1900 से अधिक म्यांमार के शरणार्थी बच्चों को मिजोरम के सरकारी स्कूलों में दिया गया दाखिला
लालरिंचना के अनुसार कुल 1972 म्यांमार के बच्चे जिनमें 1010 लड़के और 962 लड़कियां हैं। वर्तमान में राज्य भर के सरकारी स्कूलों में कक्षाओं में भाग ले रहे हैं। उन्होंने कहा कि नए शरणार्थियों के साथ इन बच्चों की संख्या बदलती रहती है।
आइजोल एजेंसियां। म्यांमार में अस्थिरता के बीच उत्तर पूर्वी भारत के मिजोरम राज्य में एक बड़ी संख्या में वहां के बच्चों को शरण दी गई है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने मंगलवार को कहा कि 1900 से अधिक म्यांमार के बच्चे, जो अपने परिवारों के साथ देश छोड़कर मिजोरम में शरण ले चुके हैं। इन सभी बच्चों को राज्य के विभिन्न स्कूलों में नामांकित किया गया है, जहां वे मुफ्त शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं।
अधिक जानकारी देते हुए शिक्षा विभाग के निदेशक जेम्स लालरिंचना ने कहा कि राज्य सरकार अगस्त से म्यांमार के नागरिकों के बच्चों के नाम स्कूलों में दर्ज करा रही है। उन्होंने कहा कि यह पहल पूरी तरह मानवीय आधार पर की गई है।
शिक्षा विभाग के अधिकारी ने कहा कि हम म्यांमार के प्रवासी नेताओं के अनुरोध को नजरअंदाज नहीं कर सकते। यदि मानवीय संकट के कारण पलायन करने वाले शरणार्थियों को शिक्षा प्रदान नहीं की गई तो हमें अंतरराष्ट्रीय समुदाय से भी विरोध का सामना करना पड़ सकता है।
लालरिंचना के अनुसार कुल 1,972 म्यांमार के बच्चे जिनमें 1,010 लड़के और 962 लड़कियां हैं। वर्तमान में राज्य भर के सरकारी स्कूलों में कक्षाओं में भाग ले रहे हैं। उन्होंने कहा कि नए शरणार्थियों के साथ इन बच्चों की संख्या बदलती रहती है।
लालरिंचन ने कहा कि बच्चों के लिए शिक्षा का कोई अलग माध्यम या शिक्षकों की व्यवस्था नहीं की गई है क्योंकि उनमें से ज्यादातर मिजो और अंग्रेजी समझते हैं। समाचार एजेंसी पीटीआइ द्वारा एक्सेस किए गए शिक्षा विभाग के रिकार्ड के अनुसार शरणार्थी छात्रों के नाम मिजोरम के सभी ग्यारह जिलों के स्कूलों में पंजीकृत किए गए हैं, जिसमें सबसे अधिक 711 चम्फाई में नामांकन हुआ है, इसके बाद लांगतलाई में 539 है। रिकॉर्ड से पता चलता है कि राज्य की राजधानी आइजोल में लगभग 70 म्यांमार के बच्चे कक्षाओं में भाग ले रहे हैं।
बता दें कि मिजोरम म्यांमार के चिन राज्य के साथ 510 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है। म्यांमार के नागरिक फरवरी से एक सैन्य तख्तापलट के बाद देश से भाग रहे हैं, जिसने अपनी लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार को निर्वासन में छोड़ दिया और विरोध के बाद में कार्रवाई की गई। उनमें से ज्यादातर वर्तमान में सीमावर्ती गांवों में स्थानीय लोगों द्वारा स्थापित राहत शिविरों में रह रहे हैं।