ऑनलाइन या वर्चुअल प्ले को थियेटर का बदला स्वरूप नहीं माना जा सकता
रंगमंच की पाठशाला नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा ने रंगमंच के स्टूडेंट्स को भी घर बैठे रंगमंच की बारीकियां सिखाना तय किया।
नई दिल्ली [स्मिता]। ऑनलाइन क्लासेज के माध्यम से अभिनय की बारीकियां तो बताई-सिखाई जा सकती हैं, लेकिन ऑनलाइन या वर्चुअल प्ले को थियेटर का बदला स्वरूप नहीं माना जा सकता है। विशेषज्ञ मानते हैं कि थियेटर की पहली शर्त है लाइव परफॉर्मेंस, जिसमें दर्शकों और अभिनेता-अभिनेत्रियों के बीच कोई कैमरे की दीवार नहीं होती। वर्चुअल प्ले लंबे समय तक नहीं रह सकते हैं।
वेबिनार के माध्यम से अभिनय की बारीकियां
लॉकडाउन की वजह से हमारे जीवन में बहुत सारे बदलाव आए। न सिर्फ हमारी दिनचर्या बदली, बल्कि हमारी सोच, नजरिया व काम करने का तरीका भी बदल गया। आज न सिर्फ ऑनलाइन क्लासेज, बल्कि ऑफिस के काम भी घर बैठे अंजाम दिए जा रहे हैं। इसलिए रंगमंच की पाठशाला नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा ने रंगमंच के स्टूडेंट्स को भी घर बैठे रंगमंच की बारीकियां सिखाना तय किया।
एनएसडी वेबिनार के माध्यम से न सिर्फ थियेटर के इतिहास, बल्कि अभिनय की बारीकियां, आधुनिक भारतीय रंगमंच, रंगमंच में प्रकाश की महत्ता आदि जैसे कई महत्वपूर्ण विषयों पर थियेटर दिग्गजों के विचारों तथा व्याख्यानों को स्टूडेंट्स तक पहुंचाया। वहीं रंगमंच के कुछ उत्साही अभिनेता-अभिनेत्रियों ने घर बैठे अपने-अपने हिस्से की एक्टिंग को कैमरे में कैद किया और उन्हें एडिट कर प्रमुख सोशल साइट्स पर प्रस्तुत कर दिया और नाम दिया वर्चुअल प्ले।
माना जाता है कि लॉकडाउन लव पहला वर्चुअल प्ले है। इसके अलावा मॉम्स थियेटर ग्रुप द्वारा तैयार किया गया वर्चुअल प्ले बालकनी भी प्रमुख है। बालकनी में प्रमुख किरदार निभा रही गीतिका गोयल कहती हैं कि यह माध्यम कलाकारों और लेखकों के लिए नई संभावनाएं लेकर आया है।
टिकाऊ नहीं होगा वर्चुअल प्ले
नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के वेबिनार के माध्यम से थियेटर दिग्गजों के लेक्चर सुनने-देखने वाले अमित बताते हैं कि बनारस में मैं कभी थियेटर के जाने-माने लोगों की अभिनय के बारे में राय नहीं जान पाया था। डॉ. अर्जुन देव चारण, शांतनु बोस, दीपंकर पॉल आदि के अलग-अलग विषयों पर दिए गए व्याख्यानों ने मुझे रंगमंच के हर क्षेत्र की बारीकियों को समझने में काफी मदद की है।
नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के प्रभारी निदेशक सुरेश शर्मा बताते हैं कि स्टूडेंट्स को रंगमंच की बारीकियों को समझाने में तो वर्चुअल माध्यम कामयाब है, लेकिन कुछ लोगों द्वारा जो वर्चुअल प्ले शुरू किया गया है, वह लंबे समय तक नहीं चल पाएगा। थियेटर फिल्मों से इसलिए अलग होता है, क्योंकि यह सजीव माध्यम होता है। इसमें अभिनेता व अभनेत्री दर्शकों से सीधे संवाद कर पाते हैं। आज के बदले हुए हालात में समय बिताने के लिए यह बढ़िया है, लेकिन इस तरह के नाटक को लोग एक घंटे तक लगातार देख नहीं सकते हैं।
पंद्रह-बीस मिनट के बाद दर्शक ऊबने लगेंगे। उनकी बात से सहमति जताते हुए फिल्म व थियेटर अभिनेता चंद्रभूषण भी कहते हैं कि वर्चुअल प्ले में सभी डायलॉग एक ही जगह यानी एक प्लेटफॉर्म पर बोलने पड़ते हैं। इसलिए डायलॉग में लगातार वेरिएशन लाना थोड़ा कठिन हो जाता है। रंगमंच में दर्शकों को ताजगी महसूस कराना बेहद जरूरी होता है, जबिक वर्चुअल प्ले में दृश्य तो तुरंत बदल नहीं सकते हैं।
ऑडिएंस क्रिएट करने का समय
फिल्म और थियेटर अभिनेता अश्वथ भट्ट वर्चुअल प्ले को थियेटर का बदला हुआ स्वरूप बिल्कुल नहीं मानते हैं। वे जोर देकर कहते हैं कि वर्चुअल प्ले काे सोशल साइट प्ले या किसी खास एप प्ले जैसे कि जूम प्ले आदि तो कहा जा सकता है, लेकिन इन्हें असली थियेटर कतई नहीं माना जा सकता है। थियेटर लाइव मीडियम है, जिसमें अभिनेता और दर्शक आमने-सामने होते हैं। उनके बीच में कैमरे की दीवार नहीं होती है। जहां लाइव खत्म हो जाए, उसे थियेटर कहा ही नहीं जा सकता है।
सामने देखने का जो अनुभव है वह मोबाइल या किसी दूसरे स्क्रीन पर नहीं हो सकता है। उदाहरण के तौर पर इंटरनेट पर कथकली नृत्य के कई सारे वीडियोज उपलब्ध हैं फिर भी हम लाइव परफॉर्मेंस देखने जाते हैं। यदि डाउन स्टेज, अप स्टेज, लाइट चेंज होना, सीन डिजाइनर, प्रोडक्शन डिजाइनर, बैकस्टेज, को-एक्टर उपलब्ध नहीं हैं, तो यह लाइव परफॉर्मर के लिए मुसीबत की बात है। अश्वथ आगे जोड़ते हैं कि कब नाटक खेले जाएंगे, कब हम ऑडिटोरियम में होंगे, कब रिहर्सल होंगे-ये सभी बातें अभी भविष्य के गर्भ में हैं, लेकिन संकट के इस समय को हमें सकारात्मक रूप में लेना चाहिए।
थियेटर के लिए दर्शकाें से जुड़ने का यह एक बड़ा अवसर है। वे बताते हैं कि कई अर्थपूर्ण व लोकप्रिय नाटक जो हिंदुस्तान में खेले गए हैं, उनकी रिकॉर्डिंग बिना किसी बाधा के दर्शकाें के सामने उपलब्ध करानी चाहिए। अश्वथ प्रश्न पूछते हैं कि इंग्लैंड का नेशनल थियेटर अपने सभी नाटक दुनिया में ब्रॉडकास्ट करता है, तो ऐसे संकट के समय हम ऐसा क्यों नहीं कर सकते हैं? थियेटर के लिए यह समय ऑडिएंस क्रिएट करने का है।
जब ऑडिटोरियम खुलेंगे, तब हमारे पास लाइव परफॉर्मेंस देखने के लिए बहुत बड़ी ऑडिएंस होगी। वे अच्छा कंटेंट देखना चाहेंगे। अश्वथ थियेटर के दोबारा रंगत में लौटने के प्रति आशावान हैं। वे कहते हैं कि भले ही छह महीने या साल भर का समय लगे, लेकिन थियेटर दोबारा खुलेंगे। थियेटर कभी मर नहीं सकता। भले ही नाटक खेले जाते समय शारीरिक दूरी बरती जाए। एक शो में दर्शकों की संख्या कम रखी जाए। सेनिटाइजर और मास्क का प्रयोग किया जाए, लेकिन नाटकों का आनंद तो सामने बैठकर ही लिया जा सकता है।