कोविड-19 से बचाव के लिए यूनिवर्सिटी ने की नई खोज, नहीं पहनना पड़ेगा मास्क
शोधकर्ताओं ने अपनी तरह का पहला मल्टीपरपज एल्गी आधारित रेस्पीरेटर ‘ऑक्सीजेनो’ डेवलप किया है। यह हवा में मौजूद 99.3 फीसद हानिकारक गैसों एवं पार्टिकुलेट मैटर को न्यूट्रलाइज करता है।
नई दिल्ली [अंशु सिंह]। कोविड19 से लड़ाई के दौरान मास्क पहनने के कारण बहुत से लोगों ने सांस लेने में परेशानी की शिकायत की है। इसी को ध्यान में रखते हुए पंजाब की लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने अपनी तरह का पहला मल्टीपरपज एल्गी आधारित रेस्पीरेटर ‘ऑक्सीजेनो’ डेवलप किया है। यह न केवल हवा में मौजूद 99.3 फीसद हानिकारक गैसों एवं पार्टिकुलेट मैटर को न्यूट्रलाइज करता है, बल्कि इससे गुज़रने वाली ऑक्सीजन की मात्रा को भी बढ़ाता है।
एल्गी से बना रेस्पीरेटर
शोधकर्ताओं के अनुसार, रेस्पीरेटर में एल्गी का इस्तेमाल किया गया है, क्योंकि उसमें मौजूद माइक्रोब्स (सूक्ष्म जीवाणु) प्रकाश संशलेषण कर कार्बन डाई ऑक्साइड एवं अन्य वायु प्रदूषकों को निकाल देते हैं और ऑक्सीजन बनाते हैं। ऐसे में इससे गुज़रने वाली हवा सांस लेने के लिए अधिक योग्य हो जाती है। चार परतों वाला यह रेस्पीरेटर खासतौर पर फ्रंटलाइन यानी अग्रिम मोर्चे पर काम करने वाले कर्मचारियों को तुरंत राहत पहुंचा सकता है, जिन्हें लंबे समय तक मास्क पहनने की वजह से सांस लेने में परेशानी का सामना करना पड़ता है।
प्रोजेक्ट को अंजाम देने वाली रिसर्च टीम में यूनिवर्सिटी के बीटेक के छात्र दीपक देब, अनंत कुमार राजपूत और मनीष कोटनी तथा प्रोफेसर डॉ. जस्टिन सैम्युल शामिल हैं। दीपक की मानें, तो मौजूदा एन-95 या सर्जिकल मास्क प्रदूषकों या माइक्रोब्स को तो फिल्टर कर लेते हैं, लेकिन ये प्रदूषक गैसों जैसे कार्बन डाई ऑक्साइड, नाइट्रोजन एवं सल्फर डाई ऑक्साइड, कार्बनमोनोऑक्साइड, वीओसी तथा डिसइंफेक्टेंट एवं क्लेंज़र से निकली गंध को फिल्टर नहीं कर पाते। अस्पतालों के वार्ड्स में इसी तरह के मास्क इस्तेमाल किए जाते हैं।
अस्थमा रोगियों के लिए फायदेमंद
डॉ. जस्टिन सैम्युल के अनुसार, ‘ऑक्सीजेनो’ अपनी चार परतों की मदद से 10 माइक्रोमीटर से लेकर 0.44 माइक्रोमीटर तक के पार्टिकल्स को फिल्टर कर सकता है। इसका हेपा फिल्टर धूल के कणों को, एक्टिवेटेड कार्बन फिल्टर वीओसी एवं गंध को तथा फिल्टर हानिकारक प्रदूषक गैसों को तथा पीटीएफई (टेफलॉन) फिल्टर- 044 माइक्रोमीटर तक के छोटे पार्टिकल्स को फिल्टर करता है।
इर परतों की व्यवस्था और डिज़ाइन बेहद कारगर है। इसके अतिरिक्त, एल्गी कार्टिज, ऑक्सीजन से युक्त शुद्ध हवा देती है, जो खासतौर पर अस्थमा के मरीज़ों एवं उन लोगों के लिए फायदेमंद हैं जिन्हें मास्क पहनने से सांस लेने में असुविधा होती है।
दोबारा हो सकता है इस्तेमाल
इस रेस्पीरेटर की एल्गी कार्टिज और फिल्टर को बदल कर इसे दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है। दरअसल, जब एल्गी कार्टिज की लाइफ खत्म होने वाली होती है, तो इसमें इनबिल्ट सेंसर एलर्ट कर देता है। आमतौर पर, एल्गी कार्टिज लगातार इस्तेमाल करने पर तकरीबन 40 घंटे या 7 दिन चलती है, जबकि फिल्टर को एक महीने या 48 घण्टे (जो भी पहले हो) बाद बदलना चाहिए। ऑक्सीजेनो एंटीमाइक्रोबियल और बायोडीग्रेडेबल प्लास्टिक, पीएलए एक्टिव से बना है, जो इसकी सतह पर बैक्टीरिया या अन्य प्रदूषकों को बढ़ने से रोकता है।
यूनिवर्सिटी ने इस रेस्पीरेटर के लिए पेटेंट फाइल किया है और इसके वाणिज्यीकरण के लिए साझेदारों की तलाश में है। एक बार ऑक्सीजेनो के बाज़ार पहुंचने पर इसकी लागत तकरीबन 3600 रुपये होगी, जो बड़े पैमाने पर निर्माण शुरू होने के बाद 30-40 फीसदी तक कम हो सकती है।
लवली प्रोफेशेनल यूनिवर्सिटी के चांसलर अशोक मित्तल कहते हैं, ‘हम ऑक्सीजेनो बनाने वाली टीम की सराहना करते हैं, जिन्होंने अपनी ही एयर प्यूरीफायर तकनीक का दोबारा इस्तेमाल कर यह रेस्पीरेटर बनाया है। कभी-कभी इनोवेशन कुछ नया ही नहीं लेकर आते, बल्कि समस्याओं के समाधान में भी कारगर साबित हो सकते हैं।’