पंचायतों के माध्यम से गांवों में स्वास्थ्य प्रणाली का ढांचा किया जाए विकसित
कोरोना रोधी टीकाकरण में तेजी आने और महामारी संबंधी प्रोटोकाल का पालन होने से संक्रमण पर लगाम लग रही है पर इसकी तीसरी लहर की आशंका को खारिज नहीं किया जा सकता। ऐसे में पंचायतों की भूमिका एक बार फिर प्रभावी होती दिख रही है।
शिवांशु राय। कोरोना महामारी से निपटने में विभिन्न देशों में अनेक प्रकार की रणनीतियों को अपनाया गया है। ऐसे में भारत में भी विकेंद्रित व्यवस्था के तहत स्थानीय स्वशासन यानी पंचायती राज संस्थाओं की सकारात्मक भूमिका साफ उभर कर सामने आई है। कोरोना महामारी के संक्रमण की भयावह दूसरी लहर में महामारी के ग्रामीण स्तर तक फैलने पर भी पंचायतों द्वारा असंगठित क्षेत्र के मजदूरों का आंकड़ा एकत्रित करने, मनरेगा के माध्यम से स्थानीय रोजगार के सृजन में सहयोग करने, मुफ्त राशन वितरण, जनकल्याणकारी योजनाओं का लाभ लेने, संक्रमितों या बाहर से आने वालों के लिए आइसोलेशन की व्यवस्था करने, साफ सफाई और सैनिटाइजेशन की समुचित व्यवस्था, कोरोना टेस्टिंग और टीकाकरण के प्रति सभी लोगों को जागरूक और तत्पर करने जैसी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई गई है।
अनेक राज्यों ने तो स्थानीय स्वशासन के सहयोग से कोरोना महामारी के संक्रमण को विभिन्न प्रकार की कार्ययोजनाओं के माध्यम से ग्रामीण स्तर पर नियंत्रित किया हैं। जैसे महामारी के दौरान उत्तर प्रदेश में ‘मेरा गांव कोरोनामुक्त’ जैसे संकल्पित अभियान से पंचायतों का सदुपयोग पूरे देश में नजीर बना तो कोरोना के दौरान ‘काशी माडल’ की पूरे देश में सराहना हुई जिसमें वाराणसी में कोरोना संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए तैयार रणनीति में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में ‘माइक्रो कंटेनमेंट जोन नीति’ अपनाकर ‘जहां बीमार वहीं उपचार’ की व्यवस्था से पंचायतों का सहयोग सुनिश्चित कर महामारी को नियंत्रित किया गया। उल्लेखनीय है कि काशी माडल में ट्रेस, ट्रैक और ट्रीट के समावेश के साथ जनसहभागिता की बड़ी भूमिका रही है। व्यापक नजरिये से देखा जाए तो ढाई लाख से अधिक पंचायतों के साथ भारत दुनिया का सबसे बड़ा राष्ट्र है जो स्थानीय सरकार द्वारा कोविड महामारी से लड़ रहा है। यह हमारे देश में शक्तियों के विकेंद्रीकरण और संघवाद का सबसे नायाब उदाहरण हैं।
विभिन्न संस्थाओं और विशेषज्ञों द्वारा कोरोना महामारी की तीसरी लहर आने की चेतावनियों के बीच पंचायतों के समक्ष महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां आ खड़ी होती हैं। आखिरकार कैसे बेहतर प्रबंधन क्षमता और सीमित संसाधनों के बीच प्रभावी तरीके से ग्रामीण क्षेत्रों में संक्रमण को रोका जाए? दरअसल पंचायतीराज संस्थाओं के कई निर्णयों और दायित्वों को राज्यों के अधीन होने के साथ साथ एवं अनेक राज्यों में पंचायती राज संस्थाओं को कई प्रणालीगत बाधाओं और संस्थागत चुनौतियों की वजह से अधिकांश अधिकारों को भी नहीं सौंपा गया है। बहुत से राज्यों में तो धन आवंटन, पंचायतों के अधिकारों और कर्तव्यों को भी व्यापक रूप से स्पष्ट नहीं किया गया है, लिहाजा यही कारण है कि आज भी पंचायतों के अधिकारों, व्यापकता, क्षमता, कार्यक्षेत्र और विकास कार्यो से संबंधित योजनाओं के बारे में ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों में जागरूकता और पारदर्शिता का अभाव पाया जाता है। यहीं से भ्रष्टाचार की बुनियाद मजबूत होती चली जाती है।
हालांकि नरेंद्र मोदी सरकार ने शुरू से ही स्थानीय स्वशासन को स्वावलंबी, सुदृढ़, सक्षम और सशक्त करने की तरफ अनेक कदम उठाए हैं। साथ ही नियमन और निगरानी तंत्र को भी अधिक पारदर्शी और सबल बनाया गया है। वर्ष 2015 में पंचायती राज मंत्रलय में ग्राम पंचायत विकास योजना (जीपीडीपी) की शुरुआत करने के साथ साथ 14वें और 15वें वित्त आयोग की ग्राम विकास अनुदान राशि को बढ़ाने की अनुशंसा पर भी अमल करना, बेहतर प्रबंधन, नियमन, निगरानी और पारदर्शिता को बनाने के लिए ग्राम सभाओं की प्रगति रिपोर्ट, लाभार्थियों की सूची और तमाम विकास कार्यों जैसे मनरेगा, खाद्य सुरक्षा, सड़क, बिजली और अन्य कार्यों आदि की वार्षकि रिपोर्ट को आनलाइन कर जनता के लिए सुगम बनाना, राष्ट्रीय ग्राम स्वराज मिशन, स्वामित्व योजना की शुरुआत और ई-गवर्नेस की दिशा में पंचायतों को जोड़ते हुए ई-ग्राम स्वराज पोर्टल एवं आडिट आनलाइन एप्लीकेशन को लांच किया गया। इससे ग्राम पंचायतों के कामकाज में पारदर्शिता आने के साथ साथ जागरूकता, सुशासन और जवाबदेही का भाव पैदा होगा।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर की आशंकाओं के बीच विभिन्न ग्रामीण इलाकों में तमाम प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र को अपग्रेड करना, पीएचसी के स्वास्थ्यकर्मियों को एक समग्रतापूर्ण, विस्तृत दृष्टिकोण तथा संक्रामक रोग नियंत्रण, निगरानी प्रणाली, रियल टाइम डाटा प्रबंधन, सामुदायिक स्वास्थ्य से संबंधित समस्याओं के संबंध में व्यावहारिक चिकित्सकीय समस्याएं, ग्रामीण परिवेश तथा विभिन्न सामाजिक आयामों की समझ और सामान्य रूप से कुछ प्रशासनिक समझ को विकसित करने की जरूरत है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में बेहतर निगरानी प्रणाली, टेलीमेडिसिन की व्यवस्था, बुनियादी अवसंरचना का विकास, स्वास्थ्य उपकरण, टेस्टिंग किट, दवाएं और वैक्सीन की पर्याप्त मात्र की उपलब्धता को सुनिश्चित करना भी आवश्यक है। गांव में स्वास्थ्य शिविरों का आयोजन करना, आशा और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को इन पहलों से जोड़ना एवं पंचायतों को अपने क्षेत्र में इन सब कार्यो की निगरानी के लिए जिम्मेदार बनाना बेहतर कदम हो सकता है।
राज्यों को एक बेहतर कार्ययोजना बना कर कोविड नियंत्रण में पंचायतों को मुख्य भूमिका में लाने की जरूरत है। फंड की उपलब्धता, पंचायती राज संस्थाओं को अधिकार देने व नियमन प्रणाली को मजबूत बनाकर ग्रामीण विकास और स्वास्थ्य अवसंरचना को मजबूत कर हम तीसरी लहर से ज्यादा सहजता से निपटने में सक्षम हो सकते हैं।
[सामाजिक मामलों के जानकार]