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पंडित जसराज के नाम पर है ब्रह्मांड में चक्‍कर लगाते एक माइनर प्‍लानेट 2006 VP32 का नाम

हमारे अंतरिक्ष की एस्‍ट्रॉयड बेल्‍ट में लाखों माइनर प्‍लानेट हैं। इनमें से ही एक प्‍लानेट का नाम पंडित जसराज है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Tue, 18 Aug 2020 11:25 AM (IST)Updated: Tue, 18 Aug 2020 05:39 PM (IST)
पंडित जसराज के नाम पर है ब्रह्मांड में चक्‍कर लगाते एक माइनर प्‍लानेट 2006 VP32 का नाम
पंडित जसराज के नाम पर है ब्रह्मांड में चक्‍कर लगाते एक माइनर प्‍लानेट 2006 VP32 का नाम

नई दिल्‍ली (ऑनलाइन डेस्‍क)। सुरों की खान पंडित जसराज भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन ब्रह्मांड में 11 नवंबर, 2006 को खोजे गए हीन ग्रह या Minor Planet 2006 VP32 (संख्या -300128) के रूप में वो हमेशा विद्यमान रहेंगे। अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ (IAU) ने इसे 'पंडित जसराज' नाम दिया है। हीन ग्रह ऐसी खगोलीय वस्तुओं को कहा जाता है जो सौर मण्डल में सूरज की परिक्रमा तो करती हैं लेकिन ना तो वह इतनी बड़ी हैं के उन्हें ग्रह या बौना ग्रह कहा जाए और न ही वे धूमकेतु की श्रेणी में आती हैं। हीन ग्रह केंद्र नाम का संगठन ऐसे हीन ग्रहों के नाम और कक्षाए दर्ज करता है। आपको बता दें कि अब तक करीब 5 लाख ऐसे माइनर प्‍लेनेट दर्ज किए जा चुके हैं। इनमें से अधिकतर सौर मंडल के क्षुद्रग्रह घेरे में पाए जाते हैं।

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संगीत की दुनिया में 8 दशकों तक अपनी सुर लहरियां बिखेरने के बाद 17 अगस्‍त को उनका अमेरिका के न्‍यजर्सी में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था। वो बीते कुछ वर्षों से अमेरिका में ही रह रहे थे। अपने जीवन काल में उन्‍हें देश विदेश में जबरदस्‍त ख्‍याति और कई सम्‍मान भी मिले। काशी के संकटमोचन मंदिर में आखिरी बार प्रस्‍तुति दी थी। उन्‍हें पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने रास का राजा की उपाधि दी थी। बेहद कम लोग इस बात को जानते हैं कि पंडित जसराज ने बेगम अख्‍तर से प्रेरणा लेकर लेकर ही शास्‍त्रीय संगीत सीखा था।

29 जनवरी 1930 को हरियाणा के हिसार में जन्‍मे जसराज का संबंध मेवाती घराने से था। है। महज चार वर्ष की उम्र में अपने पिता को खोने के बाद उनका पालन पोषण उनके बड़े भाई पंडित मणीराम ने किया था। जसराज ने भारत, कनाडा और अमेरिका में संगीत सिखाया है। उन्‍होंने बॉलीवुड में गिनीचुनी फिल्‍मों के लिए ही गाने गए इसमें पहला वी शांताराम की फिल्म 'लड़की सहयार्दी की' के लिए था, जिसमें उन्‍होंने एक प्‍लेबैक सिंगर के तौर पर राग अहीर भैरव गाया था। इसे वसंत देसाई ने कंपोज किया था। उनका दूसरा गाना 1975 में आई फिल्म बीरबल माय ब्रदर के लिए था। इसे श्याम प्रभाकर ने कंपोज किया था। इसमें जसराज और भीमसेन जोशी की राग मालकौन में जुगलबंदी सुनाई दी थी। इसके बाद फिल्म 1920 के लिए उन्‍होंने एक रोमांटिक सॉन्‍ग गाया था। इस गाने को अदनान सामी ने कंपोज किया था।

उन्‍होंने एकबार बीबीसी को दिए इंटरव्‍यू में कहा था कि यह कहना बहुत कठिन है कि कितनी सांसें लेनी हैं, कितने कार्यक्रम करने हैं। इस इंटरव्‍यू में उन्‍होंने यहां तक कहा था कि संगीत के क्षेत्र में उनका कोई योगदान नहीं है। उन्‍होंने कहा था कि मैं कहां गाता हूं, मैंने कुछ नहीं किया। मैं तो केवल माध्यम मात्र हूं। उन्‍होंने अपनी इस लंबी यात्रा और सभी उप‍लब्धियों के लिए ईश्वर और अपने बड़े भाई को बड़ी वजह बताया था। उन्‍होंने कहा कि कई बार गाते-गाते वो स्वरों को खोजने लगते हैं। उस दिन उन्‍हें सुनने वाले कहते हैं कि आपने आज ईश्वर के दर्शन करा दिए।

महज 14 साल की उम्र में एक गायक के रूप में प्रशिक्षण शुरू करने वाले जसराज कई वर्षों तक रेडियो से भी जुड़े रहे थे। इसके बाद 22 साल की उम्र में उन्‍होंने गायक के रूप में अपना पहला स्टेज कंर्स्‍ट किया था। उन्‍होंने ख्‍याल गायकी में कई नए प्रयोग करे। जसराज ने जुगलबंदी का एक उपन्यास रूप तैयार किया, जिसे 'जसरंगी' कहा जाता है, जिसे 'मूर्छना' की प्राचीन प्रणाली की शैली में किया गया है जिसमें एक पुरुष और एक महिला गायक होते हैं जो एक समय पर अलग-अलग राग गाते हैं। जसराज को अर्ध-शास्त्रीय संगीत शैलियों को लोकप्रिय बनाने के रूप में भी याद किया जाता है।

उन्‍हें मिले सम्‍मान

  • सुमित्रा चरत राम अवार्ड फॉर लाइफटाइम अचीवमेंट
  • मारवाड़ संगीत रत्‍‍‍न पुरस्कार
  • संगीत नाटक अकादमी फैलोशिप
  • स्वाति संगीता पुरस्करम
  • पद्म विभूषण
  • संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार
  • पद्म श्री
  • संगीत काला रत्‍न
  • मास्टर दीनानाथ मंगेशकर पुरस्कार
  • लता मंगेशकर पुरस्कार
  • महाराष्ट्र गौरव पुरस्कार

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