अखबारों के वितरण में बाधा डालना सूचना के अधिकार का हनन
विधिविशेषज्ञ मानते हैं कि सूचना का अधिकार व्यक्ति का मौलिक अधिकार है और समाचारपत्र व्यक्ति तक सूचनाएं पहुंचाते हैं। समाचारपत्र को व्यक्ति तक पहुंचने में बाधा डालना अधिकार का हनन है
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। कोरोना महामारी के इस दौर में समाचार पत्र विश्वसनीय सूचना का एक अहम साधन हैं। इस मुश्किल घड़ी में प्रिंट मीडिया की पूरी टीम रात दिन जुट कर पूरी सावधानी का ध्यान रखते हुए लोगों तक विश्वसनीय और सही जानकारी पहुंचाने में लगी है। लेकिन लॉकडाउन के समय कई जगह लोगों तक समाचार पत्र नहीं पहुंच रहे हैं।
विधि विशेषज्ञ मानते हैं कि सूचना का अधिकार व्यक्ति का मौलिक अधिकार है और समाचार पत्र व्यक्ति तक सूचनाएं पहुंचाते हैं। ऐसे में समाचार पत्र के व्यक्ति तक पहुंचने में बाधा डालना इस अधिकार का हनन है। समाचार पत्रों से मिलने वाली सूचना की अहमियत बताते हुए सुप्रीम कोर्ट के वकील डीके गर्ग कहते हैं कि प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की कोई तुलना नहीं है।
अखबार में सूचनाएं विश्वसनीय और विस्तृत होती हैं। इसके अलावा अखबार में क्षेत्र विशेष से संबंधित सूचनाएं होती हैं जिनकी जानकारी टीवी चैनलों पर नहीं मिलती।कोरोना महामारी के दौरान समाचार पत्र सूचना का सबसे जरूरी और भरोसेमंद साधन हैं।
इसके जरिये ही लोगो को न सिर्फ तथ्यपरक जानकारी बल्कि सरकार की घोषणाएं और महामारी से बचाव के उपाय भी पता चलते हैं। इन सूचनाओं को जानना व्यक्ति का मौलिक अधिकार है और इससे उसे किसी भी आधार पर वंचित नहीं किया जा सकता। गर्ग कहते है कि लॉकडाउन के दौरान लोगों के मौलिक अधिकार निलंबित नहीं हुए हैं।
वे 1962 के सुप्रीम कोर्ट के सकाल पेपर्स के मामले में दिए गए फैसले का हवाला देते हुए कहते हैं कि इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने प्रेस की आजादी को मौलिक अधिकार मानते हुए यह भी कहा था कि अभिव्यक्ति की आजादी में न सिर्फ लिखने व प्रकाशित करने का अधिकार है बल्कि उस सूचना को प्रसारित करना भी आता है।
गर्ग कहते हैं कि ये कई बार कहा जा चुका है कि कोरोना अखबार से नहीं फैलता। ये आवश्यक वस्तु में आता है और इसे लोगों तक पहुंचने में बाधा नहीं डाली जा सकती। जब सरकार ने इस पर रोक नहीं लगाई है तो फिर इसे लोगों तक पहुंचने से रोकना अपराध है।
अखबार का प्रसार रोकना अपराध:
इलाहाबाद हाईकोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश एसआर सिंह भी कहते हैं कि अगर समाचार पत्र जरूरी सेवाओं में आते हैं तो इन्हें लोगों तक नहीं पहुंचने देना अपराध होगा। सूचना पाना अनुच्छेद 19(1)(ए) के मौलिक अधिकार के तहत आता है और अखबार लोगों तक नहीं पहुंचने देना इस अधिकार का हनन है।
सूचना पाना अमूल्य अधिकार भी:
सुप्रीम कोर्ट के वकील ज्ञानंत सिंह कहते हैं कि अभिव्यक्ति की आजादी सिर्फ अभिव्यक्ति तक सीमित नहीं है इस अधिकार में सूचना देने और सूचना पाने दोनों का अधिकार निहित है। यह एक अमूल्य अधिकार है। इस पर किसी भी तरह की बाधा या नियंत्रण कार्यकारी आदेश के जरिए नहीं लगाया जा सकता। इस अधिकार को नियंत्रित, नियमित सिर्फ अनुच्छेद 19 (2) के तहत दिये गए आधारों पर तर्कसंगत कानून से किया जा सकता है।
समाचार पत्रों पर कोई रोक नहीं:
पूर्व एडिशनल सॉलिसिटर जनरल और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील पीएस नरसिम्हा कहते हैं कि समाचार पत्र अभिव्यक्ति की आजादी के मौलिक अधिकार अनुच्छेद 19(1)(ए ) के तहत आता है। और इस अधिकार पर सिर्फ सुरक्षा, कानून व्यवस्था आदि संविधान में दिये गए आधारों पर ही रोक लगाई जा सकती है। हालांकि यहां स्थिति ये नहीं है और सरकार की ओर से समाचार पत्रों पर किसी तरह की रोक नहीं लगाई गई है।