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अब कोई भी दिल नहीं रहेगा बीमार, शरीर में अच्छे से होगा खून का संचार

हृदय में चार वाल्व आपके दिल के माध्यम से रक्त के प्रवाह को प्रभावित कर सकते हैं, लेकिन वाल्वोप्लास्टी और अन्य तकनीकों के जरिए वाल्व में आई खराबी का अब कारगर इलाज संभव है...

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 09 Feb 2019 01:27 PM (IST)Updated: Sat, 09 Feb 2019 01:47 PM (IST)
अब कोई भी दिल नहीं रहेगा बीमार, शरीर में अच्छे से होगा खून का संचार
अब कोई भी दिल नहीं रहेगा बीमार, शरीर में अच्छे से होगा खून का संचार

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। जिस प्रकार हमारे शरीर के हर अंग की अलग-अलग कार्यप्रणाली और प्रक्रियाएं हैं, ठीक उसी प्रकार मानव हृदय के हर भाग की भी अपनी एक प्रक्रिया है। हमारे हृदय में वाल्व महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। दिल की दीवार से जुड़ी ये कागज समान पतली झिल्लियां लगातार खुलती व बंद होती हैं, जो रक्त प्रवाह को नियमित करती हैं, जिससे हृदय में धड़कन उत्पन्न होती है।

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वाल्व के कार्य
हृदय में चार वाल्व-माइट्रल वाल्व, ट्राइकसपिड, एओर्टिक और पल्मोनरी- वाल्व होते हैं। हार्ट चैंबर में लगे वाल्व हर एक हार्ट बीट के साथ खुलते और बंद होते हैं। हार्ट वाल्व यदि ठीक प्रकार से काम कर रहे हैं, तो रक्त संचार किसी बाधा के बगैर आगे की तरफ हो रहा होता है। हार्ट वाल्व में सिकुड़न या अन्य कोई परेशानी होने पर रक्त पूरी तरह आगे न जाकर पीछे की तरफ लौटना शुरू कर देता है।

देश में वाल्व की बीमारी से बहुत ज्यादा लोग ग्रस्त हैं। दुख की बात यह है कि युवा महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान यह पता चलता है कि उन्हें हार्ट वाल्व की बीमारी है। उनकी सांस फूलने लगती है, साथ-साथ धड़कनें भी बढ़ने लगती हैं। इस स्थिति में इकोकार्डियोग्राफी नामक जांच कराने पर पता चलता है कि उनके हृदय का वाल्व तंग (संकरा या नैरो) है और उसके लिए उन्हें तुरंत इलाज करने की जरूरत है।

मर्ज का कारण
देश में र्यूमैटिक हार्ट डिजीज के बड़े पैमाने पर मामले सामने आते हैं। ऐसे मामलों में माइट्रल वाल्व की खराबी यानी वाल्व के तंग (नैरो) होने की समस्या ज्यादा पाई जाती है। इस समस्या को माइट्रल स्टेनोसिस कहा जाता है। आमतौर पर वाल्व का एरिया चार सेंटीमीटर होता है और जब र्यूमैटिक हार्ट डिजीज से यह सिकुड़ जाता है, तो इसका एरिया घटकर एक सेंटीमीटर से कम हो जाता है, तब मरीज की सांस फूलती है, धड़कन बढ़ती है, कमजोरी आती है और वजन नहीं बढ़ता है।

इलाज के बारे में
कई बार मरीजों को वाल्व की तंगी के साथ वाल्व के लीकेज का सामना करना पड़ता है। इस स्थिति को माइट्रल रिगर्जिटेशन कहा जाता है। र्यूमैटिक हार्ट डिजीज से खराब वाल्व को स्थिति के अनुसार बैलून वाल्वोप्लास्टी से ठीक किया जाता है। ज्यादातर मरीजों के संदर्भ में हमारी कोशिश रहती है कि सर्जरी के बगैर बैलून वाल्वोप्लास्टी से तंग वाल्व को खोलें। सर्जरी के बगैर खोला गया वाल्व आमतौर पर 7 से 10 साल तक अच्छा काम करता है और दोबारा बंद होने पर इसे खोला जा सकता है।

अगर तंग वाल्व के साथ बहुत ज्यादा लीकेज है, तो ऐसे मरीजों में ओपन हार्ट सर्जरी से वाल्व को बदल दिया जाता है। लोगों का सोचना है कि अगर नया वाल्व लगा दिया जाए, तो हमेशा के लिए परेशानी खत्म हो जाती है। ऐसा मानना ठीक नहीं है। ऐसा इसलिए, क्योंकि वाल्व को बदलने के बाद आपको कुछ दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। जैसे मरीज को रोज खून को पतला करने की दवाएं लेनी पड़ती हैं, जिसकी सही मात्रा का पता लगाने के लिए बार-बार रक्त की जांच करानी पड़ती हैं।

ऐसा भी देखा गया है कि रक्त गाढ़ा होने पर दवाएं कम करने के कारण जो नया हार्ट वाल्व डाला जाता है, वह अटक जाता है और ठीक से काम नहीं करता। ऐसी स्थिति में इमरजेंसी ट्रीटमेंट लेना जरूरी होता है, अन्यथा यह स्थिति मृत्यु का कारण बन सकती है। इस प्रकार के मरीजों में खासतौर से बनाई गई रक्त पतला करने की दवाएं दी जाती हैं और सही समय पर दवाएं लेकर जानलेवा स्थिति को टाला जा सकता है। इसके साथ-साथ कई बार सर्जरी करने से हार्ट चैंबर में कमजोरी आ जाती है जिसकी वजह से हम हमेशा कोशिश करते हैं कि सर्जरी को टाला जाए और बैलून वाल्वोप्लास्टी से तंग वाल्व को खोला जाए।

तंग वाल्व का इलाज न कराने से कई बार वाल्व के पीछे लेफ्ट एट्रियम में रक्त का थक्का (ब्लड क्लॉट) पैदा हो जाता है, जो ब्रेन में जाकर स्ट्रोक पैदा कर सकता है। कई बार वाल्व में इंफेक्शन हो जाता है और उससे तेज बुखार हो सकता है, जो लंबे अर्से तक रह सकता है। ऐसी स्थिति जो हार्ट वाल्व के इंफेक्शन के कारण पैदा हुई हो, उसे बैक्टीरियल एंडोकारडाइटिस कहा जाता है। इसका सही इलाज एंटीबॉयोटिक दवाओं द्वारा करना जरूरी होता है।

बैलून वाल्वोप्लास्टी
इसे पी.टी.एम.सी. भी कहा जाता है। वाल्व के मरीजों के लिए यह एक बहुत बड़ा वरदान है। ऐसा इसलिए, क्योंकि इसमें एक बैलून को लोकल एनेस्थीसिया के जरिये एंजियोग्राफी की तरह वाल्व तक ले जाकर फुला दिया जाता है और वाल्व को खोल दिया जाता है। वाल्व खोलने की इस क्रिया को करने में आधे घंटे से भी कम समय लगता है। जिन मरीजों को वाल्व के संकरे या तंग होने की समस्या हो, उन्हें इलाज लेने में कभी भी देरी या संकोच नहीं करना चाहिए। कई बार वाल्व में कैल्शियम जमा हो जाता है। ऐसी स्थिति में कुछ खास मरीजों में बैलून वाल्वोप्लास्टी द्वारा वाल्व को खोला जा सकता है। जब हम महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान वाल्व खोलते हैं, तो उसके लिए खास तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है ताकि गर्भ में पल रहे बच्चे को कोई नुकसान न हो।

कब बदलें वाल्व
जब वाल्व में बहुत ज्यादा लीकेज हो, तो वाल्व को सर्जरी द्वारा रिप्लेस करना चाहिए। हृदय के वाल्व तंग हो जाते हैं और उनमें कैल्शियम जम जाता है। यह स्थिति हृदय के क्रियाकलाप पर प्रतिकूल असर डालती है। कुछ खास मरीजों में जैसे बच्चों या वृद्धों में जहां ओपन हार्ट सर्जरी नहीं की जा सकती, वहां बैलून वाल्वोप्लास्टी द्वारा वाल्व को खोला जा सकता है।
[डॉक्टर, पुरुषोत्तम लाल

सीनियर इंटरवेंशनल, कॉर्डियोलॉजिस्ट मेट्रो हार्ट इंस्टीट्यूट, नोएडा]


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