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सोना तस्करी मामले में एनआइए ने असम और महाराष्ट्र में की छापेमारी, एजेंसी ने चार स्थानों की ली तलाशी

एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि इन आरोपितों के म्यांमार भूटान और नेपाल में स्थित संपर्को की जानकारी मिली है। छापे के दौरान बरामद हार्ड डिस्क और मोबाइल फोन से इन संपर्को के बारे में अहम सूचना मिलने की उम्मीद है।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Thu, 29 Oct 2020 08:36 PM (IST)Updated: Thu, 29 Oct 2020 08:36 PM (IST)
सोना तस्करी मामले में एनआइए ने असम और महाराष्ट्र में की छापेमारी, एजेंसी ने चार स्थानों की ली तलाशी
यह गिरोह म्यांमार, भूटान और नेपाल के रास्ते भारत में सोने की तस्करी करता रहा है

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। दिल्ली में तस्करी के लगभग 84 किलोग्राम सोने की बरामदगी के सिलसिले में एनआइए ने असम और महाराष्ट्र में चार स्थानों की तलाशी ली। एनआइए के अनुसार, जिन स्थानों पर छापा मारा गया, वे तस्करी के आरोपितों और उनके आकाओं से संबंधित हैं। माना जा रहा है कि यह गिरोह म्यांमार, भूटान और नेपाल के रास्ते भारत में सोने की तस्करी करता रहा है।

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वैसे एनआइए ने तलाशी में बरामद सुबूतों और दस्तावेजों की जानकारी अभी तक नहीं दी है। लेकिन माना जा रहा है कि इस दौरान आरोपितों के ठिकाने से कंप्यूटर हार्ड डिस्क और मोबाइल फोन बरामद किए गए हैं। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि इन आरोपितों के म्यांमार, भूटान और नेपाल में स्थित संपर्को की जानकारी मिली है। छापे के दौरान बरामद हार्ड डिस्क और मोबाइल फोन से इन संपर्को के बारे में अहम सूचना मिलने की उम्मीद है।

28 अगस्त को गिरफ्तार आठ आरोपितों ने पूछताछ में गुवाहाटी से सोना मिलने की बात मानी थी। सोने को डिलिवरी के लिए दिल्ली भेजा गया था। लेकिन रैकेट के बड़े हैंडलरों के बारे में अब भी ज्यादा जानकारी नहीं है। जिन स्थानों पर छापा मारा गया उनमें तीन असम में और एक महाराष्ट्र में हैं।

टेरर फंडिंग मामले में भी एनआइए की छापेमारी

वहीं, दूसरी ओर टेरर फंडिंग मामले में राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने लगातार दूसरे दिन भी छापेमारी जारी रखी। गुरुवार को एनआइए की टीमों ने श्रीनगर (जम्मू और कश्मीर) में 9 स्थानों और दिल्ली में एक स्थान पर छापेमारी की। सीमा पार से होने वाली टेरर फंडिंग सिलसिले में यह छापामारी की गई। एनआइए की टीम ने मोहम्मद जफर अकबर भट्ट के मकान पर छापा डाला।

जफर बट जम्मू कश्मीर साल्वेशन मूवमेंट के चेयरमैन है। जफर बट अलगाववादी सियासत में सक्रिय होने से पहले हिज्बुल मुजाहिदीन के उन कमांडरों में से एक थे जिन्होंने वर्ष 2000 के दौरान केंद्र सरकार के साथ बातचीत में हिस्सा लिया था बाद में सलाउद्दीन के साथ मतभेद पैदा होने पर इन लोगों ने बंदूक छोड़ दी और सियासत में शामिल हो गए थे।


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