अब बनी बिजली कंपनियों के भंवर से निकलने की संभावना, मोदी सरकार जल्द लेगी ये फैसला
इन परियोजनाओं पर जल्द फैसला ना सिर्फ देश की कई बिजली कंपनियों की माली हालत सुधारेगा बल्कि देश के बैंकिंग सेक्टर में फंसे हजारों करोड़ रुपये के कर्ज के वसूली का रास्ता भी साफ करेगा।
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। रेल व कोयला मंत्री पीयूष गोयल को वित्त मंत्रालय का प्रभार भी मिलने के बाद देश में कई वजहों से भंवर में फंसी 34 बिजली संयंत्रों के मामले पर अब जल्द फैसला होने की संभावना बन गई है। इन संयंत्रों से जुड़े मामलों को सुलझाने के लिए गठित मंत्रिसमूह (जीओएम) की बैठक अरुण जेटली की अनुपस्थिति से नहीं हो पा रही थी। लेकिन अब चूंकि गोयल कोयला के साथ वित्त मंत्रालय भी संभाल रहे हैं तो इस मामले पर न सिर्फ जीओएम की अगली बैठक जल्द होने के आसार है बल्कि उसके जल्दी से नतीजे पर भी पहुंचने की संभावना अधिकारी जता रहे हैं। इन परियोजनाओं पर जल्द फैसला ना सिर्फ देश की कई बिजली कंपनियों की माली हालत सुधारेगा बल्कि देश के बैंकिंग सेक्टर में फंसे हजारों करोड़ रुपये के कर्ज के वसूली का रास्ता भी साफ करेगा।
तकरीबन 40 हजार मेगावाट क्षमता की इन बिजली संयंत्रों का मामला पिछले तीन वर्षो से तमाम वजहों से फंसा हुआ है और इनमें तकरीबन सवा दो लाख करोड़ रुपये का बैंकिंग कर्ज एनपीए में तब्दील हो चुका है। रिजर्व बैंक की तरफ से 12 फरवरी, 2018 को एनपीए संबंधी जो नये नियम आये थे उससे इनमें से कई संयंत्रों को दिवालिया घोषित करते हुए उनकी परिसंपत्तियों को बिक्री की प्रक्रिया भी शुरु कर दी गई थी। मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। इस बीच केंद्र सरकार ने कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में एक समिति बनाई थी जिसे मामले को कोर्ट से बाहर निबटाने का फार्मूला निकालने पर सुझाव देने कहा गया था। यह समिति अपना सुझाव दे चुकी है और इस पर फैसला करने के लिए अरुण जेटली की अध्यक्षता में जीओएम का गठन हुआ था। इसकी एक ही बैठक हो पाई थी।
उधर, बिजली मंत्रालय अपने स्तर पर फंसे बिजली संयंत्रों के मामले को सुलझाने की कोशिश कर रही है। बिजली मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक 11,400 मेगावाट क्षमता की नौ बिजली संयंत्रों के मामले को सुलझा दिया गया है। नौ में से सात बिजली संयंत्रों को अलग से कोयला ब्लाकों का आवंटन करके उन्हें चलने लायक बनाया गया है। अब जो मामले बचे हुए हैं उनमें से कई आरबीआइ के एनपीए नियम की वजह से फंसे हुए हैं। इस पर वित्त मंत्रालय को फैसला करना है। वित्त मंत्रालय पहले से ही आरबीआइ से बात कर रहा है कि वह बिजली संयंत्रों व कुछ अन्य संवेदनशील क्षेत्रों के लिए अपने एनपीए नियमों में थोड़ी नरमी दे। गोयल की अगुवाई में अब तेजी से इस पर बात आगे बढ़ने की संभावना जताई जा रही है। आरबीआइ का नियम कहता है कि अगर कोई ग्राहक 180 दिनों से एक दिन ज्यादा भी कर्ज नहीं चुकाता है तो उसके खिलाफ बैंकों को दिवालिया कानून के तहत कदम उठाना होगा।