अब नई शिक्षा नीति को सही से लागू करने की दरकार, इसके साथ ही खत्म हो जाएगा मैकालेकरण
देश में नई शिक्षा नीति के लागू होते ही दो शताब्दी से जारी व्याप्त मैकालेकरण का भी अंत हो जाएगा। जरूरत है इसको सही तरीके से लागू करने की।
प्रो राजेंद्र प्रताप गुप्ता। नई शिक्षा नीति को सही ढंग से लागू करने से भारतीय शिक्षा में पिछली दो शताब्दियों से व्याप्त मैकालेकरण का अंत हो जाएगा। मोदी सरकार द्वारा स्वीकृत राष्ट्रीय शिक्षा नीति एक ऐतिहासिक कदम है और यह न केवल भारत की शिक्षा प्रणाली बल्कि भारत के भविष्य को भी परिवर्तित कर देगी। शिक्षा नीति में साहसिक और परिवर्तनकारी बदलावों की सिफारिश की गई है। इसका एक अर्थ यह भी है कि जिन लोगों को इस शिक्षा नीति को लागू करने का काम करना है, उन्हें सिफारिश के पीछे की सोच और इसके तर्क को समझना चाहिए। तभी इसका क्रियान्वयन सही होगा, अन्यथा एक दोषपूर्ण क्रियान्वयन एक महान नीति को बर्बाद कर देगा।
कितने लोग जानते हैं कि स्कूल शिक्षा में फाउंडेशन और प्रीपेरेटरी शब्दों का इस्तेमाल क्यों किया गया है। हम अन्वेषण और अनुभव आधारित शिक्षा के बारे में क्या सोचते थे, हम नए उपकरणों आदि के बारे में क्यों बात कर रहे हैं? यह सब और कई अन्य विचार शिक्षा नीति के दस्तावेजों में विस्तृत रूप से नहीं हो सकते थे, क्योंकि शिक्षा नीति के दस्तावेजों का लक्ष्य दिशा देना और उसे समझाना है। शेष क्रियान्वयन की योजना में है। मेरा यह मानना है कि यदि हम राष्ट्रीय शिक्षा नीति समिति की विचार प्रक्रिया को इसके क्रियान्वयन में बनाए रखने में विफल होते हैं तो अनुवाद और परिवर्तन में इसका सार खो जाएगा। जिसका परिणाम दोषपूर्ण क्रियान्वयन होगा। यह पहली चीज है, जिसके बारे में हमें सचेत रहना चाहिए।
इसके साथ ही नीति में सुब्रमण्यम कमेटी तक सभी कमेटियों द्वारा ताकतवर मामला बनाने के बावजूद भारतीय शिक्षा सेवा (आइईएस) की सिफारिश नहीं की गई है। मैंने इस विचार का समर्थन किया है, इसलिए मुझे इसे स्पष्टता से रखना चाहिए। यदि हम इसके क्रियान्वयन को नौकरशाहों के लिए छोड़ देते हैं, तो हम इस नीति से आइईएस को हटाने के पूरे उद्देश्य को पराजित कर सकते हैं। सिर्फ कुछ लोगों ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति की सिफारिशों को लागू करने के लिए वित्तीय पोषण का मुद्दा उठाया है। मुझे यह स्पष्ट करने दें कि क्रियान्वयन संरचनात्मक और प्रणालीगत परिवर्तनों से कहीं अधिक है। इसलिए ऐसे मौके पर पैसा ज्यादा बड़ा मुद्दा नहीं है, यदि मौजूदा फंडिंग को प्रणालीगत परिवर्तनों के तहत कुशलतापूर्वक उपयोग किया जाए और जरूरत पड़ने पर ज्यादा पैसा उपलब्ध कराया जाएगा।
नए पाठ्यक्रम और शिक्षाशास्त्र को लागू करने में सबसे बड़ी बाधा मानव संसाधनों की होगी। इसके अलावा संगठन के स्तर पर प्रौद्योगिकी की तैनाती ठीक हो सकती है, लेकिन उपयोगकर्ता के स्तर पर ऐसा करने के लिए पूरी तरह से नई सोच की आवश्यकता होगी। इसे मिशन मोड में किया जाना है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में हमने जिन परिवर्तनों की कल्पना है, वे पाठ्यक्रम डिजाइन और वितरण, मानव संसाधन, तकनीक, शासन और वित्तीय हैं। महत्वपूर्ण बात जो हमें सबसे आगे रखने की जरूरत है वो है ‘सांस्कृतिक परिवर्तन’। अकादमिक दुनिया में कठोरता और अहंकार की मात्रा सर्वाधिक पाई जाती है। यह नवाचारों और सुधारों को रोकता है। सबसे बड़ी चुनौती मानसिकता में बदलाव लाना है, जो कि अगले कुछ वर्षों में सांस्कृतिक बदलावों की ओर ले जाएगा।
पूरे क्षेत्र में हो रहे बदलावों को देखते हुए और दुनिया में पिछले चालीस सालों में परिवर्तनों की तुलना में पिछले चार महीने में बहुत बदलाव आया है और राष्ट्रीय शिक्षा नीति में सकारात्मक असर पड़ा है। बहुत अच्छा होगा कि हम दो दशकों की बजाय अगले दशक में तेजी से क्रियान्यवन कर सकें और यह संभव है। यदि इसे सही तरीके से लागू किया जाता है तो अगली राष्ट्रीय शिक्षा नीति मानवों के द्वारा नहीं बल्कि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के द्वारा लिखी जाएगी।
(लेखक राष्ट्रीय शिक्षा नीति समिति के पूर्व सदस्य हैं)