कृषि कानूनों के विरुद्ध अलग-थलग पड़ने लगा पंजाब का किसान आंदोलन, दूसरे राज्यों का नहीं मिल रहा समर्थन
देश के और किसी राज्य अथवा हिस्से में इन कृषि कानूनों के विरोध में कोई आवाज तक नहीं उठ रही है। फेडरेशन ऑफ फारमर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष पी. चेंगल रेड्डी का कहना है पंजाब के किसानों का यह पूरा आंदोलन दिशाहीन है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। कृषि सुधार की दिशा में संसद से पारित कृषि कानूनों के विरुद्ध पंजाब के किसान आंदोलन अलग-थलग पड़ने लगा है। किसानों के सहारे अपनी राजनीति को धार देने के मकसद से कूदे राजनीतिक दलों को भी अब कोई माकूल रास्ता नहीं दिख रहा है। आंदोलन के समर्थन में खड़ी अमरिंदर सरकार खुद मुश्किलों से घिरने लगी है। लेकिन किसान संगठन अब उनकी सुनने को राजी नहीं हैं। केंद्र की राजग सरकार से नाता तोड़कर किसानों की वाहवाही लूटने उतरा अकाली दल खुद भी पसोपेश में हैं।
देश के और किसी राज्य अथवा हिस्से में इन कृषि कानूनों के विरोध में कोई आवाज तक नहीं उठ रही है। फेडरेशन ऑफ फारमर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष पी. चेंगल रेड्डी का कहना है 'पंजाब के किसानों का यह पूरा आंदोलन दिशाहीन है। केंद्र सरकार ने ये कानून पूरे किसान समुदाय के लिए बनाए हैं।' उन्होंने पूरे तल्खी भरे शब्दों में कहा 'पंजाब और हरियाणा के किसानों की प्रमुख फसल चावल व गेहूं की खरीद की गारंटी होती है। यह आगे भी जारी रहने वाली है। पीडीएस में सस्ता बांटने के लिए एमएसपी पर खरीद तो होती ही रहेगी। कृषि में चावल और गेहूं के अलावा सैकड़ों फसलें हैं, जिनके लिए सराहनीय कानूनी प्रावधान किए गए हैं। इसका विरोध नहीं होना चाहिए।'
तमाम राज्यों के किसान संगठनों का नहीं मिल रहा समर्थन
भारतीय किसान यूनियन के महासचिव युद्धवीर सिंह ने माना कि पंजाब के किसानों का आंदोलन सीमित हो गया है। उनका कहना है कि तमाम राज्यों में किसानों का संगठन बहुत कमजोर है। जहां तहां है भी तो उनका समर्थन नहीं मिल रहा है। सिंह ने कहा कि गेहूं व चावल के अलावा अन्य फसलों की खरीद के बारे में सोचने की जरूरत है। हालांकि इन कानूनों में युद्धवीर सिंह को कुछ खामियां जरूर दिखती हैं। उन्हें तथाकथित किसान नेताओं से मलाल है जो खुद को कई सौ संगठनों का नेता मानते हैं। लेकिन जमीन पर उनका अस्तित्व नहीं है। महाराष्ट्र के प्रमुख किसान नेता स्वर्गीय शरद जोशी कृषि क्षेत्र में कानूनी सुधार को लेकर लगातार संघर्ष करते रहे।
आंदलोनों की गूंज हुई धीमी
कानूनों को लेकर हरियाणा के किसानों के आंदोलन की गूंज धीरे धीरे मद्धिम पड़ गई है। लेकिन पंजाब में आंदोलन को राज्य की सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार का समर्थन प्राप्त होने से चल रहा है। पिछले दो महीने से रेल पटरियों के बाधित होने से राज्य की आर्थिक गतिविधियां ठप पड़ने लगी हैं। इससे आजिज आ चुकी राज्य सरकार आंदोलन खत्म कराना तो चाहती है। लेकिन अब आंदोलनकारी उनके काबू से बाहर दिखने लगे हैं।
केंद्र और किसान संगठनों के साथ 13 नवंबर को राजधानी दिल्ली में हुई मैराथन वार्ता में सारे तथ्य भी परत दर परत खुले। पंजाब के किसान संगठनों ने नये तीनों कानूनों के बारे में विस्तार से जहां जानकारी ली, वहीं अपनी बातें भी रखीं। केंद्रीय मंत्रियों ने कानूनों को वापस करने जैसी शर्त को सिरे से खारिज कर दिया। इसी दो टूक जवाब से बैठक के आखिर में किसान संगठनों ने 18 नवंबर को चंडीगढ़ में अपने सहयोगी संगठनों से चर्चा कर इसका कोई समाधान ढूंढ़ने का आश्वासन देकर लौटे हैं।