दूसरे विश्वयुद्ध के महाविनाश से होकर निकली थी संयुक्त राष्ट्र के गठन की राह, भारत की थी अहम भूमिका
विश्व शांत के मकसद से संयुक्त राष्ट्र का गठन किया गया था। दूसरे विश्व युद्ध के बाद जो विनाश हुआ था वो इतना भयावह था कि कोई भी देश दोबारा इसको देखना और झेलना नहीं चाहता था। इससे ही संयुक्त राष्ट्र के गठन की भी राह खुली थी।
नई दिल्ली (ऑनलाइन डेस्क)। संयुक्त राष्ट्र के इतिहास में ये पहला मौका है जब उसकी आम महासभा की बैठक को वर्चुअल तरह से संबोधित किया जा रहा है। ये सभी कुछ विश्व में फैली कोविड-19 महामारी की वजह से हो रहा है। संयुक्त राष्ट्र आम महासभा का ये 75वां सत्र है। इसका अर्थ है कि संयुक्त राष्ट्र को भी वजूद में आए इतने ही वर्ष हो चुके हैं। हालांकि इसकी स्थापना 24 अक्टूबर 1945 को संयुक्त राष्ट्र अधिकारपत्र पर 50 देशों के हस्ताक्षर होने के साथ हुई थी। तभी से लेकर आज तक ये विश्व कल्याण और शांति के लिए निरंतर काम कर रहा है। इसका मकसद अंतरराष्ट्रीय कानून को सुविधाजनक बनाने में सहयोग करना, अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक विकास, सामाजिक प्रगति, मानव अधिकार और विश्व शांति है।
हिरोशिमा और नागासाकी से हुआ था दूसरा विश्वयुद्ध खत्म
संयुक्त राष्ट्र की कल्पना दरअसल, दूसरे विश्व युद्ध में हुए महाविनाश को देखते हुए की गई थी। इसके गठन के पीछे यही एकमात्र मकसद था कि दोबारा दुनिया को इस तरह के खतरे में न पड़ना पड़े और विभिन्न मुद्दों को बातचीत और मध्यस्थता के जरिए सुलझाया जा सके। आपको बता दें कि दूसरे विश्वयुद्ध की शुरुआत 1939 को हुई थी और 1945 में इसके अंत की घोषणा की गई थी। इस महाविनाश वाले युद्ध का समापन जापान पर गिराए गए दो परमाणु बम और इससे हुए महाविनाश के बाद हुआ था। इस युद्ध में शायद ही कोई ऐसा रहा हो जो इससे प्रभावित हुए बिना रहा हो। छह साल एक दिन तक चले इस युद्ध में लाखों लोगों की जान गई थी। इस भयावह मंजर को दोबारा देखने की हिम्मत किसी भी देश में नहीं थी। इसलिए एक ऐसी संस्था के गठन के बारे में सोचा गया जो दुनिया को इस विनाश से बचा सके और जिसकी बात सभी देश मानें।
सूडान सबसे नया सदस्य देश
द्वितीय विश्वयुद्ध के विजेता देशों ने मिलकर संयुक्त राष्ट्र को अन्तर्राष्ट्रीय संघर्ष में हस्तक्षेप करने के उद्देश्य से स्थापित किया था। इसकी संरचना में सुरक्षा परिषद वाले सबसे शक्तिशाली देश जिसमें अमेरिका, फ्रांस, रूस और ब्रिटेन शामिल थे, की अहम भूमिका रही। 50 सदस्य देशों से शुरू होकर आज इसके 193 सदस्य देश हैं। इसमें सबसे नए सदस्य देश के रूप में दक्षिणी सूडान 11 जुलाई, 2011 को जोड़ा गया था। इसमें सभी ऐसे देश शामिल हैं जिन्हें अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त है। संयुक्त राष्ट्र की संरचना में आम सभा के अलावा, सुरक्षा परिषद, आर्थिक व सामाजिक परिषद, सचिवालय और अंतरराष्ट्रीय न्यायालय शामिल है।
1929 का राष्ट्र संघ
जिस तरह से दूसरे विश्व युद्ध के बाद इसके गठन को प्राथमिकता दी गई थी ठीक वैसे ही प्रथम विश्वयुद्ध के बाद भी हुआ था। उस वक्त 1929 में राष्ट्र संघ का गठन तो किया गया लेकिन ये पूरी तरह से प्रभावहीन ही था। बाद में इसकी जगह ही संयुक्त राष्ट्र का गठन किया गया था। इसका सबसे बड़ा फायदा था कि विपरीत परिस्थितियों में संयुक्त राष्ट्र अपने सदस्य देशों की सेनाओं को शांति संभालने के लिए तैनात कर सकता है। हालांकि इस सेना में विभिन्न देशों की मिलीजुली सेना ही होती है और संयुक्त राष्ट्र की शांति सेना के रूप में कार्य करती है। वर्तमान में इस शांति सेना में सबसे बड़ा सहयोग भारत करता है। ये शांति सेना दुनिया के उन देशों में जहां पर विभिन्न गुटों में संघर्ष चल रहा है आम नागरिकों के हितों के लिए काम करती है। इसके तहत उन्हें स्वास्थ्य सेवाएं और जरूरी चीजें भी मुहैया करवाई जाती हैं।
यूएन चार्टर पर भारत के हस्ताक्षर
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं का संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन आयोजित किया गया। इसमें 40 देश शामिल हुए थे। इन सभी ने संयुक्त् राष्ट्र संविधा पर हस्ताक्षर किए थे। इसमें पोलेंड ने बाद में दस्तखत किए थे। 26 जून 1945 को भारत भी उन 50 देशों में शामिल हो गया था जिन्होंने यूएन चार्टर पर दस्तखत किए थे। सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी देशों के हस्ताक्षर के बाद संयुक्त राष्ट्र की अस्तित्व में आया था। हालांकि इसके गठन में भारत की भी अहम भूमिका रही थी। भारत हमेशा से ही वसुदेव कुटुंबकम के तहत पूरी दुनिया को एक परिवार मानता आया है। इस लिहाज से भारत हमेशा से ही शांति का पछधर रहा है। दूसरे विश्व युद्ध के समय भारत पर अंग्रेजों का शासन था और उस समय भारतीय सिपाहियों ने भी दुनिया के कई हिस्सों में जंग लड़ी थीं।
हैडक्वार्टर और स्वीकृत भाषा
संयुक्त राष्ट्र का मुख्यालय अमेरिका के न्यूयॉर्क में है। इस इमारत की स्थापना का प्रबंध एक अंतरराष्ट्रीय शिल्पकारों के समूह द्वारा हुआ। इस मुख्यालय के अलावा और अहम संस्थाएं जिनेवा और कोपनहेगन आदि में भी हैं। संयुक्त राष्ट्र की स्वीकृत भाषाओं की बात करें तो इसमें कुल छह भाषाएं हैं जिनमें अरबी, चीनी, अंग्रेजी, फ्रांसीसी, रूसी और स्पेनिश शामिल हैं। लेकिन इनमें से केवल इंग्लिश और फ्रांसीसी को ही संचालन की भाषा माना गया है। जब इसकी स्थापना हुई थी उस वक्त चीनी, इंग्लिश, फ्रांसीसी और रूसी भाषा को ही स्वीकृत किया गया था। इसके बाद 1973 में अरबी और स्पेनिश भाषा को भी इसमें शामिल कर लिया गया। संयुक्त राष्ट्र द्वारा स्वीकृत इन भाषाओं को लेकर कइ्र बार विरोधी स्वर उठते रहे हैं। भारत का मानना है कि हिंदी को भी संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा बनाया जाना चाहिए।
यूएन में हिंदी
आपको बता दें कि संयुक्त राष्ट्र में किसी भाषा को आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता दिए जाने के लिए दो तिहाई बहुमत से पारित करना होता है। भारत का तर्क ये भी हिंदी विश्व में बोली जाने वाली दूसरी सबसे बड़ी भाषा है, लिहाजा इसको स्वीकार करना ही चाहिए। कई अवसरों पर भारतीय नेताओं ने संयुक्त रार्ष्ट की आम सभा को हिंदी में ही संबोधित किया है। 1977 में हिंदी में दिया गया अटल बिहारी वाजपेयी का भाषण, सितंबर, 2014 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का दिया गया भाषण, अक्तूबर 2015 और सितंबर, 2016 में तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज द्वारा दिया गया भाषण में उल्लेखनीय है।
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