New National Education Policy 2020: अब भारत में रहते मिल सकेगा ग्लोबल एक्सपोजर
फॉरेन यूनिवर्सिटी के कैंपस खुलने से जहां स्टूडेंट्स को देश में रहकर इंटरनेशनल एक्सपोजर मिल सकेगा वहीं भारतीय संस्थान शिक्षा के स्तर में गुणात्मक परिवर्तन लाने के लिए प्रेरित होंगे
अंशु सिंह। नई शिक्षा नीति के तहत अब विश्व के सर्वोच्च रैंक वाले विश्वविद्यालय देश में अपना कैंपस खोल सकेंगे। इसके लिए नया कानून बनाया जा सकता है। फॉरेन यूनिवर्सिटी के कैंपस खुलने से जहां स्टूडेंट्स को देश में रहकर इंटरनेशनल एक्सपोजर मिल सकेगा, वहीं भारतीय संस्थान भी शिक्षा के स्तर में गुणात्मक परिवर्तन लाने के लिए प्रेरित होंगे।
एक दशक पहले तक कुछ हजार स्टूडेंट्स ही विदेश पढ़ने के लिए जाते थे। लेकिन आज अंतरराष्ट्रीय डिग्री के लिए चीन के बाद सबसे ज्यादा विदेश जाने वाले वाले भारतीय ही हैं। विदेश मंत्रालय की साल 2019 की एक रिपोर्ट के अनुसार, करीब साढ़े सात लाख भारतीय स्टूडेंट्स विदेशी विश्वविद्यालयों में पढ़ाई कर रहे थे। जानकारों के अनुसार, विदेश में पढ़ने के क्रेज के पीछे कई कारक हैं। जैसे वैश्विक स्तर की एजुकेशन हासिल करने के साथ ही इंटरनेशनल एक्सपोजर मिलना। इसके बाद जब युवा देश लौटते हैं, तो उनका करियर ग्राफ अपेक्षाकृत बढ़ जाता है।
अमेरिका की कॉरनेल यूनिवर्सिटी से सेल्स, मार्केटिंग एवं एडवर्टिजमेंट मैनेजमेंट में हायर स्टडीज करने वाले ऑरेलियस कंपनी के संस्थापक एवं सीईओ सुमित पीर कहते हैं कि नि:संदेह इंटरनेशनल एक्सपोजर से मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला है। 60 से अधिक देशों के सफर से मिले अनुभवों के कारण ही मैं अपने बिजनेस में वैश्विक सोच, वर्क एथिक्स, वर्क कल्चर, नई कार्यप्रणाली का विकास कर पाया। आज अगर मल्टीमिलियन डॉलर का बिजनेस कर पा रहा हूं, तो इसका श्रेय भी उन अनुभवों को जाता है। भारत की उच्च शिक्षा व्यवस्था और इंडस्ट्री के बीच जो भी गैप है, उसे भरने में नई शिक्षा नीति के तहत की गई पहल कारगर साबित हो सकती है।
रिसर्च एवं इनोवेशन का मौका: वैसे भी, कोविड संकट के कारण भारतीय स्टूडेंट्स विदेश जाने की बजाय अब देश के ही उन कॉलेजों को एक्सप्लोर कर रहे हैं, जिनका टाईअप किसी न किसी विदेशी संस्था या यूनिवर्सिटी से हो। दिल्ली स्थित इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस ऐंड फाइनेंस के निदेशक डॉ. जितिन चड्ढा के अनुसार, इसका फायदा यह है कि स्टूडेंट्स 25 से 30 प्रतिशत कम खर्च में विदेश की डिग्री हासिल कर पाते हैं। पहले की अपेक्षा स्टूडेंट्स का विदेश जाकर पढ़ाई करना आसान नहीं रह गया है। मुमकिन है कि अगले वर्ष स्टूडेंट्स यूएस और यूरोप जैसे देशों की बजाय न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, कनाडा या जापान का रुख करें, जिन्होंने कोविड-19 को कहीं बेहतर तरीके से हैंडल किया है।
ऐसे में नई शिक्षा नीति में विदेश की शीर्ष यूनिवर्सिटीज द्वारा देश में कैंपस खोले जाने की मंजूरी मिलना एक उत्साहवर्धक फैसला है। भारतीय संस्थानों के लिए भी यह एक अच्छा मौका है कि वे उच्च शिक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय संस्थानों से टाई अप करें, ताकि स्टूडेंट्स देश में रहकर ग्लोबल लेवल की शिक्षा प्राप्त कर सकें। इससे छात्रों की सीखने की क्षमता का विकास होगा। वे रिसर्च-इनोवेशन के लिए प्रेरित होंगे। उनकी रोगजार क्षमता भी बढ़ेगी। अंतरराष्ट्रीय एक्सपोजर मिलेगा सो अलग।
नीति आयोग ने पीएमओ को दिए थे सुझाव: नई शिक्षा नीति में सरकार की मंशा प्रतिभा पलायन को रोकना भी है। इससे स्टूडेंट्स द्वारा विदेश में खर्च किए जाने वाले लाखों रुपये की बचत भी होगी। वे देश में रहकर ही उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा हासिल कर सकेंगे। वैसे, नीति आयोग ने साल 2016 में भारत में विदेशी विश्वविद्यालयों के कैंपस खोलने की अनुमति देने के लिए पीएमओ और एचआरडी मिनिस्ट्री (अब प्रस्तावित शिक्षा मंत्रालय) से सिफारिश की थी।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, नीति आयोग ने उस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है, जिसमें यह कहा गया है कि देश में हायर एजुकेशन की स्थिति सुधारने के लिए विदेशी विश्वविद्यालयों के कैंपस खोलने जरूरी हैं। नीति आयोग ने प्रधानमंत्री को कुछ सुझाव दिए थे। आयोग के सुझाए विकल्पों में पहला यह था कि विदेशी विश्वविद्यालयों के कैंपस खोलने और उनके काम पर निगरानी रखने के लिए नया कानून बनाया जाए। उसके मुताबिक निगरानी रखने का काम विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के जरिये हो सकता है। दूसरा सुझाव यह था कि 1956 के यूजीसी में कानून में संशोधन किया जा सकता है और देश में विदेशी विश्वविद्यालयों को डीम्ड यूनिवर्सिटी की तरह चलाने की मंजूरी दी जा सकती है।
शिक्षा संस्कृति में आएगा बदलाव: एजुकेशन पोर्टल प्रोगेट की इंडिया डायरेक्टर संगीता देवनी के अनुसार, फॉरेन यूनिवर्सिटी के कैंपस देश में खुलने से देश की शिक्षा पद्धति एवं व्यवस्था में भी व्यापक बदलाव आने की संभावना है। इससे भारतीय संस्थानों की मौजूदा कार्य संस्कृति में परिवर्तन आएगा। एक स्वायत्त संस्था के रूप में कार्य करने से विदेशी विश्वविद्यालयों की कार्य संस्कृति पढ़ाई के अनुकूल होगी। फैकल्टी की गुणवत्ता पर भी सवाल नहीं होंगे, क्योंकि शीर्ष संस्थान इस बिंदु पर कभी कोई समझौता नहीं करेंगे। स्टूडेंट्स को रिसर्च, इनोवेशन के पर्याप्त मौके मिलने से स्वस्थ प्रतिस्पर्धा होगी।
जानकारों का यह भी मानना है कि अगर विदेशों (अमेरिका, यूरोप) की तुलना में यहां का फीस स्ट्रक्चर कम होता है, तो मुमकिन है कि विदेशी स्टूडेंट्स भी इन कैंपस में पढ़ने के प्रति आकर्षित होंगे। देखने वाली बात यह भी होगी कि फॉरेन यूनिवर्सिटीज को सरकार किस तरह की रियायतें देती है? जैसे उन्हें अपना फीस स्ट्रक्चर तय करने का अधिकार हो। क्योंकि कोई भी विदेशी विश्वविद्यालय बिना वित्तीय फायदे एवं मार्केट के क्यों अपना कैंपस यहां स्थापित करेगी।