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बहनों की मुहब्बत में झलका बंटवारे का दर्द

जब जुदा हुई तो जवान थीं और गिनती में ग्यारह। वक्त का बवंडर ऐसा आया, बहुत कुछ बदल गया। एक-एक करके नौ बहनें दुनिया को अलविदा कह गई। दो बची थीं। उनमें भी एक हिंदुस्तान और दूसरी पाकिस्तान में थी। पुराना शहर में रहने वाली बड़ी बहन रईसा की ख्वाहिश थी, मौत से पहले छोटी बहन हनीफा का दीदार हो जाए। उनके दिन

By Edited By: Published: Thu, 17 Oct 2013 01:53 AM (IST)Updated: Thu, 17 Oct 2013 05:18 AM (IST)
बहनों की मुहब्बत में झलका बंटवारे का दर्द

बरेली, [वसीम अख्तर]। जब जुदा हुई तो जवान थीं और गिनती में ग्यारह। वक्त का बवंडर ऐसा आया, बहुत कुछ बदल गया। एक-एक करके नौ बहनें दुनिया को अलविदा कह गई। दो बची थीं। उनमें भी एक हिंदुस्तान और दूसरी पाकिस्तान में थी। पुराना शहर में रहने वाली बड़ी बहन रईसा की ख्वाहिश थी, मौत से पहले छोटी बहन हनीफा का दीदार हो जाए। उनके दिनरात इसी जुस्तजू में कट रहे थे लेकिन सरहद की बेड़ियां रोक देतीं। लाख कोशिश के बावजूद बड़ी बहन को वीजा नहीं मिला। सालों बाद ये हसीन पल आए तो आंखों से आंसू रोके नहीं रुके। ताजा हो गई 50 साल पुरानी यादें, बचपन के वो दिन, वो गलियां..।

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सौै साल की होने जा रहीं रईसा बेगम का भरा-पूरा खानदान था। शौहर हमीदुल्ला खां जमींदार घराने से थे। करीबी रिश्तेदारी रुहेला सरदार नच्जू खां और बुलंद खां से थी, जिनका मकबरा फतेहगंज पश्चिमी में है। रईसा बेगम के तेरह बहन-भाई थे। दोनों भाइयों का छोटी उम्र में इंतकाल हो गया। नौ बहनें भी खत्म हो चुकी हैं। शौहर रुकमुद्दीन माचिस फैक्ट्री में थे, वह भी साथ छोड़ गए। दो बेटों के साथ मुहल्ला चक महमूद में रहती हैं।

उम्र के इस पड़ाव में आखिरी तमन्ना यही थी कि छोटी बहन हनीफा का दीदार हो जाए, जो बंटवारे के कुछ समय बाद कांकरटोला में रहने अपने शौहर अहसान उल्ला के साथ पाकिस्तान चली गई थीं। वहां नजीबाबाद (कराची) में रहती हैं। उन्हें बुलाने के लिए लंबे समय से कोशिशें चल रही थीं। सरहद पर तनाव के चलते करीब तीन बार से वीजा नहीं मिल पा रहा था।

पिछले साल जून में 'जागरण' ने पहली बार दोनों बहनों के दर्द को खबर से बयां किया। दोबारा प्रयास हुआ तो 15 दिन पहले ये बंदिश टूट गई। जैसे-तैसे बहन की ख्वाहिश पूरी करने 50 साल बाद हनीफा हिंदुस्तान आई तो भावनाओं के समंदर हिलोरें मारने लगा। इस बीच दस दिन रहकर हनीफा भरे दिल से वापस लौट गई।

किसने, क्या-कहा

कुछ मजबूरियां रहीं, अपना मुल्क छोड़ दिया। यह कसक आज भी दिल में है। जल्द आना चाहूं तो सरहद पैर में बेड़ियां डाल देता है। शुक्र है आपा की आंखें बंद होने से पहले मुलाकात हो गई।

-पाक वापसी से पहले हनीफा बेगम ने कहा

पचास साल बाद मिले तो किस्मत ने दस दिन का ही साथ लिखा। खैर अब कोई गम नहीं, जिस्म से रूह फना होती है तो हो जाए। अल्लाह ने आंखें बंद होने से पहले छोटी की दीदार करा दिया।

-छोटी से विदाई पर रईसा बेगम बोलीं

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