खेतों में प्रयोग होने वाली कीटनाशक स्वास्थ्य के लिए खतरनाक, जानें- भारत में क्या है स्थिति
रिपोर्ट के अनुसार कीटनाशक कंपनियां मानव स्वास्थ्य या पर्यावरण के लिए उच्च खतरों को उत्पन्न करने वाले रसायनों से हर साल अरबों डॉलर कमाती हैं।
नई दिल्ली। खेती के लिए कीटनाशक दवाएं जरूरत बन चुकी हैं। बड़ी चिंता ये हैं कि इनसे होने वाले नफे से ज्यादा अब नुकसान हो रहा है। ग्रीनपीस ब्रिटेन द्वारा पोषित वैश्विक संस्था अनअथ्र्ड और स्विस एनजीओ पब्लिक आई के विश्लेषण में चौंकाने वाली बातें निकलकर सामने आई हैं। भारत सहित दुनिया के 43 देशों में हुए इस अध्ययन के मुताबिक, खतरनाक कीटनाशक विकसित देशों के मुकाबले विकासशील और गरीब देशों को ज्यादा नुकसान पहुंचा रहे हैं। भारत में 59 फीसद खतरनाक कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जा रहा है। वहीं ब्रिटेन में यह महज 11 फीसद है।
गरीब देशों में ज्यादा : रिपोर्ट के अनुसार कीटनाशक कंपनियां मानव स्वास्थ्य या पर्यावरण के लिए उच्च खतरों को उत्पन्न करने वाले रसायनों से हर साल अरबों डॉलर कमाती हैं। इन अत्यधिक खतरनाक कीटनाशकों का बिक्री अनुपात अमीर देशों की तुलना में गरीब देशों में अधिक पाया गया। भारत में अत्यधिक खतरनाक कीटनाशकों की बिक्री 59 फीसद है।
पांच कंपनियों का प्रभुत्व : कीटनाशकों के बाजार में पांच कंपनियों - बेयर, बीएएसएफ, सिंजेंटा, एफएमसी और कोर्टेवा (पूर्व में डॉव और ड्यूपॉन्ट) का प्रभुत्व है। इन कंपनियों ने 2018 में 4.8 अरब डॉलर (345 अरब रुपये) के अत्यधिक खतरनाक कीटनाशक (एचएचपी) उत्पादों की बिक्री की, जो उनकी आय का 36 फीसद से अधिक है। बेयर ने विश्लेषण को भ्रामक बताया, लेकिन आंकड़े देने से इनकार कर दिया। कुछ कंपनियों ने इस्तेमाल की गई एचएचपी की सूची पर भी सवाल उठाया।
मानव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक : पांच बड़ी कंपनियों द्वारा बिक्री किए जाने वाले कुल कीटनाशक का एक चौथाई मानव स्वास्थ्य के लिए गंभीर रूप से हानिकारक हैं। इनमें कैंसरजन्य तत्व शामिल थे, जबकि 10 फीसद कीटनाशकों के विषैले तत्व मधुमक्खियों द्वारा लाए गए थे। इसके अतिरिक्त विश्लेषण ने पाया कि 4 फीसद बिक्री रसायनों की थी जो कि मानवों के लिए हानिकारक होते हैं।
हर साल 2 लाख आत्महत्याएं : हर साल करीब 2 लाख आत्महत्याओं को कीटनाशक विषाक्तता के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है। इनमें से लगभग सभी विकासशील देशों में हैं। विश्लेषण के अनुसार, अमीर देशों में एचएचपी की बिक्री का औसत अनुपात निम्न और मध्यम आय वाले देशों में 45 फीसद की तुलना में 27 फीसद था, जबकि दक्षिण अफ्रीका में यह 65 फीसद तक पहुंच गया।
सख्त हों नियम : विश्व स्वास्थ्य संगठन और संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन द्वारा 2018 में कीटनाशक प्रबंधन के वैश्विक सर्वेक्षण में पाया कि गंभीर रूप से विभिन्न कमियां हैं। पर्यावरण और मानवों पर हानिकारक प्रभावों को कम करने के लिए देशों को सशक्त नियम बनाने चाहिए। खतरनाक पदार्थों और मानवाधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष प्रतिवेदक बैस्कुट तुनकक ने कहा कि कंपनियों द्वारा एचएचपी के जरिए आय अर्जित करना अनुचित है। इन उत्पादों का निरंतर उपयोग किया जा रहा है। यह मानवाधिकारों के उल्लंघन का कारण बन रहा है।
स्वीकारी गलती : कीटनाशक उद्योग के लॉबी समूह क्रोपलाइफ इंटरनेशनल ने स्वीकार किया है कि उसके सदस्यों द्वारा बेचे जाने वाले रसायनों का 15 फीसद एचएचपी है। उन्होंने कहा कि इनमें से कई का उपयोग व्यवहार में सुरक्षित रूप से किया जा सकता है। हमारे सदस्य कीटनाशक प्रबंधन पर एफएओ अंतरराष्ट्रीय आचार संहिता का समर्थन करते हैं।
सरकारों को उठाने होंगे कदम : तुनकक ने कहा कि कई निम्न और मध्यम आय वाले देशों में प्रणालीगत मुद्दे उचित नियंत्रण और कीटनाशकों के उपयोग के किसी भी उचित आश्वासन को रोकते हैं। ग्रीनपीस ब्रिटेन के जुमान कुब्बा ने कहा दुनिया को जहरीले कीटनाशकों से सराबोर फसलों के आधार पर औद्योगिक खेती के मॉडल पर टिकाए रखना इन कंपनियों के हित में है, लेकिन इन खतरनाक रसायनों का स्वस्थ भोजन प्रणाली में कोई स्थान नहीं है और सरकारों को दुनिया भर में इन पर प्रतिबंध लगाना चाहिए।
कंपनियों के अपने तर्क : बेयर भी इस सूची से इत्तेफाक नहीं रखता है। पीएएन ने आइएआरसी के 2015 के निष्कर्ष के आधार पर अपनी सूची में बेयर के ग्लाइफोसेट को शामिल किया है जो कि संभवत: मनुष्यों के लिए कैंसरजन्य है। बेयर का कहना है कि ग्लाइफोसेट अन्य निष्कर्षों के आधार पर सूची में नहीं होना चाहिए।