तीन तलाक के खिलाफ आवाज, जिस दिन मियां रोएंगे; उस रात चैन से सोऊंगी
तीन तलाक और निकाह हलाला के खिलाफ आवाज उठा कानूनी लड़ाई लड़ने वाली निदा खान को आज संतोष है कि उनके इस संघर्ष से मुस्लिम महिलाओं को नारकीय जीवन से मुक्ति का रास्ता खुल गया।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। तीन तलाक और निकाह हलाला के खिलाफ आवाज उठा कानूनी लड़ाई लड़ने वाली निदा खान को आज संतोष है कि उनके इस संघर्ष से मुस्लिम महिलाओं को नारकीय जीवन से मुक्ति का रास्ता खुल गया। दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में बरेली, उप्र निवासी निदा ने अपनी आप बीती सुनाई। बताया कि आखिर क्यों उन्हें यह कदम उठाने पर मजबूर होना पड़ा। वो क्या जिद थी, जिसने दुनिया से लड़ने का हौसला दे दिया। वसीम अख्तर से हुई बातचीत का अंश..
यह लड़ाई जुल्म के खिलाफ है
निदा ने बताया, परीक्षा देने बरेली कॉलेज गई तो जबर्दस्ती वहां से उठा लाए। उन्होंने मारपीट की तो गर्भपात हो गया। घर से निकाल दिया। सह लिया। पुलिस तक गई, लेकिन इस उम्मीद से कि शौहर शीरान बदल जाएंगे। मीडिएशन सेंटर में समझौते के लिए गई थी। वहां शीरान ने तलाक के कागजात दिखाए तो पैरों तले से जमीन खिसकती महसूस हुई। उसी दिन तय कर लिया, बहुत हुआ, अब लड़ना है। निदा खान कहती हैं, यह लड़ाई अब भी जारी है, लेकिन लगने लगा है कि जीत मेरी ही होगी, क्योंकि लड़ाई जुल्म के खिलाफ है।
चुनौती कम न थी
निदा खान बताती हैं कि घरवालों का पूरा समर्थन मिला, लेकिन ज्यादातर रिश्तेदार विरोध में खड़े हो गए। कह दिया कि आला हजरत का खानदान ताकतवर है, शीरान और उनके घरवालों के खिलाफ कुछ नहीं कर पाओगी। अदालत में जाने के दौरान अपने जैसी तलाक पीड़ित महिलाओं से मिली तो वे भी शरीयत के डर की वजह से खुलकर बोलने में हिचकिचाती दिखाई दीं। यहां से तत्काल तीन तलाक की लड़ाई को तेज करने का फैसला लिया।
दरगाह से आया हुक्का-पानी बंद करने का फतवा
रुंधे गले से निदा कहती हैं कि किसी महिला के खिलाफ दरगाह आला हजरत से जुड़े मुफ्तियों का यह सबसे आक्रामक फतवा था। इसमें लोगों से कहा गया कि मुझसे तमाम तरह के ताल्लुकात तोड़ लिए जाएं। बीमार पड़ूं तो कोई देखने नहीं जाए और मर जाऊं तो जनाजे में हिस्सा नहीं लें।
माफी मांगने को किया गया विवश
बकौल निदा, फतवे के बाद ऑल इंडिया मदीना काउंसिल के अध्यक्ष मुईन सिद्दीकी ने मुझे देश से खदेड़ने वाले के लिए इनाम का एलान कर दिया। उसके बाद दरगाह शाहदाना वली में जुमे की नमाज के लिए गए मेरे पिता को टोका गया। पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा। बानखाना में महिलाओं ने ही घेर लिया। पुलिस को बचाकर लाना पड़ा। इमाम द्वारा जारी किए गए इस फतवे में कहा गया था, यदि निदा खान बीमार पड़ी हैं तो उन्हें कोई देखने ना जाए, यदि उनकी मौत होती है तो कोई जनाजे में शरीक न हो और न ही कब्रिस्तान में दफन होने दें। यदि कोई निदा खान की मदद करता है तो उसे भी यही सजा मिलेगी। फतवे में कहा गया कि जब तक निदा खान सार्वजनिक रूप से माफी नहीं मांगती हैं तब तक उनसे कोई मुस्लिम संपर्क नहीं रखेगा।
पत्थरों से कुचल देने की धमकी
तीन तलाक और निकाह हलाला के खिलाफ आवाज उठाने को लेकर निदा मुस्लिम कट्टरपंथियों के निशाने पर आ चुकी थीं। बताती हैं, मेरे खिलाफ फतवे में कहा गया कि जो भी मेरे सिर के बाल काटकर लाएगा उसे नकद इनाम दिया जाएगा। मुझे धमकाया गया कि यदि मैंने तीन दिन के अंदर देश नहीं छोड़ा तो मुझे पत्थरों से कुचल डाला जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट पहुंचीं शायरा बानो
इस बीच साल 2016 में ही उत्तराखंड की एक और मुस्लिम महिला शायरा बानो ने तीन तलाक के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाल दी। बानो ने मांग की कि उनके पति द्वारा उन्हें दिए गए तीन तलाक को खारिज किया जाए। इसके बाद इनकी याचिका में इनके साथ चार अन्य महिलाएं भी जुड़ गईं।
भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन इस मामले में छठा याचिकर्ता था। अगस्त 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिया था। बानो ने बताया कि मुस्लिम समुदाय में तीन तलाक, निकाह हलाला और असमान संपत्ति अधिकार जैसे रस्मों के आधार पर हमेशा से महिलाओं पर अत्याचार होता आया है। जबकि तीन तलाक न तो इस्लाम का हिस्सा है और न ही आस्था का। उन्होंने कहा कि उनकी आस्था ये है कि तीन तलाक मेरे और ईश्वर के बीच में पाप है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड भी कहता है कि ये बुरा है, पाप है और अवांछनीय है।
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने बहुमत के निर्णय में मुस्लिम समाज में एक बार में तीन बार तलाक देने की प्रथा को निरस्त करते हुए अपनी व्यवस्था में इसे असंवैधानिक, गैरकानूनी और शून्य करार दिया। कोर्ट ने कहा कि तीन तलाक की यह प्रथा कुरान के मूल सिद्धांत के खिलाफ है। इससे संविधान का उल्लंघन भी होता है, इसलिए इसे निरस्त किया जाना चाहिए। जिन दो जजों ने तीन तलाक को असंवैधानिक नहीं माना, उन्होंने भी इसे गलत माना, लेकिन इस मामले में संसद द्वारा कानून बनाने की राय रखी।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद केंद्र सरकार मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक लाई, जो दिसंबर 2017 में तो लोकसभा से पारित हो गया, लेकिन राज्यसभा में अटक गया। बाद में सितंबर 2018 में सरकार तीन तलाक को प्रतिबंधित करने के लिए अध्यादेश लाई, जिसके तहत तीन तलाक को अपराध घोषित करते हुए शौहर के लिए तीन साल तक की जेल और जुर्माना लगाए जाने का प्रावधान किया गया।
टूटी महिलाओं की चुप्पी
तीन तलाक के खिलाफ कानूनी लड़ाई को अंजाम तक पहुंचाने वाली निदा खान कहती हैं, तत्काल तीन तलाक के खिलाफ आवाज उठाने से महिलाओं की चुप्पी टूटी। चाय फीकी होने, खाने में नमक कम या ज्यादा होने और दरवाजा देर से खोलने जैसी जरा-जरा सी बात पर दी जाने वाली तीन तलाक के मामले अब थमे हैं। जुल्म के खिलाफ चुप रह जाने वाली महिलाएं बोलने लगीं। निदा कहती हैं कि अब इंतजार सरकार के स्तर पर कानून बनने और पीड़ित महिलाओं के जीवनयापन को ठोस कदम का है।
जिस दिन मियां रोएंगे, उस रात चैन से सो पाऊंगी
निदा खान कहती हैं, बरेली से इतिहास बनेगा। जिस दिन मियां (शीरान) को जेल होगी और सलाखों में रोएंगे, तब चैन से सो पाऊंगी। उनके जुल्म याद करके नींद नहीं आती। यह मेरी नहीं, उन तमाम महिलाओं की जीत होगी, जिन्हें कमजोर मानकर जुल्म ढाए जाते रहे हैं। इस सजा से समाज में व्यापक संदेश जाएगा।
फतवा जारी करने वाले पाकिस्तान चले जाएं...
जब धमकियों और फतवों की इंतहा हो गई तब निदा ने प्रेस कांफ्रेंस कर धमकी देने वालों पर पलटवार किया। कहा कि फतवा जारी करने वाले पाकिस्तान चले जाएं क्योंकि हिंदुस्तान एक लोकतांत्रिक देश है। यहां दो कानून नहीं चलेंगे। किसी मुस्लिम को इस्लाम से खारिज करने की हैसियत किसी की नहीं है, सिर्फ अल्लाह ही गुनहगार और बेगुनाह का फैसला कर सकता है।
नाम के अनुरूप निकलीं
शाहदाना वली दरगाह के पास रहने वाले मुसर्रत यार खां ने बेटी पैदा होने पर उसका नाम निदा रखा। इस नाम का धार्मिक मायना गैबी यानी अदृश्य आवाज होता है। 25 साल पहले उन्हें तो क्या किसी को भी यह गुमान नहीं था कि निदा अपने नाम के अनुरूप निकलेंगी। शरीयत की आड़ में पुरुषों को मनमानी का अधिकार देने वाली तीन तलाक प्रथा के खिलाफ महिलाओं की आवाज बन जाएंगी।
निदा खान बरेली के प्रतिष्ठित आला हजरत खानदान की बहू बनीं। वर्ष 2015 में इनकी शादी दरगाह आला हजरत के प्रमुख सुब्हानी मियां के छोटे भाई अंजुम मियां के बेटे शीरान रजा खां से हुई थी। शादी के पहले साल से ही दोनों में विवाद पैदा हो गया। फरवरी 2016 को शौहर ने तलाक दे दिया। निदा ने कानून का सहारा लिया। बरेली की अदालत ने निदा को शौहर द्वारा दिए गए तीन तलाक को अवैध घोषित कर दिया। अदालत ने इंस्टैंट तीन तलाक की शिकार निदा के शौहर की याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उसने घरेलू हिंसा के केस पर स्टे लगाने की मांग की थी। निदा आला हजरत हेल्पिंग सोसायटी बनाकर अपनी जैसी महिलाओं की लड़ाई लड़ रही हैं।