अब सतर्कता और सही जीवनशैली के प्रति बरतें गंभीरता, इनको है ज्यादा खतरा
डॉ. देवाशीष डांडा ने बताया कि कोरोना संक्रमण से काफी हद तक बचने का उपाय मास्क का इस्तेमाल है। जो लोग मास्क लगाते हैं उनमें संक्रमण का खतरा 80 फीसद तक कम रहता है।
रूमा सिन्हा। कोविड-19 के संक्रमण से समूचा विश्व परेशान है। शोधकर्ता वैक्सीन खोजने में लगे हैं। तब तक इसके बारे में जो निष्कर्ष सामने आए, उनमें शारीरिक दूरी, मास्क का प्रयोग और मजबूत इम्युनिटी बहुत कारगर हैं। अनलॉक-1 के दौर में अब हम सबकी जिम्मेदारी और बढ़ गई है कि सावधानियों को गंभीरता से अपनाएं। जानें क्या कहते है वेल्लूर के इम्यूनोलॉजिस्ट व प्रोफेसर क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज के डॉ. देवाशीष डांडा।
डालनी होगी मास्क की आदत: इस बात को पूरी दुनिया के चिकित्सा विशेषज्ञ स्वीकार रहे हैं कि कोरोना संक्रमण से काफी हद तक बचने का उपाय मास्क का इस्तेमाल है। जो लोग मास्क लगाते हैं, उनमें संक्रमण का खतरा 80 फीसद तक कम रहता है। यह चिंताजनक है कि कोरोना संक्रमण के लगातार बढ़ते मामलों के बाद भी लोग मास्क की अनिवार्यता को मात्र औपचारिकता समझ रहे हैं। बढ़ते संक्रमण के बाद भी ज्यादातर लोग बगैर मास्क के सार्वजनिक स्थानों में दिख जाते हैं। कुछ लोग तो मास्क को रस्मअदायगी की तरह गले में लटकाए भी दिख जाते हैं।
वक्त की जरूरत है वर्क फ्रॉम होम: बीते दिनों ज्यादातर कार्य घर से ही किए जा रहे थे। ऐसे में वर्क फ्रॉम होम की पद्धति को फिलहाल बढ़ावा दिया जाना चाहिए। एसेंशियल सर्विसेज को छोड़कर जरूरी हो तो कार्य स्थलों में रोटेशन में 25 फीसद कर्मचारियों की शिफ्टवार ड्यूटी लगानी चाहिए। इससे जहां वर्कप्लेस पर लोड कम होगा, वहीं सड़कों व सार्वजनिक परिवहन आदि में भी भीड़ कम होगी।
- लोगों को मास्क के प्रयोग के बारे में भी जानकारी दें
- उचित खानपान व योग को अपने जीवन में शामिल करें
- टीवी, रेडियो, अखबार पर कोविड-19 से जुड़ी खबरों पर लगातार नजर न रखें
वक्त है संभलने का: हमारे पास अभी भी संभलने का समय है। इन बातों को अगर गंभीरता से अमल में लाएं और 10 हफ्ते अधिक से अधिक घरों में सुरक्षित रहें तो कोरोना संक्रमण की चेन को तोड़ा जा सकता है। वियतनाम, सिंगापुर, साउथ कोरिया, चीन ने कोरोना संक्रमण के प्रसार पर इसी तरह काबू पाया है।
खतरे में अन्नदाता: गांव लौटकर आए प्रवासी श्रमिक संक्रमण की वजह बन सकते हैं। इसे देखते हुए ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष ध्यान देने की जरूरत है। यदि उनको जागरूक नहीं किया गया तो अन्नदाता के संक्रमित होने का खतरा होगा, जो अर्थव्यवस्था के लिए भारी पड़ सकता है।
इनको है ज्यादा खतरा: भारतीय उपमहाद्वीप जिसमें भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका हैं, यहां मेटाबॉलिक सिंड्रोम की जेनेटिक समस्या है। 40 वर्ष से अधिक आयु वाली 40 फीसद आबादी सेंट्रल ओबेसिटी यानी पेट-कमर में फैट बढ़ने, हाइपरटेंशन व डायबिटीज के साथ जी रही हैं। यही नहीं, 40 वर्ष से कम आयु वाली 20 फीसद आबादी भी मेटाबॉलिकसिंड्रोम से ग्रस्त है। इस सिंड्रोम से ग्रसित लोगों में एंजियोटेंसिन कंवर्टिंग एंजाइम (एसीई) पाया जाता है, जिसके रिसेप्टर से कोरोना वायरस बहुत जल्द बाइंड कर लेता है और शरीर में प्रवेश कर जाता है। जाहिर है कि इन लोगों को सतर्क रहने की ज्यादा आवश्यकता है।