कर्नल 'बुल' की बदौलत सियाचिन पर भारत का वर्चस्व, पाक के नापाक मंसूबों का किया था खुलासा
कर्नल बुल का 87 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। उनकी ही टोही रिपोर्ट के आधार पर भारतीय सेना सियाचिन की चोटियों पर काबिज होने के अपने मिशन में ऑपरेशन मेघदूत के तहत आगे बढ़ी थी।
नई दिल्ली, जागरण स्पेशल। दुनिया की सर्वाधिक ऊंचाई वाले रण क्षेत्रों में शुमार सियाचिन ग्लेशियर पर भारत का वर्चस्व जमाने में अहम भूमिका निभाने वाले प्रसिद्ध पर्वतारोही कर्नल नरेंद्र ‘बुल’ कुमार हमारे बीच नहीं हैं। गुरुवार को सेना के रिसर्च एवं रेफरल अस्पताल में 87 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके निधन को ‘अपूरणीय क्षति’ बताया है। वहीं, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत ने कहा कि सालतोरो रेंज और लद्दाख के दूसरे इलाकों पर हमारा वर्चस्व कर्नल नरेंद्र की साहसिक यात्राओं का ही हिस्सा है। उनका नाम हमेशा सेना के समृद्ध इतिहास में याद रखा जाएगा। सियाचिन रक्षक के रूप में अमिट छाप छोड़ गए कर्नल बुल की ही रिपोर्ट के आधार पर मेघदूत ऑपरेशन को अंजाम दिया गया था। उन्हीं स्मृतियों को ताजा करते हुए शब्द के जरिये श्रद्धांजलि..
सियाचिन ग्लेशियर में भारत की मौजूदगी और सुरक्षा सुनिश्चित करने में अहम योगदान देने वाले कर्नल नरेंद्र कुमार बुल (रिटायर्ड) ने 1984 के अप्रैल महीने में सियाचिन ग्लेशियर पर भारतीय सेना की एक टुकड़ी का नेतृत्व किया था। इस सोचे-समझे रणनीतिगत कदम के चलते तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को ऑपरेशन मेघदूत लॉन्च करने में मदद मिली थी।
कीर्ति चक्र, पद्म श्री, अजरुन अवार्ड तथा मैक ग्रेगोर मेडल जैसे पुरस्कारों से सम्मानित कर्नल कुमार ने पिछली सदी में 70 और 80 के दशक में सियाचिन क्षेत्र में कई अभियान चलाए थे। उनकी ही टोही रिपोर्ट के आधार पर भारतीय सेना सियाचिन की चोटियों पर काबिज होने के अपने मिशन में ऑपरेशन मेघदूत के तहत आगे बढ़ी थी। भारतीय सेना को उन्हीं की प्रारंभिक रिपोर्ट से पता चला था कि पाकिस्तानी सेना सियाचिन ग्लेशियर पर काबिज होने की साजिश कर रही है।
लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) संजय कुलकर्णी बताते हैं, ‘वह सियाचिन रक्षक के रूप में जाने जाते रहे हैं। सबसे पहले उन्होंने ही सियाचिन ग्लेशियर क्षेत्र में पाकिस्तान के आक्रामकता की खबर दी थी।’ कुलकर्णी भारतीय सेना के उन जवानों में शामिल थे, जिन्होंने बतौर कैप्टन अपनी पल्टन के साथ ग्लेशियर पर चढ़ाई की थी।
नंदा देवी पर्वत पर चढ़ने वाले पहले भारतीय
कर्नल नरेंद्र कुमार नंदा देवी पर्वत पर चढ़ने वाले पहले भारतीय थे। उन्होंने 1965 में माउंट एवरेस्ट, माउंट ब्लैंक (आल्प्स की सबसे ऊंची चोटी) और बाद में कंचनजंगा पर्वत को अपने कदमों से नाप दिया।
आगे बढ़ते ही पाकिस्तानी आ जाते
कर्नल कुमार ने खुद एक इंटरव्यू में बताया था कि खोजी अभियान के दौरान हम ऊंचे-ऊंचे दरे पर चढ़ाई कर रहे थे। जब भी हम आगे बढ़ते थे तो पाकिस्तानी आते थे और हमारे ऊपर ही उड़ान भरते रहते थे। वे हमें यह जताना चाहते थे कि उन्हें हमारी मौजूदगी का उन्हें पता है। वो रंग-बिरंगा धुआं छोड़ते थे। लेकिन पाकिस्तानी सेना को इस बात का अंदाजा नहीं था कि यह टुकड़ी सालतोरो रेंज पर पूरी तरह कब्जा करने का रास्ता तय कर रही थी।
ऐसे मिला ‘बुल’ उपनाम
कुलकर्णी याद करते हैं कि जिन दिनों कर्नल नरेंद्र राष्ट्रीय रक्षा अकादमी थे, तभी वह अपने सीनियर एसएफ रोडिग्स (जो बाद में सेनाध्यक्ष भी बने) से एक मुकाबले में भिड़ लिए। हालांकि वह उसमें हार गए, लेकिन अपने जोश की वजह से उन्हें ‘बुल’ उपनाम मिल गया। वह अंजाम की चिंता किए बगैर चुनौतियों से टकरा जाते थे।
ये है ऑपरेशन मेघदूत
13 अप्रैल 1984 को भारतीय सेना ने सियाचिन में ऑपरेशन मेघदूत लॉन्च किया गया था। खास बात ये थी कि बर्फ में पहने जाने वाले कपड़े और साजो सामान सेना के पास 12 अप्रैल की रात को ही पहुंचे थे। दुनिया के सबसे ऊंचे मैदान-ए-जंग में सीधे टकराव की यह एक तरह से पहली घटना थी। इसे ऑपरेशन मेघदूत नाम दिया गया और इसने भारत की सामरिक रणनीतिक जीत की नींव रखी थी। भारतीय सैनिकों ने माइनस 60 से माइनस 70 डिग्री के तापमान में सबसे ऊंची पहाड़ियों पर जाकर फतह हासिल की थी।