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69 वर्षों में चार बार बदला इस देश का नाम, जानें भारत से क्‍या है इसका कनेक्‍शन

आजादी के पूर्व मौजूदा भारत का अंधिकांश पूर्वी क्षेत्र कभी बंगाल के नाम से जाना जाता था। लेकिन समय चक्र के साथ यहां के राजनीतिक, भौगोलिक और सामाजिक स्‍तर पर कई बदलाव हुए।

By Ramesh MishraEdited By: Published: Fri, 11 Jan 2019 12:59 PM (IST)Updated: Fri, 11 Jan 2019 03:42 PM (IST)
69 वर्षों में चार बार बदला इस देश का नाम, जानें भारत से क्‍या है इसका कनेक्‍शन
69 वर्षों में चार बार बदला इस देश का नाम, जानें भारत से क्‍या है इसका कनेक्‍शन

नई दिल्‍ली [ जागरण स्‍पेशल ]। 11 जनवरी, 1972 को जब भारतीय सेना पाकिस्‍तान के साथ हुए युद्ध में जीत का जश्‍न और उल्‍लास मना रही थी, उस वक्‍त पड़ोस में एक नवोदित राष्‍ट्र का उदय हुआ। इस नवोदित राष्‍ट्र का नाम बांग्‍लादेश है, हालांकि प्रतिवर्ष 26 मार्च को बांग्‍लादेश अपना स्वतन्त्रता दिवस मनाता है, लेकिन 11 जनवरी, 1972 को इस देश का नामकरण हुआ। इस दिन पूर्वी पाकिस्‍तान नया राष्‍ट्र बांग्‍लादेश बन गया। इसलिए 11 जनवरी का दिन बांग्‍लादेश के लिए काफी अहम है। आइए जानते हैं बांग्‍लादेश की राजनीतिक, भौगोलिक और इसके सामाजिक इतिहास के बारे में। आखिर बंगाल, पूर्वी बंगाल, पूर्वी पाकिस्‍तान से कैसे बन गया बांग्‍लादेश।

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बंगाल से पूर्वी बंगाल और बांग्‍लादेश बनने तक
आजादी के पूर्व मौजूदा भारत का अंधिकांश पूर्वी क्षेत्र कभी बंगाल के नाम से जाना जाता था। लेकिन समय चक्र के साथ यहां के राजनीतिक, भौगोलिक और सामाजिक स्‍तर पर कई बदलाव हुए। आजादी के समय यह इलाका बंगाल के नाम से जाना जाता था। भारत-पाकिस्‍तान बंटवारे के बाद इसे पूर्वी बंगाल नाम दिया गया। इसके बाद पूर्वी पाकिस्‍तान और आजादी के बाद यह बांग्‍लादेश के नाम से जाना जाता है।

यहां के प्रारंभिक सभ्‍यता में बौद्ध और हिंदू धर्म का स्‍पष्‍ट प्रभाव देखा जा सकता है। यहां के स्‍थापत्‍य और कला में ऐसे तमाम अवशेष्‍ा मौजूद हैं, जिन्‍हें मंदिर या मठ कहा जा सकता है। बंगाल के इस्‍लामीकरण का दौर 13वीं शताब्‍दी में मुगल साम्राज्‍य के व्‍यापारियों के साथ शुरू हुआ। इसके बाद यहां इस्‍लाम का वर्चस्‍व रहा। युरोप के व्‍यापारियों का यहां आगमन करीब 15वीं शताब्‍दी में हुआ।
18वीं शताब्‍दी के शुरुआत में यह क्षेत्र पूरी तरह से ईस्‍ट इंडिया कंपनी के हाथों में आ गया। स्‍वाधीनता के बाद भारत को हिंदू बहुल भारत और पाकिस्‍तान को मुस्लिम बहुल पाकिस्‍तान में विभाजित करना पड़ा। दरअसल, पाकिस्तान के गठन के समय पश्चिमी क्षेत्र में सिंधी, पठान, बलोच और मुजाहिरों की बड़ी संख्या थी, जबकि पूर्व हिस्से में बंगाली बोलने वालों का बहुमत था।
हालांकि, पाकिस्‍तान का यह हिस्‍सा राजनीतिक रूप से उपेक्षित रहा। सत्‍ता में उचित प्रतिनिधित्‍व नहीं मिल पाने के कारण पूर्वी पाकिस्तान के लोगों में जबर्दस्त नाराजगी थी। इसी नाराजगी का राजनीतिक लाभ लेने के लिए बांग्लादेश के नेता शेख मुजीब-उर-रहमान ने अवामी लीग का गठन किया। आवामी लीग के नेतृत्‍व में पाकिस्तान के अंदर ही और स्वायत्तता की मांग की। धीरे-धीरे आवामी लीग का प्रभुत्‍व इस क्षेत्र में बढ़ता गया।

1970 में पाकिस्‍तान के आम चुनाव में शेख का बहुमत

1970 में पाकिस्‍तान में हुए आम चुनाव में पूर्वी क्षेत्र में शेख की पार्टी आवामी लीग ने जबर्दस्त प्रदर्शन किया। शेख की पार्टी का पाकिस्‍तानी संसद में बहुमत हासिल किया। वह पाकिस्‍तान में प्रधानमंत्री के दावेदार थे। यह लगा कि पूर्वी पाकिस्‍तान का कोई नेता देश का प्रधानमंत्री बनेगा। लेकिन पाकिस्‍तान की तत्‍कालीन हुकूमत ने उन्हें प्रधानमंत्री बनाने के बजाए जेल में डाल दिया गया। इससे लोगों का आक्रोश चरम पर पहुंच गया। इसी घटना ने पाकिस्तान के विभाजन की नींव रखी।
विद्रोह को दबाने के लिए पूर्वी बंगाल से पूर्वी पाकिस्‍तान बना
भारत-पाकिस्‍तान के विभाजन के बाद बंगाल के दो हिस्‍से हो गए। हिंदू बहुल इलाके को पश्चिम बंगाल और मुस्लिम बहुल इलाके को पूर्वी बंगाल नाम दिया गया। 1950 में यहां जमींदारी प्रथा के खिलाफ और 1952 में बांग्‍ला भाषा के आंदोलन ने पाकिस्‍तान सरकार को झकझोर कर रख दिया। 1955 में पाकिस्‍तानी हुकूमत ने पूर्वी बंगाल का नाम बदलकर पूर्वी पाकिस्‍तान कर दिया। पाकिस्‍तान हुकूमत का यह कदम पूर्वी बंगाल के लोगों को आहत करने वाला था। इसके विरोध में आवाजें उठीं, लेकिन पाकिस्‍तानी हुकूमत ने उसकी उपेक्षा की। पाकिस्‍तानी सेना ने इनकी आवाज को दबाना चाहा। यहां बड़े पैमाने पर दमन की शुरू हुई।
शरणार्थी समस्‍या के चलते भारत ने किया दखल
1970 के दशक तक यह तनाव अपने चरम पर पहुंच गया। पाकिस्तानी शासक याहया खांन ने आवामी लीग के नेताओं को यातनाएं देने का काम शुरू किया। लाखों बंगाली लोगों की हत्‍याएं हुई। 1971 के खूनी संघर्ष में करीब दस लाख से ज्‍यादा बांग्‍लादेशी शरणार्थियों ने भारत में शरण ली। भारत को नहीं चाहते हुए भी इस समस्‍या में शामिल हो गया। भारत की परेशानियां बढ़ती जा रही थीं। भारत ने अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर इस समस्‍या के समाधान का प्रयास किया लेकिन सारे प्रयास बेनतीजा रहे। अप्रैल 1971 में तत्‍कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मुक्ति वाहिनी को समर्थन देने और बांग्लादेश को आजाद करवाने का निर्णय लिया। 

बांग्‍लादेश में मुक्ति वाहिनी सेना का गठन हुआ। इसमें छात्र और बौद्धिक वर्ग के लोग बड़ी तादाद में शामिल हुए। अंत में भारत की सेना ने मुक्ति वाहिनी के साथ मिलकर पाकिस्‍तान के साथ युद्ध का ऐलान कर दिया।16 दिसंबर 1971 को भारतीय सेना के समक्ष पाकिस्‍ंतानी सेना ने आत्‍मसमर्पण किया। करीब 93,000 पाकिस्‍तानी सैनिक युद्ध बंदी बनाए गए। इसके बाद बांग्‍लादेश का अस्तित्‍व सामने आया। दक्षिण एशिया में एक स्‍वतंत्र और संप्रमु देश का जन्‍म हुआ। बांग्लादेश एक आज़ाद मुल्क बना। मुजीबुर्र रहमान इसके पहले प्रधानमंत्री बने। 

तिथियों में बांग्‍लादेश

  • 1947 : भारत के विभाजन के बाद बंगाल से कटकर पूर्वी बंगाल अस्तित्‍व में आया। इसके बाद पूर्वी पाकिस्‍तान अस्तित्‍व में आया।
  • 1949 : अावामी लीग की स्‍थापना हुई। इसका मकसद पूर्वी पाकिस्तान को आजादी दिलाना था।
  • 1966 : आवामी लीग ने छह बिंदुओं को लेकर आंदोलन की घोषणा।
  • 1970 : शेख मुजीब के नेतृत्‍व में आवामी लीग ने चुनाव में भारी जीत हासिल हुई। पाकिस्तानी हुकूमत ने परिणाम मानने से इंकार किया। शेख को जेल भेजा गया। सरकार के इस फैसले के बाद पूर्वी पाकिस्‍तान में बगावत।
  • 1971 : शेख मुजीब की आवामी लीग ने 26 मार्च को स्वतंत्रता का ऐलान किया। पाकिस्‍तान सेना की जुल्‍म से बचने के लिए करीब एक करोड़ लोग भारत में शरण लेने के लिए पहुंचे।
  • 1972 : नए देश का नाम बांग्‍लादेश रखा गया। शेख़ मुजीब प्रधानमंत्री बने। उन्होनें उद्योगों के राष्ट्रीयकरण का अभियान चलाया लेकिन ज़्यादा कामयाबी नहीं मिली।
  • 1974 : देश में भीषण बाढ़ से पूरी फ़सल तबाह 28,000 लोग की मौत. देश में आपात स्थिति, राजनीतिक  गड़बड़ियों की शुरुआत।
  • 1975 : शेख़ मुजीब बांग्लादेश के राष्ट्रपति बने। अगस्त में हुए सैनिक तख्ता पलट के बाद उनकी हत्या कर दी गई, देश में सैनिक शासन लागू हो गया।
  • 1977 : जनरल ज़िया -उर -रहमान राष्ट्रपति बने। इस्लाम को सांविधानिक मान्यता दी गई।
  • 1979 : देश में चुनाव हुए और सैनिक शासन समाप्त हुआ। जनरल ज़िया -उर -रहमान की बांग्लादेश नेशनल पार्टी ने बहुमत हासिल किया।

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