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सोशल मीडिया तक नाबालिगों की पहुंच नियंत्रित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में दायर हुई याचिका

इस समय भारत में सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने की आयु निर्धारित करने संबंधी कोई कानून नहीं है। अमेरिका में चिल्ड्रेंस ऑनलाइन प्राइवेसी प्रोटेक्शन एक्ट है जहां 13 साल से कम आयु के बच्चों से संबंधित आंकड़ा तैयार करते समय उसके माता-पिता या अभिभावकों की सहमति ली जाती है।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Tue, 13 Oct 2020 10:01 PM (IST)Updated: Tue, 13 Oct 2020 10:01 PM (IST)
सोशल मीडिया तक नाबालिगों की पहुंच नियंत्रित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में दायर हुई याचिका
अदालत ने इस याचिका पर मंगलवार को केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया।

नई दिल्ली, प्रेट्र। सोशल मीडिया पर नाबालिगों की पहुंच नियंत्रित करने के लिए कानून बनाने और इसका उपयोग कर रहे लोगों की प्रोफाइल के सत्यापन की व्यवस्था करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है। अदालत ने इस याचिका पर मंगलवार को केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया। मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और वी रामासुब्रमणियन की पीठ ने कानून के दो छात्रों स्कंद बाजपेयी और अभ्युदय मिश्रा की याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया।

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याचिका के अनुसार, इस समय भारत में सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने की आयु निर्धारित करने संबंधी कोई कानून नहीं है। अमेरिका में चिल्ड्रेंस ऑनलाइन प्राइवेसी प्रोटेक्शन एक्ट है, जहां 13 साल से कम आयु के बच्चों से संबंधित आंकड़ा तैयार करते समय उसके माता-पिता या अभिभावकों की सहमति ली जाती है। याचिका में दिल्ली स्थित एक गैर सरकारी संगठन की इसी साल अप्रैल में प्रकाशित रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा गया है कि चाइल्ड पोर्न जैसे शब्दों की खोज में तेजी से इजाफा हुआ है।

इन छात्रों ने कानून मंत्रालय को यह निर्देश देने का अनुरोध किया है कि सोशल मीडिया पर दुष्कर्म के वीडियो और निजी विवरण की जानकारी हासिल करने तथा इनकी बिक्री के विज्ञापन देने वालों की प्रोफाइल की जांच की जाए। उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि इस तरह की आपत्तिजनक सामग्री सोशल मीडिया से हटे।

मीडिया की टिप्पणियां संस्थान के लिए नुकसानदायक

वहीं, दूसरी ओर अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि लंबित मामलों में मीडिया की टिप्पणियां न केवल जजों को प्रभावित करने का प्रयास हैं, बल्कि वे उनके फैसले पर असर डालने की कोशिश भी हैं। यह कोर्ट की अवमानना की तरह हैं। लंबित मामलों में खास तरह की मीडिया रिपोर्टिंग का जिक्र करते हुए ये बाते उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में कही। उन्होंने कहा कि ये न्यायाधीशों की सोच को प्रभावित करने वाली और न्यायिक संस्थान को बहुत नुकसान पहुंचाने वाली हैं। उन्होंने कहा कि यह पूरी तरह से वर्जित है और इससे सुप्रीम कोर्ट की अवमानना हो सकती है।


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