी सिद्ध होंगे। इसी प्रकार अन्य क्षेत्रों के लिए देशी पौधों का चयन किया जा सकता है। स्थानीय (देशी) बहुद्देश्यीय पौधों के रोपण से, जंगलों पर निर्भर रहने वाले निवासियों की आजीविका के साथ-साथ पर्यावरण पर भी अनुकूल प्रभाव देखने को मिलता है।

पूर्व प्रमुख, फॉरेस्ट्री, इकोलॉजी एंड क्लाइमेट चेंज विभाग, वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून)


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