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Online Class: 'असर' ने किया खुलासा, कोरोना संकटकाल में बच्चों की पढ़ाई पर कोई असर नहीं पड़ा

कोरोना संकट काल में असर ने इस बार ऑनलाइन यह रिपोर्ट तैयार की थी। 22 राज्यों और चार केंद्र शासित प्रदेशों में यह सर्वे कराया गया था। इनमें 52 हजार से ज्यादा घरों और पांच से सोलह साल की आयु वर्ग के करीब साठ हजार छात्र शामिल थे।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Wed, 28 Oct 2020 09:30 PM (IST)Updated: Wed, 28 Oct 2020 09:30 PM (IST)
Online Class: 'असर' ने किया खुलासा, कोरोना संकटकाल में बच्चों की पढ़ाई पर कोई असर नहीं पड़ा
कोरोना काल में अस्सी फीसद से ज्यादा बच्चों के पास पहुंची किताबें।

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। कोरोना संकटकाल में भले ही स्कूल बंद पड़े है, लेकिन ज्यादातर बच्चों की पढ़ाई पर इसका कोई असर नहीं पड़ा है। घरों में रहते हुए भी बच्चों ने अपनी पढ़ाई को जारी रखा है। इतना ही नहीं, लंबे लॉकडाउन के बाद भी स्कूलों में पढ़ने वाले अस्सी फीसद से ज्यादा स्कूली बच्चों तक किताबें भी पहुंची। इनमें सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे 84 फीसद से ज्यादा थे, जबकि निजी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे 72 फीसद थे। राज्यों के लिहाज से भी देखें, तो राजस्थान, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश को छोड़ दें, तो सभी राज्यों में 70 फीसद से ज्यादा बच्चों तक किताबें पहुंची है। 

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कोरोना संकट काल में स्कूली बच्चों की शैक्षणिक गतिविधियों का 'असर' ने किया खुलासा

कोरोना संकट काल में स्कूली बच्चों की शैक्षणिक गतिविधियों को लेकर यह खुलासा असर ( एनुअल स्टेटस आफ एजुकेशन रिपोर्ट) 2020 की पहले चक्र की रिपोर्ट से हुआ है। असर की ओर से हर साल देश की शैक्षणिक गुणवत्ता को लेकर रिपोर्ट तैयार करती है। कोरोना संकट काल में असर ने इस बार ऑनलाइन यह रिपोर्ट तैयार की थी। 22 राज्यों और चार केंद्र शासित प्रदेशों में यह सर्वे कराया गया था। इनमें 52 हजार से ज्यादा घरों और पांच से सोलह साल की आयु वर्ग के करीब साठ हजार छात्रों को शामिल किया गया था। इसके साथ ही इसे लेकर सरकारी स्कूलों के करीब नौ हजार शिक्षकों और प्रधानाचार्यो से भी संपर्क किया गया था।

बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई पर फोकस: 60 फीसद परिवारों के पास थे स्मार्ट फोन

असर 2020 की इस रिपोर्ट में बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई पर भी फोकस किया गया था। इस दौरान यह पाया गया कि 60 फीसद से ज्यादा परिवारों के पास स्मार्ट फोन मौजूद थे। जिसके जरिए बच्चों को पढ़ाई में मदद मिली। इस दौरान बच्चों को माता-पिता और भाई-बहन ने भी पढ़ाने में मदद की। हालांकि इन दौरान यह ट्रेंड भी देखने को मिला, जिन बच्चों के माता-पिता कम पढ़े-लिखे थे यानी पांचवी से उससे कम पढ़े थे, उन्होंने ज्यादा पढ़े लिखे माता-पिता के मुकाबले बच्चों को पढ़ाई में ज्यादा मदद की। वहीं जैसे-जैसे बच्चे बड़ी कक्षाओं में पहुंच रहे थे, माता-पिता से पढ़ाई में मिलने वाले सहयोग का स्तर घटता गया।

ऑनलाइन अध्ययन सामग्री पहुंचाने में यूपी, बिहार, राजस्थान रहे फिसड्डी

रिपोर्ट के मुताबिक सिंतबर में कराए गए इस सर्वे में बच्चों से स्कूलों की ओर से ऑनलाइन अध्ययन सामग्री को लेकर भी पूछा गया था, इस दौरान यूपी, बिहार और राजस्थान ऐसे राज्य थे, जहां 25 फीसद से भी कम बच्चों को यह ऑनलाइन अध्ययन सामग्री पहुंचायी गई थी। वहीं छात्रों की ऑनलाइन पढ़ाई में जो एप सबसे ज्यादा लोकप्रिय था, वह व्हाट्सएप था। इसमें निजी स्कूलों में बच्चों का प्रतिशत 87 फीसद और सरकारी स्कूलों में 68 फीसद से ज्यादा है।

स्कूलों के बंद रहने के बाद भी बढ़ा नामांकन का प्रतिशत

कोरोना संकटकाल में स्कूल भले ही बंद थे, लेकिन स्कूलों में प्रवेश लेने वाले बच्चों का प्रतिशत पिछले सालों के मुकाबले बढ़ा है। रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2018 में सरकारी स्कूलों में बच्चों का नामांकन प्रतिशत 62 फीसद ही थी, जो सितंबर 2020 में बढ़कर 66.4 फीसद हो गया है. वहीं छात्राओं के नामांकन का प्रतिशत भी 70 से बढकर 73 फीसद हो गया है। हालांकि इसकी वजह शिक्षकों का गांव-गांव जाकर नामांकन करना था।


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