Pathalgadi Movement: क्या आरोपितों के खिलाफ राजद्रोह के आरोप वापस लेना चाहती है सरकार
पत्थलगड़ी मामले में 20 लोगों के खिलाफ मामले दर्ज किए गए थे जिनमें से मात्र चार अपने खिलाफ राजद्रोह और अन्य आरोप रद्द करने की अपील के साथ शीर्ष अदालत पहुंचे।
नई दिल्ली, प्रेट्र। इाारखंड के बहुचर्चित पत्थलगड़ी आंदोलन को लेकर दर्ज मामलों में एक नया मोड़ आ गया है। सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड में हाल ही में गठित नई सरकार से यह साफ करने को कहा है कि क्या वह उन चार आदिवासी कार्यकर्ताओं के खिलाफ राज्य में पत्थलगड़ी आंदोलन के समर्थन में कथित तौर पर फेसबुक पोस्ट लिखने के लिए राजद्रोह के आरोप में दर्ज मामले वापस लेना चाहती है।
दरअसल इस मामले के चार आरोपितों ने शीर्ष अदालत का रुख किया और कहा कि राज्य की हेमंत सोरेन सरकार के कैबिनेट के पहले फैसलों में यह घोषणा भी शामिल है कि वह आंदोलन से जुड़े सभी आपराधिक मामले वापस लेगी। शीर्ष कोर्ट की न्यायमूर्ति एल नागेश्र्वर राव और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की पीठ ने झारखंड के वकील तापेश कुमार सिंह से कहा कि वह निर्देश प्राप्त करें और कोर्ट को मामले वापस लेने के बारे में किसी निर्णय के बारे में दो सप्ताह में सूचित करें। पीठ ने अपलोड अपने आदेश में कहा, 'दो सप्ताह बाद सूचीबद्ध करें। झारखंड राज्य के अधिवक्ता को निर्देशित किया जाता है कि वह इस बारे में निर्देश प्राप्त करें और बताएं कि क्या राज्य याचिकाकर्ताओं के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों पर आगे बढ़ना चाहती है।'
बता दें कि याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वकील जोएल ने कोर्ट को बताया कि राज्य में नई सरकार ने शपथ ली है और उसने अपनी पहली कैबिनेट बैठक में घोषणा की है कि पत्थलगड़ी आंदोलन के कारण दर्ज आपराधिक मामले वापस लिए जाएंगे। राज्य के वकील तापेश कुमार सिंह ने कहा कि यदि ऐसा है तो याचिकाकर्ताओं को झारखंड हाई कोर्ट के गत वर्ष के उस फैसले के खिलाफ दायर अपनी अपील वापस ले लेनी चाहिए जिसमें अदालत ने उनके खिलाफ दर्ज मामले रद्द करने से इनकार कर दिया था।
क्या था मामला
दरअसल चार आरोपितों जे विकास कोरा, धर्म किशोर कुल्लू, इमिल वाल्टर कांडुलना और घनश्याम बिरुली के खिलाफ इस आरोप में मामले दर्ज कि ए गए थे कि इन्होंने अपनी फेसबुक पोस्ट के जरिये पुलिस अधिकारियों पर हमले करने के लिए लोगों को उकसाया। कुल 20 लोगों के खिलाफ मामले दर्ज किए गए थे जिनमें से मात्र चार अपने खिलाफ राजद्रोह और अन्य आरोप रद्द करने की अपील के साथ शीर्ष अदालत पहुंचे।
क्या है पत्थलगड़ी आंदोलन
बता दें कि पत्थलगड़ी नाम आदिवासियों के उस आदिवासी आंदोलन को दिया गया है जो ग्राम सभाओं को स्वायत्तता की मांग को लेकर किया गया। पत्थलगड़ी की मांग करने वाले चाहते हैं कि क्षेत्र में आदिवासियों पर देश का कोई कानून लागू ना हो। पत्थलगड़ी समर्थक जंगल और नदियों पर सरकार के अधिकारों को खारिज करते हैं। आंदोलन के तहत पत्थलगड़ी समर्थक गांव या क्षेत्र के बाहर एक पत्थर गाड़ते हैं या बोर्ड लगाते हैं जिसमें घोषणा की जाती है कि गांव एक स्वायत्त क्षेत्र हैं और इसमें बाहरी व्यक्तियों का प्रवेश निषिद्ध है।