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कोरोना की तीसरी लहर में बच्चों के प्रभावित होने के ठोस प्रमाण नहीं, लैंसेट की रिपोर्ट में दावा

चिकित्सा विज्ञान क्षेत्र की प्रतिष्ठित पत्रिका लैंसेट की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस बात के अब तक कोई ठोस प्रमाण नहीं मिले हैं जिसके आधार पर कहा जा सके कि कोरोना महामारी की तीसरी संभावित लहर में बच्चों के गंभीर रूप से संक्रमित होने की आशंका है।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Sat, 12 Jun 2021 10:45 PM (IST)Updated: Sun, 13 Jun 2021 12:02 AM (IST)
कोरोना की तीसरी लहर में बच्चों के प्रभावित होने के ठोस प्रमाण नहीं, लैंसेट की रिपोर्ट में दावा
लैंसेट रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना की तीसरी लहर में बच्चों के गंभीर रूप से संक्रमित होने की आशंका नहीं है।

नई दिल्ली, पीटीआइ। चिकित्सा विज्ञान क्षेत्र की प्रतिष्ठित पत्रिका लैंसेट की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस बात के अब तक कोई ठोस प्रमाण नहीं मिले हैं, जिसके आधार पर कहा जा सके कि कोरोना महामारी की तीसरी संभावित लहर में बच्चों के गंभीर रूप से संक्रमित होने की आशंका है। 'लैंसेट कोविड-19 कमीशन इंडिया टास्क फोर्स' ने भारत में 'बाल रोग कोविड-19' के विषय के अध्ययन के लिए देश के प्रमुख बाल रोग विशेषज्ञों के साथ चर्चा करने के बाद यह रिपोर्ट तैयार की है।

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अधिकतर बच्चों में बीमारी के लक्षण नहीं

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में कोरोना वायरस से संक्रमित बच्चों में उसी प्रकार के लक्षण पाए गए हैं, जैसा कि दुनिया के अन्य देशों में देखने को मिले हैं। रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना से संक्रमित होने वाले अधिकतर बच्चों में इस बीमारी के कोई लक्षण नहीं होते। कई बच्चों में संक्रमण के हल्के लक्षण देखने को भी मिले हैं।

बच्‍चों में नजर आए ये लक्षण 

वायरस से संक्रमित होने के बाद अधिकतर बच्चों में बुखार और श्वास संबंधी परेशानियां जैसे लक्षण भी देखने को मिले हैं। वयस्कों की तुलना में बच्चों में डायरिया, उल्टी और पेट में दर्द संबंधी अन्य लक्षण देखने को मिले हैं। उम्र बढ़ने के साथ-साथ बीमारी के लक्षण आने की आशंका भी प्रबल हो जाती है।

आंकड़े नहीं हैं उपलब्‍ध  

देश में कोरोना की पहली और दूसरी लहर के दौरान कितनी संख्या में बच्चे संक्रमित हुए और अस्पताल में भर्ती कराए गए, इस संबंध में राष्ट्रीय स्तर पर आंकड़े तैयार नहीं किए गए हैं। इसलिए तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र और दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र के 10 अस्पतालों में इस दौरान भर्ती हुए 10 साल से कम उम्र के करीब 2,600 बच्चों के क्लीनिकल आंकड़ों को एकत्र कर उसका विश्लेषण करने के बाद ही यह रिपोर्ट तैयार की गई है।


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