रसूख वालों को लेकर सासत में सीबीआइ
राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) घोटाले की जांच कर रही सीबीआइ रसूख वालों को लेकर सांसत में है। पूर्व मंत्री और नौकरशाहों के खिलाफ पर्याप्त सबूत और गवाह होने के बावजूद उनपर हाथ नहीं डाल पा रही है। इनकी आड़ में घोटालेबाज अपना बचाव कर रहे हैं। नतीजतन एक बड़ी जांच प्रभावित हो रह
लखनऊ, [आनन्द राय]। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन [एनआरएचएम] घोटाले की जांच कर रही सीबीआइ रसूख वालों को लेकर सांसत में है। पूर्व मंत्री और नौकरशाहों के खिलाफ पर्याप्त सबूत और गवाह होने के बावजूद उनपर हाथ नहीं डाल पा रही है। इनकी आड़ में घोटालेबाज अपना बचाव कर रहे हैं। नतीजतन एक बड़ी जांच प्रभावित हो रही है।
वर्ष 2005 से 2011 के बीच एनआरएचएम के मद के करीब दस हजार करोड़ रुपये की हेराफेरी में पूर्व मंत्रियों और अफसरों के खिलाफ सीबीआइ ने पर्याप्त सबूत जुटाये, लेकिन इनमें कइयों के खिलाफ कार्रवाई नहीं हो सकी। एक कंपनी के मालिक और एनआरएचएम घोटाले के आरोपी गिरीश मलिक ने अदालत में इन नेताओं और अफसरों का चेहरा बेनकाब किया है। मलिक ने पूर्व मंत्री अंटू मिश्रा को पांच लाख और पिछली सरकार में सुर्खियों में रहे नौकरशाह नवनीत सहगल को पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा को देने के लिए 42 लाख रुपये देने की बात कही है। सूत्रों के मुताबिक सीबीआइ को शुरुआती जांच में ही एक शीर्ष अफसर, नवनीत सहगल और अन्य कई के खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य मिले, लेकिन कहीं किसी दबाव में और कहीं किसी वजह से सीबीआइ इनपर हाथ नहीं डाल सकी। अंटू मिश्रा के घर छापेमारी और कई सीएमओ की गवाही के बाद भी सीबीआइ ने बार-बार बुलाकर पूछताछ के बाद उन्हें भी छोड़ दिया। सीबीआइ जांच में ऊपरी हस्तक्षेप हमेशा परिलक्षित हुआ।
जांच की समय सीमा समाप्त होने या अदालत की फटकार के बाद कुछ स्थानों पर छापेमारी और कुछ छोटे अफसरों से पूछताछ जरूर हुई, लेकिन बड़े लोग अक्सर बख्श दिए गये। उधर, अगर सीबीआइ अफसरों ने तेजी दिखाई तो निर्णायक मोड़ पर उनकी जगह जांच के पर्यवेक्षण की जिम्मेदारी दूसरों को सौंप दी गयी। यह स्थिति तब रही, जब एनआरएचएम पर सीएजी ने भी साफ कर दिया था कि नियमों की अनदेखी कर भारी वित्तीय अनियमितता की गयी है। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक [सीएजी] द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट के अनुसार अप्रैल 2005 से मार्च 2011 तक एनआरएचएम में लोगों की सेहत सुधार के लिए 8657.35 करोड़ रुपये मिले, जिसमें से 4938 करोड़ रुपये नियमों की अनदेखी कर खर्च किये गए। एनआरएचएम में 1085 करोड़ का भुगतान बिना किसी का हस्ताक्षर कराये ही कर दिया गया और बिना करार के ही 1170 करोड़ रुपये का ठेका अपने चंद चहेते लोगों को दिया गया। इसके लिए पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा, तत्कालीन प्रमुख सचिव स्वास्थ्य एवं चिकित्सा प्रदीप शुक्ला समेत कई अफसरों को जिम्मेदार ठहराया गया। सीबीआइ ने शुक्ला को गिरफ्तार भी किया, लेकिन प्रदेश और केन्द्र की सरकार ने उनके खिलाफ अभियोजन की स्वीकृति नहीं दी। लिहाजा सीबीआइ आरोप पत्र नहीं दाखिल कर सकी। 90 दिन के भीतर आरोप पत्र दाखिल न होने से शुक्ला की जमानत हो गयी और सीबीआइ के विवेचकों का मनोबल भी टूटा। दरअसल सरकारें नहीं चाहती थीं कि प्रदीप शुक्ला पर कार्रवाई हो, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के दबाव पर अभियोजन की स्वीकृति देनी पड़ी। सूत्रों के मुताबिक सीबीआइ के एक अफसर ने साक्ष्य मिलने के बाद पिछली सरकार के शीर्ष अफसरों को पूछताछ के लिए तलब किया तो ऊपर से निर्देश मिले कि अभी इनसे पूछताछ न करो। सीबीआइ की मुश्किल अभी तक बरकरार है और यह साफ नहीं हो सका है कि जिन रसूखदारों के खिलाफ अंगुली उठ रही है, उनपर आगे क्या कार्रवाई होनी है।
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