ताकि जानें लोग कि बस्तर बदल रहा है...
बस्तर को नक्सली धमाकों की वजह से नहीं, आदिवासियों की जीवंतता से जाना जाए। यही राष्ट्रपति का संदेश है।
रायपुर (अनिल मिश्रा/नईदुनिया)। अपार प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध बस्तर संभाग, दुर्भाग्यवश नकारात्मक हलचलों के लिए सुर्खियों में ज्यादा रहता है ...हालांकि अब तस्वीर बदल रही है। बदल ही नहीं रही, बहुत तेजी से बदल रही है। विकास का पंक्षी अब यहां भरपूर उड़ान पर है जबकि नक्सलवाद धीरे-धीरे पराभव की ओर। इसी बरस 14 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसी बस्तर संभाग का दौरा कर पूरी दुनिया को मूक संदेश दिया था कि अब बस्तर बदल रहा है।
बुधवार को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी इसी बस्तर संभाग में गहन भ्रमण व दौरा कर यह मूक संदेश दिया कि न केवल विकास की दौड़ में बस्तर सबके साथ कदमताल कर रहा है वरन आदिवासी समाज भी अब मुख्यधारा में शामिल है। अपने दो दिनी छत्तीसगढ़ दौरे के प्रथम दिन बुधवार को राष्ट्रपति ने आदिवासी क्षेत्रों में विकास का उजाला देखा।
कड़कनाथ, यह मुर्गे की एक प्रजाति भर नहीं है। अपनी तरह का विशेष नस्ल का यह मुर्गा, आदिवासियों की रोजी-रोजगार के लिए अपार संभावनाएं भी खोलता है। राष्ट्रपति ने इस महंगे बिकने वाले मुर्गे की फार्मिंग को करीब से जाना-समझा। इसके अलावा इसके रोजगार के अन्यान्य साधनों-संसाधनों, मसलन ई-रिक्शा जिसे आदिवासी महिलाएं चला रही हैं, महिला समूहों की एकीकृत खेती, आदि के बारे में भी राष्ट्रपति ने गहन दिलचस्पी दिखाई, जाना, समझा और समझाया भी।
अपने कार्यकाल के एक वर्ष पूर्ण होने पर राष्ट्रपति नक्सल प्रभावित बस्तर संभाग में अन्य समूहों के साथ ही आदिवासी समाज के बीच भी थे। हाल के वर्षों में सरकार ने बस्तर संभाग में विकास के तेज काम के जरिए यहां के समाज की दशा व दिशा को बेहद सकारात्मक तरीके से बदला है। नक्सलवाद का दायरा अब सिमट रहा है और उन्हें समर्थन मिलना अब लगभग बंद हो चुका है। नक्सलवाद टूटा तो आदिवासी मुख्यधारा की ओर लौटे।
यहां जीवन की धुन मांद की थापर पर झूमती, इतराती है। हाट बाजारों में जीवन के रंग दिखते हैं। महिलाएं खेत और जंगल से लेकर गृहस्थी और बाजार तक का बोझ पहले भी उठाती रही हैं, अब वे ई-रिक्शा पर सवारियां ढो रही हैं, औद्योगिक सिलाई मशीनों पर हुनर दिखा रही हैं, व्यापार-व्यवसाय में वह करके दिखा रही हैं जिससे दुनिया सबक ले सकती है। बस्तर को नक्सली धमाकों की वजह से नहीं, आदिवासियों की जीवंतता से जाना जाए। यही राष्ट्रपति का संदेश है।